Family Story : आधी रात गुजर चुकी थी. अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खोला, तो आवाज सुन कर शकुंतला सोते से जाग उठी. थोड़ी देर पहले ही तो उसे नींद आई थी. देखा तो लड़खड़ाता हुआ उमेश कमरे के अंदर दाखिल हो रहा था. उस के पैर जमीन पर सीधे नहीं पड़ रहे थे. उस ने काफी शराब पी रखी थी.

‘‘सौरी शकुंतला, दोस्तों ने जबरदस्ती दारू पिला दी. मैं ने उन्हें काफी मना किया, लेकिन उन सब ने मेरी…’’ अपनी बात पूरी करने से पहले ही नशे की हालत में उमेश बेसुध सा पलंग पर गिर पड़ा.

शकुंतला चुपचाप उमेश की ओर देखती रही. उसे कुछ भी सम झ में नहीं आ रहा था. उमेश को इस हालत में देख कर शकुंतला के भीतर कहीं पत्थर सी जड़ता उभर आई थी. कुछ देर तक शकुंतला जड़वत सी उमेश को बेसुध पड़ा हुआ देखती रही.

कमरे में रजनीगंधा और गुलाब के फूलों की खुशबू फैली हुई थी. विवाहित जोड़े के स्वागत के लिए कमरे की सजावट में कोई कोरकसर नहीं थी. लाल सुर्ख जोड़े में सजीसंवरी शकुंतला पिछले कई घंटों से उमेश का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर पहले ही तो उस की आंख लगी थी.

कितनी सारी बातें शकुंतला ने सोच रखी थीं कहनेसुनने को, पर… शकुंतला ने भरपूर नजर से सोते हुए उमेश की ओर देखा और मन ही मन सोचा, ‘बेचारा उमेश… सच में इस सब में इस की क्या गलती… जरूर इस के दोस्तों ने ही इसे जबरदस्ती दारू पिलाई होगी…’

बेहद सरल स्वभाव की शकुंतला शादी के बाद जब विदा हो कर अपनी ससुराल आई तो किसी भी नई ब्याहता की तरह ही उस की आंखों में भी शादीशुदा जिंदगी के प्रति कुछ सपने थे.

2 कमरे का एक छोटा सा फ्लैट, जिस में शकुंतला की ससुराल वालों के नाम पर, उस की विधवा ननद और शकुंतला का पति उमेश था. उस के सासससुर का देहांत काफी पहले हो चुका था. विधवा ननद प्रतिमा की ससुराल भी पटना में ही थी, लेकिन वह अपने मायके में अपने भाई के पास ही रहती थी.

शकुंतला का पति उमेश किसी प्राइवेट कंपनी में था. ग्रेजुएशन करने के बाद शकुंतला ने अपने कैरियर को ले कर ज्यादा कुछ कभी सोचा नहीं था. उस का सपना भी उस के गांव की सहेलियों की तरह ही एक छोटे से खुशहाल परिवार और एक बेहद प्यार करने वाले पति तक ही सीमित था.

सुबह जैसे ही शकुंतला कमरे से बाहर निकलने को हुई कि उस के कानों में बेहद हलका स्वर सुनाई पड़ा, ‘‘शकुंतला…’’ उस के पास आ कर किसी ने बेहद धीमे से उस के कानों में कहा, तो वह चौंक कर ठिठक गई.

शकुंतला की सहमी हुई सी आंखें उमेश पर ठहर गईं, ‘‘आप…’’

‘‘कल रात के लिए मु झे माफ कर दो,’’ उमेश ने शकुंतला को अपनी बांहों में समेटते हुए कहा.

धीरेधीरे उमेश की सांसों की गरमाहट शकुंतला के पूरे बदन पर फैलने लगी. वह शरमाते हुए वहां से चली गई.

शकुंतला को नाश्ता बनाने में देर हो गई. इस बात पर उमेश काफी नाराज हो गया.

‘‘इस से भूख बरदाश्त नहीं होती. अब जब तुम ने देरी की है, तो इस की नाराजगी भी तुम्हें ही झेलनी होगी,’’ प्रतिमा ने उमेश को कुछ कहने के बजाय शकुंतला को ही हिदायत दे दी.

