‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले...‘ बजट 2024 के संदर्भ में मिर्जा गालिब का यह शेर देश के किसानों पर बिलकुल सटीक बैठता है. इस बजट से सब से ज्यादा निराशा देश के किसानों को हुई है.

यों तो पिछले कुछ सालों से सरकार दूसरे सैक्टरों की तुलना में कृषि एवं किसानों की योजनाओं और अनुदानों पर लगातार डंडी मारती आई है, किंतु चूंकि यह बजट आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले का बजट था, इसलिए देश की आबादी के सब से बड़े तबके के किसानों ने इस बजट से कई बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं.

जले पर नमक यह है कि अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यों तो कई बार देश के अन्नदाता किसानों का जिक्र किया और उन्हें देश की तरक्की का आधार भी बताया, किंतु उन के बजट का अध्ययन करने पर यह साफ हो जाता है कि उन के इस जिक्र का और किसानों को ले कर उन की तथाकथित फिक्र का बजट आबंटन पर रत्तीभर भी असर नहीं है. सच तो यह है कि कृषि से जुड़ी अधिकांश योजनाओं के बजट में इस बार बड़ी बेरहमी से कटौती की गई है.

हमारे यहां का किसान इस देश का पेट भरने के प्रयास में गले तक कर्ज में डूबा हुआ है, पर बजट में कर्जमाफी का जिक्र तक नहीं है. किसानों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए कर्जमाफी के साथ ही देशभर के किसानों की बहुप्रतीक्षित जरूरी मांग, हरेक किसान की हर फसल को अनिवार्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए एक ‘सक्षम न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून‘ की घोषणा अवश्य करेंगे.

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