‘‘अरे, थोड़ा ‘आहऊह’ तो करो, तब तो मजा आए. क्या एकदम ठंडी लाश की तरह पड़ी रहती हो,’’ ठाकुर रंजीर सिंह अपनी बीवी सुमन के बदन से अलग होता हुआ बोला और इस के बाद अपना मोबाइल फोन उठा कर एक पोर्न साइट खोल दी.
सुमन ने शरमा कर आंखें बंद कर लीं तो रंजीर सिंह उसे जबरदस्ती फिल्म दिखाने लगा और फिल्म की हीरोइन के बड़े उभारों की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘इसे देखो, कितना भरा हुआ शरीर है. जमीन पर लिटा दो तो गद्दे का कोई काम ही नहीं है… और एक तुम हो कि शरीर में बिलकुल मांस ही नहीं है.’’
सुमन की सपाट छाती की ओर हिकारत भरी नजरों से देखते हुए रंजीर सिंह ने कहा और बेमन से उस के ऊपर चढ़ गया और अपनी मंजिल को पाने के लिए ताबड़तोड़ जोर लगाने लगा.
रंजीर सिंह के पिता ठाकुर राजेंद्र सिंह चाहते थे कि उन का बेटा खूब पढ़ाई करे और इस के लिए उन्होंने रंजीर सिंह को अपने गांव से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ यूनिवर्सिटी में भेजा भी, पर रंजीर का मन वहां पढ़ाई में नहीं लगा. वह या तो लड़कियों के आगेपीछे घूमता, उन्हें छेड़ता और बाकी समय में कैंपस की राजनीति के चक्कर में पड़ गया.
देरसवेर ठाकुर राजेंद्र सिंह यह बात समझ गए थे कि रंजीर पढ़ाई की जगह आवारागर्दी और मौजमस्ती कर रहा है. उन का यह एकलौता लड़का था, इसलिए उन्होंने उसे वापस गांव बुला लिया.
गांव आ कर भी रंजीर सिंह की हरकतें नहीं छूटी थीं. वह यहां भी आ कर राजनीति करता और अपने पीछे लड़कों की भीड़ ले कर चलता और जिन भी औरतों और लड़कियों को छेड़ने का मन करता, उन्हें छेड़ देता.
रंजीर सिंह की ऐसी हरकतों से तंग आ कर ठाकुर राजेंद्र सिंह ने उस की शादी करा दी.
शादी के बाद रंजीर भोगविलास में डूब गया था. वह कई दिन तक अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकला था, पर जल्दी ही पत्नी से उस का मोह भंग हो गया, क्योंकि सुमन काफी दुबलीपतली थी.
पोर्न फिल्मों के शौकीन रंजीर सिंह के अंदर बैठे हवसी को मजा नहीं मिल पा रहा था और वैसे भी जिस की हर जगह मुंह मारने की आदत पड़ चुकी हो, उसे भला घर में कहां संतुष्टि मिलने वाली थी.
रंजीर सिंह अपने 4-5 दोस्तों के साथ गांव के चौराहे पर बैठता और आनेजाने वाली औरतों के भरे उभारों और उन के कूल्हों को देखता रहता.
पिछले कुछ दिनों से रंजीर सिंह की नजर गांव की एक औरत पर थी. तकरीबन 40 साल की उस औरत का नाम बिजली था.
जैसा नाम था वैसी ही बिजली की काया थी. साड़ी नीचे बांधने के चलते बिजली की गहरी नाभि हमेशा दिखती रहती थी. बिजली भी अपनी नाभि का प्रदर्शन जानबूझ कर करती थी. मर्दों की लालची निगाहों को परखने का हुनर खूब जानती थी बिजली.
बिजली के पति किशोर ने पाईपाई जोड़ कर उसे एक कैमरे वाला मोबाइल फोन दिला दिया था, ताकि बिजली उस पर दक्षिण भारत की फिल्में देख सके. बिजली को वहां की भरीपूरी हीरोइनें देखने का चसका लगा था.