‘‘कोई बात नहीं. अभी नईनई गृहस्थी है, धीरेधीरे सीख जाएगी,’’ प्रतिमा ने नाश्ते की प्लेट उमेश के आगे कर दी.

धीरेधीरे उमेश हर छोटीबड़ी बात पर शकुंतला को डांटने लगा और जब शकुंतला इन बातों से आहत होती, तो प्रतिमा उसे घरगृहस्थी के तौरतरीके सम झा कर शांत कर देती.

जब कभी हद से ज्यादा बात बिगड़ जाती, तब उमेश से नाराज हो कर शकुंतला उस से कुछ दिन बात नहीं करती थी. तब उमेश कोई न कोई गिफ्ट उसे पकड़ा देता था, अपने किए की उस से माफी भी मांग लेता था और फिर बात आईगई हो जाती थी.

‘‘दोपहर की ट्रेन से मुझे कोलकाता निकलना है. औफिस का कुछ काम है,’’ एक दिन अचानक ही उमेश ने शकुंतला से कहा.

‘‘आप ने पहले से कुछ बताया नहीं, अचानक कोलकाता जाने का प्रोग्राम कैसे बना?’’ शकुंतला ने पूछा.

‘‘तुम ज्यादा सवाल मत पूछो. मेरे साथ सतीश और हरीश भी जा रहे हैं. किसी की भी पत्नी इतने सवाल नहीं पूछती… तुम फटाफट मेरा सामान पैक करो,’’ उमेश ने तेवर दिखाए.

उमेश को कोलकाता गए 3 दिन हो गए थे और उस ने एक बार भी न तो शकुंतला को फोन किया और न ही शकुंतला की किसी भी फोन काल को रिसीव किया, तब हार मान कर शकुंतला ने सतीश को फोन कर दिया.

सतीश ने फोन तो उठाया, पर वह घबराया सा लगा और उस ने तुरंत फोन काट दिया.

शकुंतला को सतीश का यह बरताव कुछ अजीब सा लगा. सतीश के फोन कट करते ही कुछ ही सैकंड के भीतर शकुंतला को उमेश का फोन आया, ‘क्या है? क्यों बारबार फोन कर के परेशान कर रही हो?’

उमेश फोन पर ही शकुंतला पर चिल्ला पड़ा, लेकिन तभी शकुंतला को दूसरी तरफ से किसी लड़की के हंसने की आवाज सुनाई पड़ी.

शकुंतला उमेश से कुछ पूछ पाती, इस से पहले ही उमेश ने फोन कट कर दिया और इस के बाद शकुंतला ने जितने भी फोन किए, उमेश ने किसी का भी रिप्लाई नहीं दिया.

थकहार कर शकुंतला ने हरीश को फोन लगाया. जवाब में उस ने बताया, ‘उमेश मेरे साथ नहीं है. वह सतीश के साथ इस समय सोनागाछी गया हुआ है. सोनागाछी कोलकाता का रैडलाइट एरिया है. वे दोनों हर रात वहीं जाते हैं.’

हरीश से मिली इस जानकारी के बाद शकुंतला ने दोबारा उमेश को फोन किया, पर उमेश का फोन स्विचऔफ था.

अगली सुबह उमेश ने खुद ही शकुंतला को फोन किया. उस ने बताया कि वह तो यहां के एक मंदिर में देवी के दर्शन करने आया है.

लेकिन जब शकुंतला ने उमेश से पिछली रात की हकीकत के बारे में जानना चाहा और हरीश से मिली उस जानकारी पर सवाल किए, तब उमेश गुस्से में शकुंतला के ऊपर फोन पर ही चीखनेचिल्लाने लगा.

‘तुम्हें मु झ पर जरा भी भरोसा नहीं है, तुम उस हरीश की बातों में आ कर मु झ पर झूठा इलजाम लगा रही हो. यह हरीश मु झ से अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने की खातिर तुम्हें बरगला रहा है. वहां आने पर तुम्हें सारी हकीकत बताऊंगा,’ इतना कह कर उमेश ने फोन कट कर दिया.

