‘‘आप तो बीए पास हैं चचा, फिर मजदूरी क्यों करने लगे? कोई अच्छी सी नौकरी तलाशने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ साथ में काम कर रहे एक नौजवान मजदूर के इस सवाल का बुजुर्ग हो रहे रघु ने कोई जवाब नहीं दिया.
छत की ढलाई के लिए लग रहे तख्ते की कील पर निशाना टिका कर जोर से हथौड़ा चलाते हुए रघु को लगा कि उस ने हथौड़ा कील पर नहीं, बल्कि खुद पर चला लिया हो. ऐसे सवाल उसे कील से चुभते थे.
बीए पास होने का अहम रघु के अंदर अपनी जवानी में आ गया था. पढ़लिख लेने के बाद तो वह लोगों को कुछ समझता ही नहीं था. इस अहम में उस ने अपने मांबाप को कभी यह नहीं कहा कि पढ़लिख कर अगर उसे कोई नौकरी मिली तो वह उन्हें कभी मजदूरी नहीं करने देगा, बल्कि उलटे उन के मजदूरी करने पर हमेशा उन्हें कोसता कि वह भूखा मर जाएगा, पर जिंदगी में कभी मजदूरी नहीं करेगा.
पढ़ालिखा होने के अहम में रघु ने कोई हुनर भी नहीं सीखा. शादी हो गई, बच्चे हो गए, फिर तो जिंदगी जीने के लिए कुछ न कुछ करना ही था. उसी अहम और मांबाप की नाराजगी की वजह से रघु की कोई नौकरी नहीं लगी और आखिर में जिंदगी गुजारने के लिए उसे भी मजदूरी करनी पड़ी.
‘‘देखो बेटा, बात ऐसी है कि जब जैसा तब तैसा, नहीं किया तो इनसान कैसा? अभी समय की यही मांग है कि मैं मजदूरी कर के अपने परिवार का पेट पालूं, तो वह मैं कर रहा हूं और तू अपने काम से काम रख,’’ रघु ने अभी भी अपने पढ़ेलिखे होने का सुबूत दार्शनिक बातों से दिया.
‘‘चचा, ननकू ने तो मैट्रिक कर ली है. अब उस को भी क्यों नहीं ले आते हो काम पर? सारा दिन घूमता रहता है.’’
‘‘अरे, उस को भी अहम ने घेर लिया है. कहता है कि परदेश जाएगा, हुनर सीखेगा. मेरी तरह मजदूरी नहीं करेगा. बिलकुल अपने बाप पर गया है,’’ गहरी सांस लेते हुए रघु ने कहा.
‘‘सही तो कहता है चचा, यहां मजदूरी करने में कोई इज्जत नहीं है. न काम का ठिकाना, न मजदूरी का. ऊपर से तुम ने इतना कर्जा ले लिया है कमेटी से ब्याज पर, हर हफ्ते किस्त देनी पड़ती है. उस को परदेश भेजो. वहां कुछ कमाएगा, तो आप का ही बोझ हलका होगा.’’
शाम को मिली मजदूरी ले कर रघु घर की ओर चला, तो ननकू रास्ते में ही दिख गया. बस, फिर क्या था. दिन में कील से चुभे सवालों की भड़ास गांव वालों के सामने ही ननकू पर निकाल दी.
नतीजतन, रात के 10 बज गए, पर ननकू घर नहीं आया. मां का दिल बैठा जाता था और धीरेधीरे रघु को भी घबराहट होने लगी. उस ने डर के मारे घर में बताया भी नहीं कि रास्ते में उस ने ननकू को डांटा था. रातभर मांबाप सोए नहीं.
चाहे जो भी हो जाए, देरसवेर ननकू घर जरूर आ जाया करता था, पर इस बार वह घर नहीं आया. सब परेशान. गांव के उस के दोस्तयारों से पता चला कि उस के कुछ दोस्त परदेश जाने वाले थे, रात में वह उन्हीं के साथ था.
मां का कलेजा धक से रह गया. पक्का वह चला गया अपने दोस्तों के साथ. रघु के अंदर मिलेजुले भाव उमड़घुमड़ रहे थे. थोड़ा डर था कि इतनी कम उम्र और गुस्से में परदेश चला गया. थोड़ी खुशी इसलिए थी कि कुछ कमाएगा तो घर के हालात थोड़े अच्छे होंगे.
ट्रेन के जनरल डब्बे में खिड़की की तरफ बैठा ननकू पौ फटने के साथ आ रही सूरज की रोशनी में नई उम्मीदें देख रहा था. अंदर से वह इतना खुश था मानो जैसे किसी जेल की कैद से रिहा हुआ हो. आज उस का अपना ही बापू दुनिया का सब से जालिम आदमी लग रहा था.