आज जब बिजली कमर मटकाते हुए घर से बाहर जा रही थी, तब उस ने रंजीर सिंह को अपनी ओर घूरते हुए देखा. बिजली ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया और ब्लाउज के अंदर से उस के उभार की गोलाइयां बाहर आने को मचल उठीं.
‘‘वाह, माल हो तो ऐसा,’’ रंजीर सिंह बुदबुदा उठा था.
‘‘मालिक, कहो तो अभी उठा ले आएं आप की खातिर?’’ मनकू ने रंजीर सिंह की चापलूसी करते हुए कहा.
बदले में पकिया ने मनकू की तरफ आंखें तरेरते हुए कहा, ‘‘अरे, जानते नहीं कि बिजली दलित है और हमारे साहब तो खानदानी ठाकुर हैं. वे भला इस दो कौड़ी की अछूत औरत के साथ संबंध क्यों बनाएंगे…’’
पकिया की यह बात सुन कर रंजीर सिंह जोर से हंसने लगा और कहा, ‘‘औरतों के मामले में हम जातिवाद का विरोध करते हैं. भले ही वह औरत दलित है, पर,’’ अचानक से रंजीर सिंह शायराना हो गया था. वह बोला, ‘‘जिस तरह से ठाकुरों की ताकत कभी कम नहीं मानी जाती, चिलम, दारू और औरत कभी जूठी नहीं मानी जाती, इसलिए हम बिजली नाम की इस औरत का करंट जरूर चैक करना चाहेंगे.’’
बिजली का पति शहर जा कर एक दुकान पर नलसाजी का काम करता था. वह सुबह निकल जाता और देर रात तक वापस आ पाता. बिजली बड़ेबड़े सपने देखने वाली औरत थी. उस के मन में आगे बढ़ने की ललक भी थी.
बिजली के बच्चे नहीं थे, इसलिए उस ने अपनेआप को बिजी रखने के लिए आंगनबाड़ी में काम करना शुरू कर दिया था, जिस से चार पैसे भी आते थे और गांव की औरतों से भी मिलना हो जाता था.
सरकारी आंकड़े भले ही कुछ कहते हों, पर सचाई तो यह थी कि इस गांव में तरक्की के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ था. सड़कें टूटी हुई थीं. अब भी जगहजगह पानी भर जाता था और गांव में बिजली न रहने के चलते अंधेरा ही रहता था.
गांव की औरतों और मर्दों ने कई बार अपनी सारी मांगें सरपंच के सामने रखी थीं, पर कोई फायदा नहीं हुआ.
‘‘यह खड़ूस सरपंच जब बदलेगा, तभी इस गांव का कुछ भला हो पाएगा,’’ आंगनबाड़ी की औरतें आपस में बातें कर रही थीं. उन में से एक की आवाज बिजली के कान में भी पड़ रही थी.
दूसरी औरत ने बताया कि किस तरह से एक बार सड़क के किनारे से आते समय अंधेरे का फायदा उठा कर किसी आदमी ने उसे छेड़ने और उस के उभारों को मसलने की कोशिश की थी.
आज बिजली दूसरे गांव से वापसी कर रही थी. वह बस से उतर कर अभी गांव में घुसी ही थी कि उस के पति का फोन आ गया. बिजली ने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मोबाइल निकाला और बात करना शुरू किया.
उस के पति ने बताया कि आज रात उसे वापस आने में देर हो जाएगी, इसलिए वह खाना समय से खा ले.
अपने पति से बातें करने के बाद बिजली ने मोबाइल को वापस अपने उभारों में छिपा लिया. दूर खड़े रंजीर सिंह ने बिजली को ऐसा करते देखा तो वह हवस से भर गया.
रंजीर सिंह बिजली के पीछेपीछे चलने लगा और मौका देख कर उस ने बिजली को पीछे से अपने हाथों से दबा दिया.
बिजली एक पल को जरूर चौंकी थी, पर रंजीर सिंह को देख कर वह मुसकरा पड़ी.