शकुंतला बेसब्री से उमेश के लौटने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तुम्हारी पटना के लिए ट्रेन थी. तुम कोलकाता से अब तक नहीं लौटे,’’ फोन पर कहते हुए शकुंतला परेशान हो उठी.

‘मैं पटना पहुंच गया हूं, लेकिन रास्ते में हनुमान मंदिर पड़ता है न… तो बिना दर्शन किए कैसे आगे निकल जाता, पूजापाठ करने में ही वक्त निकल गया. तुम चिंता मत करो. मैं बस पहुंच ही रहा हूं.’

2 घंटे बाद वापस शकुंतला ने फोन किया, तो जवाब में उमेश ने कहा, ‘रास्ते में सुनार की दुकान दिख गई.

मु झे याद आया कि तुम्हारे लिए मैं ने झुमके बनाने का और्डर दिया था, वही झुमके जो तुम कितने दिनों से खरीदना चाह रही थी… वही लेने के लिए रुका था कि इतने में तुम्हारा मंगलसूत्र जो टूट गया था, जो बनाने के लिए दिया था, उस दुकानदार का भी फोन आ गया, तो उसे भी लेने आ गया. मैं बस पहुंच ही रहा हूं.’

उमेश जब घर पहुंचा, तो शकुंतला बाहर ड्राइंगरूम में बैठी उस के आने का इंतजार कर रही थी. शकुंतला को कुछ भी पूछने या कहने का मौका दिए बिना ही उस के हाथ में प्रसाद के साथसाथ मंगलसूत्र और झुमके पकड़ा कर उमेश फ्रैश होने चला गया और कुछ देर बाद वह खुद को बेहद थका हुआ बता कर अपने कमरे में आराम करने चला गया.

रात को कमरे में आने के बाद शकुंतला ने वापस उमेश के सामने अपने वही सवाल दोहराए, लेकिन शकुंतला के सवालों का कोई भी सही जवाब दिए बिना उमेश ने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया.

‘‘तुम्हें तो इस बात का भी एहसास नहीं है कि मैं तुम्हारे लिए मंदिरमंदिर घूमघूम कर किस तरह पूजाअर्चना करता आया हूं. अपने घर की सुखशांति और खुशियों के लिए मन्नत मांगता फिर रहा हूं और तुम हो कि किसी बाहर वाले के बहकावे में आ कर अपनी ही बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने पर तुली हो…’’

उमेश ने दुखी होने का नाटक किया, ‘‘तुम जानती नहीं हो कि हरीश कैसा आदमी है. वह जलता है मु झ से. उस की अपनी पत्नी तो हर वक्त मायके भागी रहती है, इसीलिए दूसरों की गृहस्थी में आग लगाने की कोशिश करता रहता है.’’

उमेश को इस तरह दुखी होता देख शकुंतला खुद को ही इन सारी बातों का कुसूरवार सम झने लगी.

‘‘शकुंतला, आज मैं तुम्हें ऐसी खबर सुनाने वाला हूं, जिसे सुनते ही तुम खुशी से झूम उठोगी,’’ एक दिन अचानक ही उमेश ने शकुंतला से कहा, ‘‘मु झे मुंबई की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिली है. मैं अगले हफ्ते ही मुंबई जा रहा हूं.’’

शकुंतला हैरानी से उमेश को देखती रह गई, क्योंकि उमेश ने कभी भी शकुंतला से इस बात का जिक्र भी नहीं किया था कि वह नौकरी बदलने की सोच रहा है या वह मुंबई की किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा है. अब आज अचानक उसे यह खबर सुनाई जा रही है.

शकुंतला को यह सम झ में नहीं आ रहा था कि वह खुशी जाहिर करे या नाराजगी, क्योंकि उमेश ने अभी तक उस से यह बात छिपा कर रखी थी. अगर उमेश यह बात उसे पहले बता देता, तो भी शकुंतला उस के इस फैसले में कौन सी अड़चन डालने वाली थी, बल्कि उसे तो खुशी होती.

