बिना किसी मांग के,देश में आवश्यकता के, एक तरह से रातों-रात देश में एक नया संसद भवन बना दिया गया है. जी हां यह सच्चाई है कि फिलहाल यह मांग उठी ही नहीं थी कि देश को नवीन संसद भवन चाहिए और ना ही इसकी आवश्यकता महसूस की गई थी . मगर जैसे कभी राजा महाराजाओं को सपना आता था और सुबह घोषणा हो जाती थी भारत जैसे हमारे विकासशील एक गरीब देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अचानक संसद भवन का निर्माण कराना शुरू कर दिया. शायद उन्हें पहले के जमाने के राजा महाराजाओं के कैसे नए नए शौक चराते हैं . जैसे मुगल बादशाहों ने ताजमहल बनवाया लाल किला बनवाया और इतिहास में अमर हो गए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी भी इतिहास में अमर होना चाहते हैं. यही कारण है कि संसद भवन का उद्घाटन भी देश की संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से करवाने की बजाय स्वयं करने के लिए लालायित है.
नए संसद भवन का उद्घाटन को लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर हमले तेज कर दिए है सबसे पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अब विपक्ष के नेता एक सुर में मांग कर रहे हैं कि उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से ही किया जाना चाहिए. यह मांग एक तरह से देश के संविधानिक प्रमुख होने के कारण राष्ट्रपति से कराया जाना गरिमा मय लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाली होगी. क्योंकि संविधान के अनुसार हमारे देश में राष्ट्रपति ही सर्व प्रमुख है उन्हीं के नाम से प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार काम करती है.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति से ही नई संसद का उद्घाटन कराने की मांग दोहराई और कहा कि ऐसा होने पर लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सरकार को प्रतिबद्धता दिखेगी. आज राष्ट्रपति का पद महज प्रतीकात्मक बन कर रह गया है."
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