आमतौर पर हमारे यहां रेप का कुसूर पिछड़ी जातियों के उद्दंड बेरोजगार और कट्टर बन रहे नौजवानों पर डाला जाता है, जो दलित लड़कियों को रेप कर के जला तक डालते हैं. पर समस्याएं ऊंची जातियों में भी हैं और ओबीसी जातियों की लड़कियों में भी, जो पैसे और पढ़ाईलिखाई के चलते अब मेनस्ट्रीम में आने लगी हैं. इन में एक समस्या डेट रेप की है.
एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली अनामिका मुंबई के अंधेरी इलाके के एक पेइंग गैस्टहाउस में रहती थी. वह एक पिछड़े समाज की खातेपीते घर की लड़की थी, जो शहर में पढ़ने व काम करने आई थी. उस ने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली.
सुसाइड नोट में उस ने लिखा, ‘एक दिन जब मैं औफिस में थी, तब मेरे ह्वाट्सएप में वीडियो मैसेज आया. वह जिस नंबर से आया था, वह भारत का नहीं था. मेरे मन में उत्सुकता पैदा हुई कि आखिर यह किस बारे में है और किस ने भेजा है. मैं ने इंटरनैट से मालूम किया तो पता चला कि नंबर सिंगापुर से आपरेट किया जा रहा था.
‘मैं स्टाफरूम में गई और चुपचाप मैसेज देखा. देख कर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई, क्योंकि वह मु?ा से ही संबंधित था. वह एक पोर्न फिल्म थी. मैं डर के मारे सिहर उठी.
‘घर आ कर मैं ने कई बार वीडियो मैसेज देखा. मैं हैरान थी कि उस में कई लड़कों को मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाते हुए दिखाया गया था. मु?ो यह तक याद न था कि यह कब व कैसे हुआ. उस में न मेरी तरफ से विरोध था और न ही मैं नशे की हालत में थी. बिना हीलहुज्जत, पूरी सहमति से दिखाए गए इतने सारे सैक्स संबंध मु?ो डरा रहे थे. हर दृश्य में मैं तो साफतौर पर दिख रही थी, पर सैक्स करने वालों के चेहरे छिपे हुए थे. अंत में धमकी भरी सूचना थी कि अमुक जगह व समय पर मिलो, नहीं तो इसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा.
‘मु?ो सम?ा नहीं आ रहा था कि यह हादसा कब व कैसे घटित हुआ, जबकि मैसेज तनिक भी फर्जी नहीं लग रहा था.
‘मैं ने दिमाग पर बहुत जोर डाला, तब याद आया कि पिछली बार जब बौयफ्रैंड ‘डेट’ पर ले गया था, तब कान व गले में यही तो पहने थे, जो उस वीडियो में नजर आ रहे हैं. ड्रिंक्स के बाद मैं असामान्य हो गई थी. इस वजह से रात वहीं गुजारनी पड़ी. मगर वहां रहते हुए ऐसा हुआ, यह सोच कर मैं हैरान थी.
‘ऐसा एमएमएस कब, कहां व कैसे बना और बनाने व भेजने वाला कौन है का जवाब नहीं मिल रहा था. सब से बड़ी उल?ान यह थी कि वीडियो में मैं पूरे होशोहवास में सहयोग करती नजर आ रही थी. अगर बौयफ्रैंड को बताती या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जाती, तो कैसे साबित करती कि जो हुआ, वह मेरी इच्छा के खिलाफ था.
‘इस के बाद मैं हथियार डालने को मजबूर हो गई. मेरी बोल्डनैस पलभर में छूमंतर हो गई. निश्चित समय व तय जगह पर पहुंचना मेरी मजबूरी थी. फिर तो मैं पतन के गर्त में समाती चली गई. मैं उन लोगों के हाथों की कठपुतली बन गई और ‘गैंग रेप’ की शिकार होने लगी. बाद में पता चला कि मेरा बौयफ्रैंड फ्रौड था. वह उसी गैंग के लिए काम करता था. मेरी जैसी अनेक लड़कियां वहां ‘पोर्न फिल्मों’ की हीरोइनें बनी हुई थीं. इस दलदल से निकलने के लिए खुदकुशी करने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता न था.