मुंबई जाने से पहले नाटक करते हुए उमेश शकुंतला के गले से लिपट कर रोने लगा कि जैसे उसे शकुंतला को यहां अकेली छोड़ कर जाते हुए बहुत दुख हो रहा हो कि वह जा तो रहा है, पर उस का दिल तो यहां शकुंतला के पास ही रहेगा.

जातेजाते उस ने शकुंतला से कहा कि वह मुंबई में जैसे ही रहने की अच्छी जगह ढूंढ़ लेगा, उसे भी वहीं अपने पास बुला लेगा.

उमेश को विदा करते हुए शकुंतला की आंखें भी नम हो उठीं. उस का दिल भी यह सोच कर बैठा जा रहा था कि वहां मुंबई जैसे बड़े शहर में उमेश का खयाल कौन रखेगा.

खैर, देखतेदेखते समय भी अपनी रफ्तार से बीतता चला गया. पहले कुछ दिन, फिर हफ्ते, फिर महीने, फिर एकएक कर 3 साल का लंबा वक्त निकलता चला गया.

शकुंतला उमेश के आने का इंतजार करती रही और वह हर बार कोई न कोई बहाना बनाता रहा.

शुरू के कुछ महीने तो उमेश अकसर फोन कर के शकुंतला से उस का हालचाल पूछ लिया करता था. लेकिन, जैसेजैसे समय बीतता गया, उमेश का फोन भी आना बंद हो गया… धीरेधीरे घरखर्च के पैसे भी देने बंद कर दिए.

शकुंतला जब पूछती, तब वह अपनी ही मजबूरियों की गठरी उस के आगे खोल देता, अपनी बेचारगी का रोना शकुंतला के आगे वह कुछ इस तरह रोता कि शकुंतला की जबान पर ताले लग जाते.

शकुंतला ने भी धीरेधीरे हार मान कर उस से पैसे मांगने बंद कर दिए. अब वह शकुंतला के फोन का जवाब भी अपनी सुविधा के हिसाब से ही देता. धीरेधीरे उस ने फोन करने भी कम कर दिए. इधर शकुंतला ने भी हालात से सम झौता कर लिया था.

शकुंतला अब कैसे भी कर के उमेश की मदद करने की बात सोचने लगी. खुद के लिए नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी, ताकि जिस से वह उमेश पर बो झ भी न बने और जरूरत पड़ने पर उस की पैसे से मदद भी कर सके.

शकुंतला ने जगहजगह नौकरी के लिए अर्जी भेजनी शुरू कर दी, लेकिन कुछ चीजों में उस की जानकारी की कमी के चलते उसे नौकरी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.

शकुंतला की सब से बड़ी कमी उस के अंदर आत्मविश्वास की थी. इंटरव्यू के दौरान वह बोलने में अटक जाती थी, इसलिए अब वह अपनी ऐसी बहुत सी छोटीछोटी कमियों पर जीत हासिल करने की कोशिश में जुट गई.

सिलाई तो शकुंतला को पहले से आती थी, उस ने पास के ही एक बुटीक में पार्टटाइम नौकरी भी पकड़ ली. उन्हीं पैसों से उस ने पर्सनैलिटी डवलपमैंट का कोर्स किया. साथ ही साथ उस ने प्रोडक्ट मैनेजमैंट का भी कोर्स कर लिया.

एक दिन शकुंतला की खुशी का ठिकाना न था, जब उसे मुंबई की ही एक कंपनी से नौकरी का औफर आया. उस ने सोचा कि नौकरी मिलने की बात फिलहाल वह उमेश को नहीं बताएगी. नौकरी जौइन करने के बाद जब उस के हाथ में पहली तनख्वाह के पैसे आ जाएंगे, फिर वह उमेश को बता कर एकदम से हैरान कर देगी.

मुंबई शहर शकुंतला के लिए बिलकुल नया था. उस ने एक पीजी होस्टल में किराए पर एक कमरा ले लिया और रहने लगी. उस की रूम पार्टनर नीता बहुत ही खूबसूरत और मिलनसार थी. बहुत ही कम समय में वह उस की बैस्ट फ्रैंड बन गई.