ट्रेन की तेज रफ्तार की तरह उस के सपने भी तेजी से बढ़े चले जा रहे थे. घर के हालात और बापू की किचकिच की वजह से वह हमेशा घर से भाग जाना चाहता था.
हिंदी फिल्मों की दुनिया में खोया रहने वाला ननकू हमेशा यही सोचता था कि घर से भागने के बाद वह तब तक घर वापस नहीं आएगा, जब तक कि बहुत बड़ा आदमी नहीं बन जाता.
बड़ा आदमी बनने के बाद अपनी बड़ी सी गाड़ी में शहर से गांव आएगा, अपने दरवाजे पर उतरेगा, जब बापू दौड़ कर उस के पास आएंगे तो वह उन्हें नजरअंदाज करते हुए मां के पास चला जाएगा. आज उसे ऐसा लग रहा था कि उस के सपने सच होने की ओर यह पहला कदम है.
इधर गांव में सुबहसुबह घर का माहौल एकदम गुमसुम था, कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था. सब खामोशी से खुद ही खुद को तसल्ली दे रहे थे. सब यही कह रहे थे कि जहां भी जाए अच्छे से रहे. 4 बहनों के बाद पैदा हुआ ननकू घर का सब से छोटा था. धीरेधीरे समय के थपेड़ों ने ननकू के भाग जाने का दुख थोड़ा कम कर दिया था.
साल बीतने को था, पर ननकू गांव नहीं लौटा. रघु का कर्ज दिनबदिन वैसे ही बढ़ता चला गया, जैसे ननकू का घर लौट आने या घर के लिए कुछ पैसे भेज देने का इंतजार. दोस्तों के फोन से ननकू घर पर सब से बातें करता, पर रघु से नहीं. इच्छा दोनों बापबेटे की होती थी एकदूसरे से बात करने की, पर ननकू डर से नहीं करता था और रघु अहम से.
सालभर तो ननकू को काम सीखने में ही लग गया. इधर घर की हालत सुधर नहीं पा रही थी. रघु को गांव में कभी काम मिलता, कभी नहीं मिलता था. कर्ज का मूल तो वैसे का वैसा ही रहा, सूद दिनबदिन बढ़ता चला गया.
आखिर में रघु ने भी फैसला किया कि वह भी परदेश चला जाएगा, कम से कम वहां रोज काम और समय पर मजदूरी तो मिल जाएगी. गांव के कुछ लोग कमाने के लिए किसी और परदेश जा रहे थे, रघु भी उन्हीं के साथ हो लिया.
वहां जाते ही रघु को अच्छी पगार वाला काम मिल गया और इधर ननकू भी कुछ पैसे भेजने लगा, जिस से जिंदगी थोड़ीथोड़ी पटरी पर आने लगी.
इधर ननकू को उस परदेश की आबोहवा कभी रास नहीं आई. जो सपने वह ट्रेन में संजो कर लाया था, वे ट्रेन में ही कहीं छूट गए थे. यहां कभी उस की मासूमियत छूटी तो कभी बचपना, कभी उस की नींद छूटी तो कभी उस की थकान और जो सब से ज्यादा छूटी, वह थी भूख. अब वह 2-2 वक्त भूखा रह सकता था.
तकनीक की इस दौड़ में जहां अमीर परिवार के बच्चे मोबाइल फोन और लैपटौप की वजह से समय से पहले बड़े हो रहे हैं, वहीं ननकू जैसा किशोर जिंदगी की भागदौड़ वाली भीड़ की वजह से समय से पहले बड़ा हो गया.
एक बात ननकू की समझ में अच्छे से आ गई थी कि रातोंरात अमीर आदमी सिर्फ 2-3 घंटे की फिल्मों में ही बना जा सकता है, असल जिंदगी में नहीं. गुस्से में वह अपने दोस्तों के साथ परदेश आ तो गया था, पर यहां हर कदम पर पैसे चाहिए थे. इसी चिंता में उस की सेहत दिनबदिन बिगड़ती चली जा रही थी.
इधर कुछ दिनों से ननकू के पेट में अजीब सा दर्द शुरू हो गया था. इस सब के बावजूद दिनरात मेहनत कर उस ने खुद के लिए एक मोबाइल फोन लिया और घर जाने को ले कर पैसे जोड़ने लगा, पर पेट का दर्द उसे बेचैन कर जाता था और फिर एक दिन बेतहाशा दर्द उठा.
सब दोस्तों ने मिल कर किसी तरह ननकू को सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया. आननफानन में सर्जरी हुई, पर ननकू को होश नहीं आया और 2 दिन बाद वह जिंदगी की जंग हार गया. डाक्टरों ने आननफानन में ननकू को डिस्चार्ज कर दिया मानो किसी अनहोनी को छिपाने की कोशिश की जा रही हो.
