सूरज हुआ अस्त और मजदूर हुआ मस्त. शाम के 6 बजते ही कारीगर, मजदूर और कुली का काम करने वाली मजदूरिनें अपने हाथपैर धोने लगीं. मजदूर तसला, बालटी व फावड़ा उठा कर समेटने लगे. मुंहलगी कुछ मजदूरिनें ठेकेदार की मोटरसाइकिल के आसपास मधुमक्खियों की तरह मंडराने लगीं.
गणेश ठेकेदार नखरे से भरी उन की अदाओं को देख रहा था और शिकायतभरी मनुहारों को सुन रहा था. गुरुवार के दिन स्थानीय बाजार लगने के चलते कारीगरों को मजदूरी मिलती थी, लेकिन जरूरत के मुताबिक मजदूर बाजार के दिन से पहले भी ठेकेदार से पैसे मांग लेते थे. कमला ठेकेदार से पैसे मांग रही थी और वह आनाकानी कर रहा था.
दूसरी कुली मजदूरिनें भी तकादा करने लगी थीं, लेकिन गणेश का ध्यान तो अपनी मोटरसाइकिल के शीशे पर था, जिस में उसे एक नई मजदूरिन का चेहरा दिखाई दे रहा था. बेला नाम की यह मजदूरिन 4-5 दिन से ही काम पर आ रही थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श और गदराई देह वाली बेला गणेश को गजब की हसीन लगी थी. गणेश का ठेका 3-4 जगहों पर चल रहा था, इसलिए वह शाम को ही इधर आया करता था.
जब उस ने पहली बार बेला को देखा, तो बरबस उस के मुंह से निकला था, ‘यह हीरा इस कोयले के ढेर में कहां से आया?’ गणेश ने एडवांस मांगने वालों को 50-50 रुपए दिए. कमला ने उस का नोटों से भरा बटुआ देखा, तो ललचाई नजरों से वह बोली, ‘‘बटुए में इतने रुपए भर रखे हैं और हमें 50 रुपए देने में भी बहाने करते हो.’’ ‘‘लेकिन मना तो नहीं करता कभी…’’
गणेश ने कहा, फिर बेला को सुनाने के लिए जोर से बोला, ‘‘अरे मुनीमजी, और किसी को एडवांस चाहिए क्या?’’ लेकिन बेला ने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं था. तब गणेश ने उस की ओर देख कर कहा, ‘‘तु?ो चाहिए क्या 100-50 रुपए?’’
‘‘मैं तो परसों पूरे साढ़े 3 सौ रुपए लूंगी,’’ बेला ने दोटूक बात कही और तसला उठा कर चली गई. वह गणेश की ललचाई आंखों को भांप गई थी. बेला की कमर पर नाचती हुई चोटी को देख कर गणेश का मन हुआ कि वह मोटरसाइकिल से उतर कर भीतर जाए और उसे मसल कर रख दे, लेकिन वह डरता था, क्योंकि बेला हीरा की मंगेतर थी और हीरा उस का सब से भरोसे का व मेहनती मजदूर था.
हीरा जितना ईमानदार और स्वामीभक्त था, उतना ही निडर और स्वाभिमानी भी था. ऐसे भरोसे के आदमी को गणेश खोना नहीं चाहता था. रविवार के दिन बेला अपनी ?ाग्गी के बाहर ?ाड़ी की ओट में बैठी कपड़े धो रही थी. उधर गणेश भी किसी मजदूर से बात कर रहा था.
अनजान बेला ने नहाने के लिए एकएक कर के अपने कपड़े उतारे. भरपूर जवानी से गदराई उस की देह की एक ?ालक पा कर गणेश कामातुर हो गया. बेला की पीठ को देख कर वह अपने पर काबू नहीं रख सका. उस की रगों का खून गरमाने लगा. तभी पीछे से आ कर मुनीम बोला, ‘‘ठेकेदार, यह चिडि़या ऐसे हाथ नहीं आएगी.’’ ‘‘तब मुनीमजी, तुम्हीं कोई तरकीब बताओ.
