हरियाणा के पलवल इलाके में पलाबढ़ा शक्ति बेहद चंचल और चालाक था. बचपन से ही वह पढ़ाई में तो नहीं, पर दिमाग से बाकी काम बनाने में बहुत तेज था. मिसाल के तौर पर सामाजिक समारोह में दरीगद्दे कैसे लगाने हैं, कौन सा हलवाई बढि़या है, किस जगह पर थोक में आतिशबाजी वाजिब दाम पर मिलेगी जैसी बहुत सी बातों का वह बचपन से ही जानकार था.
शुद्ध खानपान और कर्मठ दिनचर्या ने शक्ति का डीलडौल भी मजबूत बना दिया था. उस की 2 बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और जैसे ही वह 18 साल का हुआ, परिवार वाले उस का भी ब्याह करने के लिए जोर देने लग गए थे. मगर शक्ति के मन में कुछ और ही था. वह अभी शादी के लिए तैयार नहीं था.
दिल्ली में शक्ति के मामा रहते थे. उन की मदद से शक्ति ने वहां के एक कालेज में अपना दाखिला करा लिया. वह शादी करने के दबाव से छुटकारा पाना चाहता था और बाहर पढ़ने को मिला, तो काफी हद तक कामयाब भी रहा.
शक्ति 3-4 महीने बाद कुछ दिन के लिए घर जाता और फिर पढ़ाई का बहाना कर के अपने होस्टल वापस लौट आता. कालेज की जिंदगी उसे खूब रास आने लगी थी. सब चिंताओं और जिम्मेदारियों से परे और यारदोस्तों से हंसीमजाक के साथ वह नएनए अनुभव ले रहा था. शहर का चकाचौंध भरा माहौल उसे सुकून दे रहा था.
शक्ति के डीलडौल और बोलने के हरियाणवी स्टाइल ने उसे जल्दी ही कालेज का एक जानापहचाना चेहरा बना दिया, मगर ज्यादातर लड़कियां जरूर उस से बचती थीं, क्योंकि अपने देहातीपन से वह गुंडा सा लगता था.
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