‘‘सुनती हो चंपा?’’
‘‘क्या बात है? दारू पीने के लिए पैसे चाहिए?’’ चंपा ने जब यह बात कही, तब विनोद हैरानी से उस का मुंह ताकता रह गया.
विनोद को इस तरह ताकते देख चंपा फिर बोली, ‘‘इस तरह क्या देख रहा है? मु झे पहले कभी नहीं देखा क्या?’’
‘‘मतलब, तुम से बात करना भी गुनाह है. मैं कोई भी बात करूं, तो तुम्हें लगता है कि मैं दारू के लिए ही पैसा मांगता हूं.’’
‘‘हां, तू ने अपना बरताव ही ऐसा कर लिया है. बोल, क्या कहना चाहता है?’’
‘‘लक्ष्मी होटल में धंधा करते हुए पकड़ी गई.’’
‘‘हां, मु झे मालूम है. एक दिन यही होना था. वही क्या, पूरी 10 औरतें पकड़ी गई हैं. क्या करें, आजकल औरतों ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए यह धंधा बना लिया है. लक्ष्मी खूब बनठन कर रहती थी. वह धंधा करती है, यह बात तो मुझे पहले से मालूम थी.’’
‘‘तु झे मालूम थी?’’ विनोद हैरानी से बोला.
‘‘हां, बल्कि वह तो मुझ से भी यह धंधा करवाना चाहती थी.’’
‘‘तुम ने क्या जवाब दिया?’’
‘‘उस के मुंह पर थूक दिया,’’ गुस्से से चंपा बोली.
‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया?’’
‘‘मतलब, तुम भी चाहते थे कि मैं भी उस के साथ धंधा करूं?’’
‘‘बहुत से मरद अपनी जोरू से यह धंधा करा रहे हैं. जितनी भी पकड़ी गईं, उन में से ज्यादातर को धंधेवाली बनाने में उन के मरदों का ही हाथ था,’’ विनोद बोला.
‘‘वे सब निकम्मे मरद थे, जो अपनी जोरू की कमाई खाते हैं. आग लगे ऐसी औरतों को…’’ कह कर चंपा झोंपड़ी से बाहर निकल गई.
चंपा जा जरूर रही थी, मगर उस का मन कहीं और भटका हुआ था.
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