दिनेश और महेश अपने घर के सूरजचांद थे. मांबाप ने उन्हीं की रोशनी से अपनी जिंदगी को रोशन करना चाहा. दोनों को कालेज में पढ़ने के लिए लखनऊ भेजा गया.

नवाबों की नगरी को देख कर वे दोनों दंग रह गए. लखनऊ की हवा लगते ही वे पढ़ाईलिखाई भूल गए. वे कभीकभार ही कालेज जाते, बाकी समय मीना बाजार की हवाखोरी में बिताते, जहां हमेशा सुंदरियों का बाजार सा लगा रहता.

उन दोनों के पिताजी फौज में कर्नल थे. वे हर महीने मोटी रकम भेजते और हमेशा चिट्ठियों में लिखते कि पढ़ाई में किसी तरह की लापरवाही न करना, पर लाड़ले तो ऐश कर रहे थे.

उन्होंने 2 कमरे का मकान किराए पर लिया हुआ था. छोटा भाई महेश शुरू में कुछ पढ़तालिखता रहा, पर जब उस ने बड़े भाई को मस्ती करते देखा, तो वह भी उसी रास्ते पर चल पड़ा. वे दोनों अपनीअपनी प्रेमिकाओं को ले कर शहीद पार्क में गपशप करते रहते.

कुछ समय बाद उन के पिता का तबादला जम्मू हो गया. वे दोनों चिट्ठी में ?ाठ लिखते रहते कि उन की पढ़ाई ठीकठाक चल रही है. साथ ही, महंगाई का रोना रोते हुए वे ज्यादा पैसे भेजने को लिखते. उन के पिता अब पहले से भी ज्यादा रुपए भेजने लगे थे.

दिनेश के यहां एक लड़की ममता का काफी दखल रहता था, जो अपनी छोटी बहन के साथ पढ़ने आई थी. वे दोनों खूब सैरसपाटा करते. आखिर में दोनों ने शादी कर ली.

फिर ममता की छोटी बहन की मुहिम भी शुरू हो गई. महेश को लगा कि वह दौड़ में पीछे छूटा जा रहा है. उस ने भी हाथपैर मारे और छोटी बहन के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

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