‘अफसोस तो मु?ो इस बात का है कि मैं ने बिना परखे बौयफ्रैंड बनाया और बाद में समय रहते पुलिस के पास नहीं जा पाई, वरना मु?ो यह जलालत तो नहीं सहनी पड़ती.’
रोहित शेट्टी की फिल्म ‘संडे’ में सेहर नाम की लड़की लाख कोशिश करने पर भी एक संडे को याद नहीं कर पाती, जबकि उस के लिए वह संडे खास था, क्योंकि जांच एजेंसियां उस संडे के बारे में उस से जानना चाहती थीं.
देखा जाए, तो सेहर के गुम संडे और अनामिका के साथ घटे हादसे का राज समान ही नजर आता है और वह यह कि वे दोनों अनजाने में किसी की साजिश का शिकार बन गई थीं.
आमतौर पर ऐसे मामलों में लड़कियां ऐसी दवा की शिकार बन जाती हैं, जिस के सेवन से शारीरिक व मानसिक रूप से वे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि ठीक तरह से विरोध भी नहीं कर पातीं. इन दवाओं में ऐसी चीजें मिली होती हैं, जिन से यौन उत्तेजना बढ़ जाती है.
जाहिर है, ऐसी हालत में पीडि़ता खिलाफत के बजाय सहयोगी बन कर सैक्स की भूख शांत करती नजर आती है, क्योंकि बढ़ी हुई यौन उत्तेजना के चलते जाहिर होने वाला विरोध भी दब कर रह जाता है और यही उस के पक्ष को कमजोर बना देता है. नतीजतन, ऐसे रेप या साजिश साबित नहीं हो पाती और वह ‘ब्लैकमेल’ होने को मजबूर हो जाती है.
यह उन लड़कियों के लिए गंभीर चेतावनी है, जो पार्टियों, क्लबों या पबों में जाती हैं व खुद को ‘बोल्ड’ साबित करने की धुन में नशे की आदी हो गई हैं.
ऐसी लड़कियां मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स से परहेज नहीं करतीं, किंतु बोल्डनैस के चलते सैक्स के लिए समर्पित भी नहीं होतीं. ऐसी लड़कियों से निबटने के लिए गलत मर्द साथी ड्रिंक्स में यह दवा मिला देते हैं, जिन्हें ‘डेट रेप ड्रग्स’ के नाम से जाना जाता है. इस के बाद वे बेखौफ उन्हें जिस्मानी शोषण का शिकार बना लेते हैं और ‘ब्लैकमेल’ करते रहने के लिए पुख्ता सुबूत भी जुटा लेते हैं. गामा हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड के नाम से जानी जाने वाली एक ड्रग्स इन्हीं में से है.
जयपुर के जगतपुरा क्षेत्र में ‘डेट रेप ड्रग्स’ की खेपें जाती रहती हैं, क्योंकि इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है. इन में से एक केटामाइन प्रतिबंधित दवा भी है, जो मानसिक मरीजों के लिए इस्तेमाल होती है, पर इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल नाइट क्लबों, रेव पार्टियों में होने लगा है. इन्हें लेने वाला तकरीबन होश खो देता है और होश में आने पर अपराध में शरीक रहे अपराधियों तक को नहीं पहचान पाता.
फोरैंसिक माहिरों का कहना है कि आमतौर पर पार्टी के दौरान लड़कियों को कैटामाइन इंजैक्शन या ड्रिंक्स के रूप में दिया जाता है. इस के बाद वे सपने जैसी हालत में पहुंच जाती हैं. होश में आने पर उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता. इस तरह वे बेहोश तो नहीं होतीं, पर सोचनेसम?ाने व पहचानने तक की ताकत खो बैठती हैं.
यहां तक कि वे बौयफ्रैंड और दूसरे में फर्क नहीं कर पातीं. तभी तो ऐसी क्लब पार्टियों में पार्टनरों के बदलते रहने के चलते वे ‘गैंग रेप’ की शिकार बन जाती हैं और होश में आने के बाद न अपने बरताव को याद कर पाती हैं और न ही बलात्कारी पार्टनरों को पहचान पाती हैं.
