रोज की तरह रात को रमेश जब घर पहुंचा तो उसे देख कर उस की घरवाली और उस के बच्चे सहम गए और डर कर एक तरफ हट कर बैठ गए.
‘‘क्या बात है बबलू और मीना, तुम दोनों चुप क्यों हो? देखो, मैं आज तुम्हारे लिए क्या लाया हूं.’’
रमेश ने आमों से भरा थैला अपनी घरवाली की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लता, ये आम अभी धो कर ले आओ. हम सभी साथसाथ खाएंगे.’’
रमेश को बिना शराब पिए देख कर लता को बड़ी खुशी हुई. बबलू और मीना पिताजी की मीठी बोली सुन कर बड़े खुश हुए और मुसकराते हुए उन से लिपट गए.
रमेश एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क था और रोज शराब पीने का आदी था. शुरू में उस ने साथी मुलाजिमों के साथ शौकिया तौर पर शराब पीनी शुरू की थी, मगर बाद में उस का आदी बन गया और रोज शराब पी कर घर आने लगा.
रमेश जब शराब पी कर घर आता तो आते ही लता को किसी न किसी बात पर गालियां देने लगता और उस की पिटाई भी कर देता. बबलू और मीना अपनी मां को पिता से पिटते हुए देख कर सहम जाते और डर के मारे भूखे ही सो जाते.
शराब की आदत के चलते रमेश ने लता के सभी जेवर और अपने हाथ की घड़ी तक बेच डाली थी. उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस में से ज्यादा पैसे तो उस की शराब के खाते में चले जाते थे और जो थोड़ेबहुत बचते थे, उन से घर का खर्चा चला पाना नामुमकिन था. फिर भी लता थोड़ाबहुत काम कर के घर का खर्चा चला रही थी.
लता अपने अलावा बबलू और मीना के लिए कबाड़ी बाजार से पुराने कपड़े खरीद कर गुजारा कर रही थी.
पड़ोसियों के बच्चों के पिता अपने बच्चों के लिए रोज शाम को कुछ न कुछ खाने के लिए लाते थे, मगर रमेश रोज शराब के नशे में चूर हो कर ही घर लौटता था. वह आते ही लता पर बरसने लगता, चाहे उस का कोई कुसूर हो या न हो.
एक दिन तो बात हद से बढ़ गई थी. हुआ यह था कि उस दिन रात को रमेश अपने किसी साथी क्लर्क को साथ ले आया था और वे दोनों शराब पीने लगे थे. लता सामने बैठी खाना बना रही थी कि अचानक रमेश ने उस पर सब्जी से भरी हुई प्लेट दे मारी, जिस से लता के माथे से खून बहने लगा और वह रोने लगी.
‘‘बेवकूफ औरत, तुम मेरे घर
में रहने लायक ही नहीं,’’ कहते हुए रमेश ने उठ कर लता को एक थप्पड़ भी मार दिया.
‘‘क्यों, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’
‘‘क्या किया है… तू मेरे दोस्त पर डोरे डाल रही थी. तू क्या समझती है कि मुझे पता नहीं चलता…’’ कहते हुए रमेश ने 2 थप्पड़ लता को और लगा दिए थे.
लता का रोना देख कर पड़ोस की लीला भाभी वहां आईं और उन्होंने लता को साथ ले जा कर डाक्टर से पट्टी करवाई थी और रमेश को समझाबुझा कर चुप कराया था. इस बीच रमेश का दोस्त जा चुका था.
बेकुसूर लता के माथे की चोट कई दिनों तक उसे रुलाती रही थी और पट्टियों का खर्चा अलग उसे सहना
पड़ा था.
इस के बाद रमेश का लता पर
जुल्म बढ़ता ही गया और वह रोज उसे मारतापीटता रहा.
मगर उस दिन जब रमेश बिना पिए घर पहुंचा और बच्चों के खाने के लिए आम भी ले आया, तो लता की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने पति से आमों का लिफाफा ले कर रख लिया और पति के लिए खाना परोसने लगी.
बबलू और मीना इस इंतजार में बैठे थे कि पिताजी को खाना दे कर मां उन्हें आम देंगी कि तभी रमेश का एक दोस्त आया और उसे अपने साथ ले गया.
‘‘मां, पिताजी कहां गए हैं?’’ मीना ने पूछा.
‘‘वे अपने दोस्त के साथ गए हैं,’’ लता ने कहा.
‘‘पिताजी कब आएंगे मां?’’ बबलू ने पूछा.
‘‘बस, अभी थोड़ी ही देर में आ जाएंगे,’’ लता बोली.
‘‘मां, पिताजी ने आज शराब नहीं पी न?’’ बबलू ने पूछा.
‘‘हां बबलू, आज का दिन हमारे लिए बहुत अच्छा है,’’ लता ने कहा.
‘‘तभी तो आज पिताजी हमारे लिए आम लाए हैं,’’ मीना बोली.
‘‘हां मीना, अगर वे रोज शराब न पिएं तो तुम्हारे लिए रोज ही आम ला सकते हैं,’’ लता ने कहा.
‘‘मां, पिताजी शराब पीना छोड़ क्यों नहीं देते?’’ बबलू ने पूछा.
‘‘लगता है, वे शराब छोड़ने की कोशिश में हैं, तभी तो आज उन्होंने शराब नहीं पी,’’ लता ने कहा.
इसी तरह बातें करतेकरते रात के 10 बज गए. बबलू और मीना धीरेधीरे सोने लगे. लता पति के इंतजार में बैठी रही.
रात के तकरीबन 11 बजे रमेश जब घर लौटा, तो उस पर शराब का नशा चढ़ा हुआ था. लता ने खाने की थाली उस के सामने रखी और पास बैठ गई.
रमेश ने रोटी का एक निवाला तोड़ कर मुंह में रखा ही था कि गुस्से में भड़क उठा, ‘‘जाहिल औरत, यह सब्जी बनाई है या जहर… कौन खाएगा इतनी नमक वाली सब्जी…’’ कह कर उस ने सब्जी की प्लेट एक तरफ फेंक दी.
कुछ समय बाद लता रोज की तरह अपने मर्द के हाथों पिट रही थी और बच्चे बिना आम खाए ही सो चुके थे.
लेकिन उस रोज कुछ और ही हुआ. लता ने पास रखी झाड़ू उठाई और रमेश की पिटाई शुरू कर दी. शराब के नशे में चूर रमेश को मालूम ही नहीं हुआ कि उस के साथ क्या हुआ. वह बेहोश हो कर लुढ़क गया.
सुबह उठा तो रमेश ने देखा कि घर में सन्नाटा था और सारा घर खाली था. लता अपना और बच्चों का सारा सामान ले कर चली गई थी. यहां तक कि रमेश के कपड़े भी नहीं थे. वह उलटी किए हुए और खून से सने कपड़ों में था. उस ने रसोईघर में जा कर अपने मुंह पर पानी डाला और आईने में देखा तो एकदम खरोंचों से भरा चेहरा था. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे.
2-4 घंटे इंतजार करने के बाद भी कोई नहीं आया. पेट में कुछ न गया, तो रमेश को अहसास हुआ कि उस ने क्या गलती की है. पर तब तक बहुत देर नहीं हो चुकी थी. वह दिनभर उन्हीं कपड़ों में बिस्तर पर रोता रहा.