तुम भी तो पुराने शिकारी हो,’’ गणेश मुनीम की चिरौरी करने लगा. मुनीम ने दूसरे दिन बेला की ड्यूटी नई कालोनी में लगा दी, जहां एक नए सैक्टर में कुछ मकान बन चुके थे, कुछ बन रहे थे. बेला को दीवारों पर पानी से छिड़काव करने के काम पर लगाया गया था. एकएक मकान पर छिड़काव करते हुए जब वह 5वें मकान पर पहुंची, तो वहां एक चारपाई पर ठेकेदार गणेश लेटा हुआ था.
उसे देख कर बेला सहम गई. बेला कुछ सम?ा पाती, उस से पहले ही गणेश बाज की तरह उस पर ?ापटा. गणेश ने बेला के मुंह को दबा कर उसे चारपाई पर डाल दिया. अपनी देह की आग को ठंडी कर के गणेश बेशर्मी से हंसने लगा और बेबस बेला अभी तक सहमी हुई थी.
वह तन और मन की पीड़ा से अभी छूट नहीं पाई थी. अपने कपड़े संभालते हुए उस की आंखों से आंसू बह निकले. उस की ओर सौ रुपए का नोट फेंक कर गणेश बोला, ‘‘रख लो मेरी जान, काम आएगा.’’ ठेकेदार गणेश की मुराद पूरी हो गई. वह बहुत खुश था. उस ने मुनीम को भी खुश हो कर 50 रुपए दिए. मुनीम ने कहा, ‘‘ठेकेदारजी, अगर बेला ने हीरा से कह दिया,
तो गजब हो जाएगा.’’ ‘‘अरे मुनीम, तू तो बेकार में डरता है. बेला उस से कुछ नहीं कहेगी. दिनभर सिर पर तसला ढोती है, तब कहीं 50 रुपए मिलते हैं. मैं ने तो उसे छूने के सौ रुपए दिए हैं. क्या बिगड़ा है उस का.’’ मुनीम ने कहा, ‘‘पर बेला और तरह की औरत है.’’
‘‘अरे, सब औरतें एकजैसी होती हैं,’’ गणेश ने लापरवाही से कहा. दूसरे दिन बेला काम पर आई, तो गणेश का बाकी शक भी जाता रहा. उस ने एकांत पा कर पूछा, ‘‘बेला, तू खुश तो है न?’’ बेला कुछ बोलने के बजाय मुसकरा कर रह गई. गणेश की बांछें खिल गईं.
उस ने बेला का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा, तो बेला बोली, ‘‘आज नहीं कल. मेरी बात का भरोसा रखो.’’ गणेश बहुत खुश हुआ. बेला जैसी सुंदरी अपनी इच्छा से कल का वादा कर रही थी. उस ने फिर जोरजबरदस्ती करना ठीक नहीं सम?ा.
कल के सुहाने सपने संजोए गणेश घर आया. उस की बीवी राधा खड़ी थी. उस की आंखें सूजी हुई थीं, जैसे वह काफी देर तक रोती रही हो. गणेश का माथा ठनका. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ राधा का स्वर बु?ा हुआ था. ‘‘कोई बुरी खबर आई है क्या?’’ ‘‘नहीं, हीरा आया था.’’ हीरा का नाम सुनते ही ठेकेदार गणेश चौंक पड़ा. उस ने पूछा, ‘‘क्यों आया था?’’ ‘‘यह नोट और कंघा दे गया है.’’ ठेकेदार सहम गया. उस ने कहा, ‘‘अरे हां, यह कंघा गिर गया था. लेकिन यह नोट तुम्हारे पास कैसे आया?’’ उस की बीवी ने बताया, ‘‘तुम ने बेला को दिया था न?’’ ‘‘हां, उस ने मजदूरी के मांगे थे, पर हीरा तुम्हें क्यों दे गया?’’ ठेकेदार ने हैरानी से पूछा. कुछ देर राधा चुप रही, फिर बोली, ‘‘मु?ो भी वह मजदूरी दे गया.’’