रामरतन गुर्जर ने जब अपनेआप को कोतवाली थाने में थानेदार के ओहदे के लिए पेश किया, तो सीनियर कारकून ने उन्हें खुद की हाजिर रिपोर्ट ले कर जिला पुलिस अधिकारी उमेश दत्त के सामने हाजिर होने के लिए कहा.
साहब के कमरे में जाते ही रामरतन गुर्जर ने सेना के जवान की तरह उन्हें सैल्यूट किया और बोला, ‘‘मैं रामरतन गुर्जर थानेदार. ड्यूटी पर आज ही हाजिर हुआ हूं.’’
दत्त साहब, जो किसी फाइल में सिर गड़ाए पढ़ रहे थे, ने बड़े अनमने भाव से चेहरा उठा कर उस की तरफ देखा.
‘‘रामरतन गुर्जर...’’ दत्त साहब ने उस का नाम दोहराया, ‘‘थानेदार...’’ फिर उसे पैर से ले कर ऊपर तक बारीक नजरों से देखा और बोले, ‘‘पुलिस की नौकरी कितनी मुश्किल है, यह जानते हो न...’’
‘‘जी सर...’’ रामरतन बोला, ‘‘रातदिन जागना पड़ता है. लोगों की सेवा करनी पड़ती है. कानून तोड़ने वालों को जेल के हवाले करना पड़ता है. देश और जनता की सेवा के लिए जान को भी जोखिम में डालना पड़ता है.’’
रामरतन के आत्मविश्वास को देख कर दत्त साहब प्रभावित हो गए, ‘‘काफी जोश है तुम में...’’ दत्त साहब ने तारीफ की, ‘‘पुलिस डिपार्टमैंट बदनाम हो रहा है. लोग हमें भ्रष्ट कह कर गाली देते हैं, घूसखोर कहते हैं. हमारी ऐसी इमेज को मिटाने के लिए तुम क्या करोगे?’’ दत्त साहब ने बड़ा जोर दे कर पूछा.
‘‘मैं ने ठान लिया है सर, मैं रिश्वत हरगिज नहीं लूंगा, एक पैसा नहीं,’’ रामरतन ने बड़े गर्व से कहा. फिर उस ने देखा कि दत्त साहब के चेहरे के भाव बदलने लगे हैं. वे गहरी सोच में डूबने लगे हैं.
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