दोस्तों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें. कैसे गांव में खबर करें. ननकू का क्रियाकर्म यहीं कर दें या गांव ले जाएं और ले जाएं तो कैसे ले जाएं. फिर सोचविचार कर सब से पहले रघु को ननकू के ही मोबाइल से फोन किया.
ननकू का फोन आया देख रघु को समझ ही नहीं आया कि वह खुश हो या हमेशा की तरह गुस्सा करे. उस के हाथ थरथराने लगे, दिल तेज धड़कने लगा मानो जैसे रघु बेटा हो और ननकू उस का पिता हो. उस समय रघु ऐसा महसूस करने लगा कि फोन पर पिता के रूप में उसे ननकू से डांट पड़ने वाली है.
इतने में फोन कट गया. पिता होने के अहम में रघु सोच में पड़ गया कि वापस इधर से फोन लगाए या नहीं, तब तक दूसरी बार फोन बज उठा. बगैर एक पल गंवाए उस ने फोन उठा लिया और मिलेजुले भाव के साथ ‘हैलो’ कहा.
जब रघु को लगा कि दूसरी तरफ ननकू नहीं है, तो उस की घबराहट थोड़ी कम हो गई और फिर उस के अंदर जो भाव उभरे, उस बारे में उस ने सोचा ही नहीं था. पर जो खबर उस ने फोन पर सुनी, उस की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
पत्थर तो रघु पहले से था, पर ऐसा लगा कि उस पत्थर को बर्फ की वादियों में कोई अकेला छोड़ आया हो. उस की आंखों से आंसू नहीं निकले मानो आंसू अपना रास्ता भूल कर आंख के बदले खून की नसों में चले गए हों और वहां पर खून के साथ लड़ाई कर पूरे शरीर में एक भूचाल सा ला दिया हो, जो उस के बदन में थरथराहट पैदा कर रहा था.
‘‘उसे ले कर गांव आ जाओ. पैसे मैं भेज देता हूं,’’ इतना कह कर रघु ने फोन काट दिया.
गांव में ऐसा माहौल था मानो जैसे कोई जलजला आ गया हो. ननकू के दुनिया से चले जाने की खबर आसपास के गांवों में आग की तरह फैल गई. सारे नातेरिश्तेदार भी घर पर जमा होने लगे, पर अभागा रघु कैसे आए, सौ लोग सौ मशवरे जारी थे.
इधर रघु जल बिन मछली जैसे छटपटा रहा था मानो कोई जादू की छड़ी मिल जाए, जिस के सहारे वह झट से अपने लाल के पास पहुंच जाए. उस की पिछले 6 महीने की कमाई एंबुलैंस के किराए में चंद मिनटों में पहले ही खत्म हो चुकी थी. अमीर लोगों के लिए तो सब मुमकिन है, पर गरीब के जिंदगीरूपी शब्दकोश में कुछ शब्द नहीं होते हैं, ‘मुमकिन’ शब्द उसी में से एक है.
मीलों दूर इस परदेश से अपने गांव समय पर पहुंचना रघु के लिए कहां मुमकिन था. ऐसे में उस के साथ काम करने वाले लोगों ने उस की मदद की और उसे हवाईजहाज से गांव भेजने का इंतजाम कर दिया. उसी हवाईजहाज में सफर कर रहे एक सहयात्री को ढूंढ़ उस से मदद के लिए बोल कर रघु को हवाईअड्डे के अंदर भेज दिया गया.
जिंदगी में पहली बार रघु का पढ़ालिखा होना उस के काम आया. हवाईजहाज के 2 घंटे के सफर में आसमान की ऊंचाइयों के बीच रघु को अपनी जिंदगी की सारी गलतियां घड़ी की सूई की तरह घूमती दिखाई देने लगीं. ननकू के इन हालात के लिए वह खुद को जिम्मेदार मानने लगा.
विद्यार्थी जीवन के कुछ भूलेबिसरे सपने भी याद आने लगे, जिन में से हवाईजहाज पर चढ़ना भी एक था…
हवाईजहाज की तेज आवाज के बीच रघु खुशी और गम में फर्क नहीं कर पा रहा था. ऐसा लग रहा था कि सारे फर्क मिट गए हों. लोग अपनी चाहत को पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते, लेकिन कभी सब दांव पर लगा कर भी कुछ मिले तो लगता है कि हम ने जिंदगी से यह तो नहीं मांगा था. रघु ननकू का शव आने से पहले ही गांव पहुंच गया था.
ननकू का बड़ी गाड़ी से गांव आना और रघु का हवाईजहाज पर चढ़ना… दोनों के सपने पूरे हो गए, पर इस कीमत पर पूरे होंगे, ऐसा उस ने कभी नहीं सोचा था. अधूरे सपने तो अधूरे रह ही गए. जवान बेटे की लाश देखने की हिम्मत रघु के अंदर नहीं थी.