चौधरी नत्था सिंह के घर एक बैठक चल रही थी. एक मैनेजर और कई दूसरे लोग चौधरी नत्था सिंह के ड्राइंगरूम में बैठे सलाह मशवरा कर रहे थे. चौधरी नत्था सिंह जिले के गांवों के चमड़े के ठेकेदार थे. मरे हुए जानवरों का चमड़ा निकलवा कर और उन के अंगों का कारोबारी इस्तेमाल कर के चौधरी साहब करोड़ों रुपए सालाना कमाते थे.
हैरत की बात यह थी कि वे खुद कुछ नहीं करते थे. सभी गांवों में उन के द्वारा बहाल 10-20 दलित तबके के लोग अपने गांवों के मरे हुए जानवरों की लाश उठाते थे और उन का चमड़ा, सींग, चरबी वाला मांस वगैरह चौधरी साहब के गोदाम में भेज देते थे. महीने में 2 बार उन को उन के काम का नकद भुगतान कर दिया जाता था.
चौधरी साहब के पास 2 ट्रैक्टरट्रौली समेत एक जीप और एक दूसरी शानदार कार थी. उन के 6-6 फुट के 2 नौजवान भतीजे लाइसैंसी रायफल ले कर हमेशा उन के साथ रहते थे.
चौधरी साहब की गांवों के दलितों पर इतनी मजबूत पकड़ थी कि पूरे जिले के सांसद, विधायक, डीएम, एसपी उन के साथ अदब और इज्जत के साथ पेश आते थे. वे शहर में एक बड़ी सी कोठी में शान से रहते थे. गांव में उन का 5 बीघे का गोदाम है और तकरीबन 50 बीघा खेती की जमीन वे अपने ही तबके के दूसरे किसानों से खरीद चुके थे.
चौधरी साहब के ज्यादातर दलितों पर सैकड़ों एहसान थे. दवादारू से ले कर पुलिस केसों में उन की मदद करना और शादी में हजारों रुपए की मदद करना उन का शौक ही नहीं, रोजमर्रा का काम था.
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