गांवों व छोटे कसबों से आने वाली लड़कियां आमतौर पर शहरी बनने के चक्कर में बहुत से जोखिम भी लेती हैं, इसलिए वे हर न्योते को स्वीकार कर लेती हैं. उन्हें अपने शारीरिक दम पर भरोसा होता है, पर ये ड्रग्स दिमाग पर काम करती हैं, शरीर के मसल्स पर नहीं.
जहां तक इन दवाओं से सावधान रहने की बात है, यह भी तकरीबन नामुमकिन सा ही है, क्योंकि ऐसी दवाएं रंग, गंध व स्वादहीन होती हैं, इसीलिए इन्हें आसानी से बिना जानकारी के किसी भी पेय पदार्थ में मिला कर पिलाया जा सकता है. इसे पानी के साथ भी दिया जा सकता है. पीने वालों को तनिक भी पता नहीं चलता और वे सहज विश्वास से उसे पी जाते हैं.
इस के कुछ समय बाद ही दवा अपना असर दिखाने लगती है. साजिश रचने वाला इंतजार में रहता है. उस का तनिक सा आमंत्रण सभी दूरियां मिटा देता है और वह हालात का फायदा उठाने से नहीं चूकता.
डाक्टरों का कहना है कि ऐसी
ड्रग्स का बेसिक कंपोनैंट है ‘हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड’. इस का असर तकरीबन 6 से 8 घंटे तक बना रहता है. यह दवा शरीर में तकरीबन
12 घंटे तक रहती है. 8 से 12 घंटे की अवधि तक उसे लेने वाली लड़की ढुलमुल व मतिभ्रम की शिकार बनी रहती है. अगर 12 घंटे में उस की पैथोलौजिकल जांच हो जाए, तब तो दवा दिए जाने के सुबूत मिल सकते हैं, वरना वे पता नहीं चल पाते. जाहिर है कि इतने समय में पीडि़त के सामान्य न होने से मामले का पता नहीं चल पाता और अपराधी के कांड पर परदा पड़ा रह जाता है.
पश्चिमी देशों में इस तरह की घटनाएं घटित होना आम बात है. अकेले ब्रिटेन में हर हफ्ते तकरीबन 30 से ज्यादा महिलाएं ऐसे हादसों की शिकार बनती हैं.
ये आंकड़े उन महिलाओं के हैं, जो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा पाती हैं. जाहिर है, अनेक महिलाएं ऐसी भी होंगी, जिन्हें अपराधियों द्वारा समयसमय पर उपयोग तो किया जाता है, किंतु उन्हें उस का ज्ञान तक नहीं होता. यह भी मुमकिन है कि उन्हें पता तो चल गया, पर उलट हालात को देखते हुए ब्लैकमेल होना नियति मान बैठी हों और पुलिस के पास जाना उन्हें फुजूल लग रहा हो.
जरूरी है कि लड़कियां ऐसे मामलों से बच कर रहें, खासकर वे जो पार्टियों, क्लबों, पबों या बार में जाती हैं और मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स लेने की आदी हैं. न जाने कौन, कब उन के ड्रिंक्स में कुछ मिला दे और अपना शिकार बना ले. इसी तरह जो लड़कियां दोस्त या मंगेतर के साथ ‘डेट’ पर जाती हैं, वे भी आसानी से विश्वासघात की शिकार बन सकती हैं.
दिल्ली में द्वारका में एक लड़की, जो 12वीं क्लास की छात्रा थी, महीनों तक इसी तरह की डेट रेप ड्रग्स की शिकार रही. उसे बारबार पेटीएम से पैसे भेजने को कहा जाता रहा. आखिर में उसे मातापिता को विश्वास में ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करानी पड़ी.
चाहे अपराधी पकड़ में आ जाए, पर करीब के सब लोग लड़की के कारनामोें को जान जाते हैं और नाम बताए जाने के बाद वह बदनाम हो जाती है.