बिजली की इस मुसकराहट से रंजीर सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उस का रास्ता साफ है, इसलिए बातचीत करने के बाद उस ने बिजली से उस का मोबाइल नंबर ले लिया.
रंजीर सिंह अब बिजली के मोबाइल फोन पर गंदे चुटकुले भेजने लगा. कभीकभी वह कोई पोर्न क्लिप भी भेज देता था.
एक दिन बिजली ने रंजीर सिंह से पूछ ही लिया कि वह ऐसी फिल्में क्यों भेजता है, तो रंजीर ने उसे बताया कि वह बिजली के मांसल अंगों को ऐसे ही नोचना और चूसना चाहता है जैसे कि इन फिल्मों में दिखाया गया है और घर में उसे अपनी पत्नी से यह सब सपोर्ट नहीं मिलता है.
‘‘पर हर चीज की कीमत होती है ठाकुर साहब,’’ बिजली एक ठाकुर को अपने पीछे लट्टू देख कर खुश हो रही थी. उस ने कीमत मांगी तो पैसे के घमंड में चूर रंजीर सिंह ने हर कीमत चुकाने का वादा कर दिया.
इस के बाद उन दोनों की बातें और मुलाकातें बढ़ती गईं और एक दिन रंजीर सिंह बिजली को ले कर गांव से 10 किलोमीटर दूर अपने फार्महाउस पर आया. वह अपने साथ शराब की 2 बोतलें भी लाना नहीं भूला था.
बिजली के हाथों से जी भर कर शराब पी गया था रंजीर सिंह. उस के बाद वह बिस्तर पर लेट गया और बिजली को अपने ऊपर आने को कहा.
शरीर से थोड़ी मोटी बिजली ठाकुर के ऊपर बैठी तो रंजीर सिंह को जन्नत का वह सुख मिला जो उसे आज तक अपनी पत्नी से नहीं मिला था. दोनों ने फार्महाउस पर जी भर कर सैक्स का मजा लिया और उस दिन के बाद से बिजली और रंजीर सिंह अकसर यहां आते, खातेपीते और जिस्मानी सुख का मजा लेते.
कुछ महीने के बाद बिजली ने जब अपना मेहनताना मांगा, तो ठाकुर रंजीर सिंह ने उसे 5,000 रुपए दे दिए, जिसे बिजली ने लेने से मना कर दिया
और अपने शरीर के बदले में बिजली ने उसे गांव का सरपंच बना देने की मांग कर डाली.
‘‘पगला गई हो क्या… तुम्हारे कहने से हम तुम्हें सरपंच बनवा देंगे… नीच जात को थोड़ा सा मुंह क्या लगा लिए, तुम तो सिर पर चढ़ कर नाचने लगी,’’ चीख रहा था रंजीर सिंह. पर बिजली खामोश थी, जैसे उसे इन सब बातों का अंदाजा पहले से ही था.
उस ने मुसकराते हुए अपना मोबाइल फोन रंजीर सिंह की ओर बढ़ा दिया, जिस में उन दोनों की बिस्तरबाजी की वीडियो क्लिप थीं, जो खुद बिजली ने बना ली थीं.
बिजली ने कहा कि अगर ये वीडियो क्लिप गांव में लोगों को दिखाई गईं, तो एक नीच जाति की औरत के साथ सोने से ठाकुर की कितनी बेइज्जती हो जाएगी, यह सोच लेना. और फिर बिजली ने एक क्लिप को इंटरनैट पर डाल देने की धमकी भी दे दी.
रंजीर सिंह की समझ में आ गया था कि वह गलती कर बैठा है, पर अब पछताने से क्या फायदा था. बिजली को खामोश रखने के लिए उसे वह देना ही होगा, जो उसे चाहिए था यानी गांव के सरपंच का पद.
ठीक समय आने पर रंजीर सिंह इस कोशिश में जुट गया और इस के लिए उस ने बिजली की जाति को ही हथियार बनाया और जोरशोर से गरीब और नीची जाति की बिजली को ही सरपंच बनाए जाने की बात कही.
