सुरेशचंद्र रोहरा

नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश की जनता ने बहुत प्यार दिया और देश का प्रधानमंत्री बना करके ऐसा सम्मान दिया कि इतिहास में दर्ज हो गया.
सनद रहे कि कभी भी केंद्रीय राजनीति में आप नहीं रहे कभी भी संसदीय चुनाव नहीं लड़ा, कभी भी केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी नहीं रहे, मगर देश की जनता ने उनके व्यक्तित्व और बातों को कुछ इस तरह सम्मान दिया कि सीधे-सीधे नरेंद्र दामोदरदास मोदी 2014 के “संसदीय चुनाव” में भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बन गए.
इसके साथ ही देश की जनता को जो सम्मान प्यार और अपनापन एक प्रधानमंत्री की और से मिलना चाहिए उस में भारी कमी रह गई. वह इसलिए कि 2014 में सत्ता में आते ही लोकतांत्रिक ढांचे को नरेंद्र मोदी सरकार मानो ध्वस्त करने में लग गई, होना तो यह चाहिए था कि देश की जनता को यह महसूस होता कि यह सरकार हमारे लिए बहुत कुछ कर रही है. यह भी कर रही है और वह भी कर रही है. मगर उल्टा हुआ यह कि देश की जनता को नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जो त्रासदी, पीड़ा और आंसू दिया है वह आजाद हिंदुस्तान में इतिहास बन चुका है. जिस की सबसे बड़ी नजीर है तीन कृषि कानून.

दरअसल,जब भी कोई कानून बनता है नियम उप नियम बनते हैं तो वह समाज के लिए देश के लिए हितकारी है इसलिए बनाए जाते हैं. यह इसलिए नहीं बनाए जाते की सिर्फ सत्ता उसकी चासनी का स्वाद ले या कुछ गिने-चुने बड़े उद्योगपति उसमें डुबकियां लगाएं. कृषि कानून के संदर्भ में भी देश और दुनिया ने देखा, कानून को आनन-फानन में संसद में पास करा दिया गया. देश की जनता किसान आवाक हो कर के देखते रह गए की यह क्या हो रहा है. मगर जनता की नाम पर एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा जिस तरीके से लाठी भांजी गई उसका दर्द उभर कर सामने आया जब किसानों ने यह कह दिया- यह कृषि कानून हमें मंजूर नहीं, और सरकार को वापस लेना होगा.
मगर सरकार तो यही कहती रही कि यह कानून तो भैया किसान तुम्हारे लिए है! तुम्हारे फायदे के लिए है!! किसान रोते रहे, मरते रहे आंदोलन करते रहे मगर सरकार टस से मस नहीं हो रही थी. बल्कि और भी तल्खी के साथ यह कहती रही कि यह किसान तो कुछ चुनिंदा लोग हैं, यह किसान तो भटके हुए लोग हैं, यह किसान तो आतंकवादी हैं. यह किसान खालिस्तानी हैं जो दिल्ली की सीमाओं में आकर के देश का माहौल खराब कर रहे हैं. आम भला किसान तो बेचारा अपने घर में बैठ कर के इस कृषि कानून के पास होने पर खुशियां मना रहा है.

औचक पलटी मारी!

अचानक देश ने देखा कि किस तरह इंदिरा गांधी की जयंती, गुरु नानकदेव की जयंती पर्व पर सुबह-सुबह अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पलटी मार दी. आकर मानो धमाका कर दिया कि कृषि कानूनों को सरकार वापस ले रही है.
यह मुआफी आज देश दुनिया के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की आंखों के सामने भी हवाओं में तैर रही है. और उनसे शायद पूछ रही है कि एक लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री होने के नाते किसानों का, व्यापारियों का, देश की जन जन का हितेषी होने के अपने दायित्व को भूल कर के आपने क्यों अपने लगभग 7 वर्ष के कार्यकाल में ऐसे कदम उठाए, क्यों लोग टीस से भर गए त्रासदी से गुजर गए क्यों हजारों लोग मर गए.
पहला सवाल तो यह है कि जब कृषि कानून देश की सर्वाधिक जनसंख्या यानी किसानों के हित में नहीं था तो उसे लागू क्यों किया गया?
दूसरा-इसी तरीके से “एक देश एक टैक्स” का नारा देने के बाद जीएसटी लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पेट्रोल डीजल और कुछ अन्य चीजों पर अलग-अलग टैक्स का मानदंड क्यों रखा हुआ है. क्या यह कथनी और करनी अंतर नहीं दिखाता, अखिल पेट्रोल डीजल से आ रहा करोड़ों अरबों रुपए वसूल करने का आपको क्या अधिकार है?
तीसरा-देश को सेंट्रल विस्टा आपने सौंपने की योजना बना ली. आखिर आपसे किसने कहा है कि नया संसद भवन बना दीजिए अखिर आप उन पुरानी संवैधानिक संस्थाओं को जो आजादी की धरोहर हैं उन्हें तोड़कर के नया बनाने के लिए इतने लालायित क्यों हैं.
दरअसल, इतिहास में अमर होने के लिए आपने जो जो किया वह आपके लिए उल्टा पड़ गया है. यही कारण है कि नोटबंदी आपका एक ऐसा कदम है जिसका जवाब आपको इतिहास को देना ही पड़ेगा. यही नहीं जिस गुरु लालकृष्ण आडवाणी ने आपको उंगली पकड़कर राजनीति में आगे बढ़ाया आपका संरक्षण किया उन्हें भी आपने बार-बार अपमानित ही किया. आज देश की जनता में यह जन चर्चा का विषय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी क्या ऐसी ही कुछ और गलतियों के कारण भी देश और देश की आवाम से माफी मांगेंगे.

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