हिंदी फिल्म ‘पति, पत्नी और वो’ के एक सीन में हीरो कार्तिक आर्यन बोलता है, ‘‘बीवी से सैक्स मांग लें तो हम भिखारी. बीवी को सैक्स के लिए मना कर दें तो हम अत्याचारी. और किसी तरह जुगाड़ लगा के उस से सैक्स हासिल कर लें तो बलात्कारी भी हम हैं.’’

इस संवाद पर बवाल हुआ था और बहुत से लोगों को यह एतराज था कि इस तरह के संवाद मैरिटल रेप (शादी के बाद पत्नी के साथ जबरदस्ती या बहलाफुसला कर सैक्स करना) को बढ़ावा देता है और मर्दों की घटिया सोच को भी दिखाता है. कोई भी मर्द सैक्स पाने के लिए भिखारी, अत्याचारी और यहां तक कि बलात्कारी भी बन सकता है.

क्या वाकई ऐसा है? क्या जब कोई लड़की ‘नो मींस नो’ बोलती है, तो मर्द को सम?ा जाना चाहिए कि उसे अपनी हद नहीं पार करनी चाहिए? लेकिन क्या लड़कियों, खासकर भारतीय समाज में जहां लड़की को मर्दवादी सोच के चलते दोयम दर्जे का सम?ा जाता है, को इतनी सम?ा भी है कि वे सैक्स के लिए कब हां करनी और कब मना करना है, पर अपनी राय मजबूती के साथ रख सकें?

शायद नहीं, तभी तो भारत में सैक्स को ले कर आज भी उतनी गंभीरता से बहस नहीं होती है, जितनी पश्चिमी देशों में. यही वजह है कि जब पतिपत्नी या कोई और जोड़ा बिस्तर पर होते हैं, तो वे सैक्स पर अपनी बात कहने से घबराते हैं.

लड़की को लगता है कि अगर कहीं वह ज्यादा खुल गई, तो उसे धंधे वाली या सैक्स के लिए उतावली सम?ा लिया जाएगा. लड़का भी यही सोच कर चुप्पी साध लेता है कि अगर कहीं लड़की ने बोल दिया कि उसे मजा नहीं आया, तो वह अपना मुंह कैसे उसे दिखा पाएगा.

भारत में अमूमन घरों में भी औरतें या मर्द आपस में ऐसे जुमले बोलते हैं कि सैक्स को ले कर बात भी हो जाती है और किसी को भनक तक नहीं लगती है. बड़ी औरतें नई ब्याही लड़की से जब पूछती हैं कि पति से ‘सही’ निभ रही है न, तो इस ‘सही’ का मतलब यही होता है कि सैक्स लाइफ में कोई दिक्कत तो नहीं है.

सुहागरात पर ‘बिल्ली मारना’ मुहावरा भी यही बात कहता है कि पति को पहली रात को ही अपनी मर्दानगी का नमूना दिखा देना चाहिए, ताकि पत्नी उम्रभर उस के काबू में रहे. ‘सुहागरात पर दूध का असर हुआ या नहीं’, ‘मैं ने तो हनीमून पर छत और पंखा ही देखा’, ‘पलंग सहीसलामत है न’, ‘पति ने छतरी का इस्तेमाल किया या नहीं’ जैसे बहुत से वाक्य हैं, जो सैक्स लाइफ को ही कोडवर्ड में बयां करते हैं.

दरअसल, भारत में सैक्स ऐजूकेशन की कमी के चलते ऐसा है. बच्चों को जो जानकारी परिवार के बड़े लोगों से आसान भाषा में सहज रूप से मिलनी चाहिए, वह नदारद है. परिवार में सैक्स पर बात करना अच्छा नहीं माना जाता है.

लेकिन बच्चे अपनी जिज्ञासा के चलते कहीं से तो जानकारी लेंगे ही, फिर वे उन के दोस्त हों या सोशल मीडिया, अधकचरी जानकारी को ही वे सही मान लेते हैं. इस का नतीजा भयावह भी हो सकता है.

उदाहरण के तौर पर, हमारे समाज में यह सोच बनी हुई है कि अगर सुहागरात पर सैक्स करने के दौरान अगर लड़की के खून नहीं आया तो वह कुंआरी नहीं है, बल्कि खेलीखाई है. पर हकीकत इस से अलग भी हो सकती है, क्योंकि लड़की के अंग की ?िल्ली तो किसी और वजह जैसे खेलकूद या साइकिल चलाने से भी टूट सकती है.

इसी तरह अगर कोई लड़का शादी की पहली रात को अपने साथी को सैक्स का पूरा सुख नहीं दे पाया या वह सैक्स करने में ही नाकाम रहा, तो वह खुद को नामर्द मान लेता है और फिर तनाव में जीने लगता है, जबकि इन दोनों समस्याओं का समाधान उस जोड़े की आपसी बातचीत से ही निकल सकता है.

हाल के सालों में टैलीविजन के इश्तिहारों में माहवारी और कंडोम को ले कर जो खुलापन दिख रहा है, पहले वैसा नहीं था. यहां तक कि ब्रा और पैंटी के इश्तिहार भी छिपेछिपाए से होते थे. इश्तिहार तो बदल गए, पर समाज की सोच अभी भी पुरानी ही है.

मांबाप को आज भी यह लगता है कि अगर उन के बच्चों को कम उम्र में ही सैक्स की जानकारी मिल गई, तो वे उसे अपनी नादानी में आजमाना चाहेंगे, पर ऐसा नहीं है. अगर उन्हें अपने मांबाप से ही सटीक जानकारी मिलने लगेगी तो उन की सैक्स को ले कर फैंटेसी से भी परदा हटने लगेगा. सरकार जो खर्चा एड्स जैसी बीमारियों से जागरूक बनाने के लिए कर रही है, उसे अगर सैक्स ऐजूकेशन पर खर्च करे तो ऐसी बीमारियां बहुत कम पनपेंगी.

लिहाजा, इशारों की भाषा में सैक्स को  सम?ाने के दिनों को अब भूल जाना चाहिए और साफ और सरल अंदाज में बच्चों को इस की तालीम देनी चाहिए. यह परिवार और सरकार दोनों की बराबर की जिम्मेदारी है. फिर किसी मर्द को भिखारी, अत्याचारी या बलात्कारी बनने की नौबत ही नहीं आएगी.

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