बिजली थोड़ीबहुत पढ़ीलिखी थी, आंगनबाड़ी में काम भी करती थी और वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी जानती थी, इसलिए उस से बेहतर सरपंच गांव के लिए नहीं हो सकता
था. रंजीर सिंह की इन्हीं दलीलों के चलते बिजली को गांव का सरपंच चुन लिया गया.
सरपंच बनने के बाद भी रंजीर और बिजली ने फार्महाउस पर जाना नहीं छोड़ा. दोनों साथ मिल कर ही ग्राम पंचायत भी जाते और गांव में भी साथसाथ घूमते.
एक गांव का ठाकुर था, तो दूसरी गांव की सरपंच. अब ये दोनों गांव की तरक्की करने के नाम पर साथ रहते थे और गांव वाले कुछ नहीं कह पाते थे, जिस की बड़ी वजह यह भी थी कि सरपंच बनने के बाद बिजली ने गांव और औरतों की भलाई के बहुत सारे काम करा दिए थे.
जहां पर अंधेरा रहता था, वहां अब स्ट्रीट लाइट लग रही थी. जहां पर
टूटी सड़कों के चलते जलभराव रहता था, वहां पर अब सड़क बन गई थी. गरीब और दलित बेटियों का सामूहिक विवाह का आयोजन कराती थी सरपंच बिजली.
तेज और चतुर बिजली के सरपंच बनने के बाद अब गांव में घरेलू हिंसा के मामलों में भी कमी आ रही थी. बिजली ने गांव में इस तरह के नारे भी लिखवा दिए : ‘बेटी होती घर की शान बेटी से बढ़ता है मान. बेटी कहती बातें सच्ची बेटी होती घर में अच्छी.’ दीवारों पर गांव की साफसफाई की बातें लिखी थीं : ‘साफसुथरा हो गांव हमारा यह तो है परिवार हमारा. धीरेधीरे करें तैयारी सफाई से भागे सब बीमारी.’
इस में शक नहीं था कि सरपंच के रूप में बिजली की छवि निखर कर आ रही थी, पर जैसा कि हर किसी के विरोधी होते ही हैं, इसी तरह बिजली से जलने वाली औरतों का एक गुट भी था, जिस में से एक ने बिजली पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘ठाकुर के साथ सो कर तो कोई भी सरपंच बन सकता है.’’
यह बात सुन कर बिजली को बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि वह उन सब का मुंह नोच ले, पर उस ने शांति से जवाब देना ही उचित समझा, ‘‘हो सकता है, लोगों को मेरा यह तरीका गलत लगे, पर कभीकभी अपनी मांगों को ले कर सिर्फ आंदोलन करना ही काफी नहीं होता…
‘‘और फिर जिस जाति व्यवस्था के भंवरजाल में हम फंसे हैं, उस से निकलने के लिए हमें कई रास्ते खोजने पड़ते हैं… क्या पता, कौन सा रास्ता हमें हमारी मनचाही मंजिल तक पहुंचा दे,’’ बिजली बोले जा रही थी.
‘‘और फिर पैसे वाले ठाकुर तो जबरदस्ती हमारे शरीर को भोगते आए हैं… हम भले ही अछूत हों और वे हमारे हाथ का पानी न पिएं, पर वे हमारे अंगों पर मुंह मारने से गुरेज नहीं करते और अगर हम अपने शरीर का इस्तेमाल कर के अपना कुछ फायदा करते हैं, तो हर्ज ही क्या है…’’
बिजली की बुराई करने वाली औरतों को लगा था कि बिजली उन के आरोप लगाने से सहम जाएगी, पर बिजली के ऐसा कह देने से उन सब का मुंह बंद हो गया.
बिजली ने आंदोलन तो नहीं किया, पर अपने खूबसूरत शरीर का इस्तेमाल कर के अपनी मनचाही मंजिल को पा ही लिया था.