शकुंतला को अब इंतजार था तो बस पहले महीने की मिलने वाली उस की सैलरी का, जिसे पाने के बाद वह उमेश के साथ रहने चली जाएगी.

शकुंतला उमेश को परेशान नहीं करना चाहती थी और न ही अपने खर्चे का बो झ उस पर डालना चाहती थी, इसलिए वह अपने पहले महीने की सैलरी मिलने के बाद ही मुंबई पहुंचने की सूचना उमेश को दे कर उस के साथ रहना चाहती थी.

अब जबकि वह भी कमा रही है, तो घर के खर्चे का बो झ दोनों साथ मिल कर उठाएंगे. ऐसे में साथ रहने पर उमेश को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी. यही सोचते हुए वह उमेश से मिलने के दिन गिनती रहती.

‘‘तुम्हारा कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है. मेरा मतलब है कि कल तुम फ्री हो न?’’ शकुंतला के औफिस से आते ही नीता ने अचानक पूछा.

‘‘नहीं, कुछ खास काम नहीं है. वैसे, कल औफिस की छुट्टी है, तो सारा दिन आराम करने की सोची है. लेकिन, तुम बताओ कि ऐसा क्यों पूछ रही हो?’’ शकुंतला नीता के पास आ कर बोली.

‘‘मैं तुम्हें निमंत्रण देना चाह रही थी. कल मेरी रिंग सैरेमनी है. बहुत ज्यादा लोगों को न्योता नहीं दिया है, सिर्फ कुछ खास दोस्तों को ही बुलाया है.

‘‘मम्मीपापा मेरे फैसले के खिलाफ हैं, इसलिए उन्होंने आने से मना कर दिया है. मैं पिछले एक साल से मम्मीपापा को मनाने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन मालूम नहीं कि उन्हें उमेश में क्या खराबी नजर आती है.’’

उमेश का नाम सुन कर शकुंतला एक पल के लिए चौंक गई, फिर उस ने सोचा, ‘एक नाम के कई लोग हो सकते हैं.’

‘‘मैं उमेश से बहुत प्यार करती हूं. उस के बिना मैं जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकती. तुम नहीं जानती शकुंतला कि उमेश कितना अच्छा और नेक है. जब से वह मेरी जिंदगी में आया है, मेरी तो दुनिया ही बदल गई है. सच्चा प्यार क्या होता है, उसी ने मु झे सिखाया है,’’ उमेश के प्यार में दीवानी नीता शकुंतला के सामने उमेश चालीसा पढ़े जा रही थी और शकुंतला चुपचाप उस की बातों को सुन रही थी.

‘‘क्या तुम्हारे पास उमेश की कोई तसवीर है? जरा मैं भी तो देखूं, मेरी प्यारी दोस्त जिस के प्यार में इतनी दीवानी है, वह दिखता कैसा है?’’

‘‘क्यों नहीं, यह देखो,’’ नीता एकएक कर उमेश के साथ वाली बहुत सारी तसवीरें अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर शकुंतला को दिखाती चली गई.

शकुंतला अपलक उन तसवीरों को देखती रह गई. उस के लिए यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था. उस के दिल में टीस सी उठने लगी, चेहरा मुरझा गया, आंखों में आंसुओं का सैलाब उतरने लगा, जिसे उस ने बड़े ही जतन से काबू कर लिया.

‘‘नीता, तुम उमेश को कितने समय से जानती हो?’’ शकुंतला ने खुद को संभालते हुए नीता से सवाल पूछा.

‘‘पिछले 2 साल से.’’

‘‘क्या तुम ने उमेश के बारे में भी सबकुछ ठीक से जांचपड़ताल की है. मेरा मतलब है कि वह इनसान कैसा है और उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘यार शकुंतला, तुम बिलकुल मेरे मम्मीपापा की तरह बातें कर रही हो. प्यार जांचपड़ताल कर के नहीं किया जाता, वह तो बस हो जाता है.

‘‘और रही बात उमेश के बारे में जानने की, तो उमेश ने मु झ से कभी भी कोई बात नहीं छिपाई. यहां तक कि उस ने अपनी पहली शादी के बारे में भी मु झे सबकुछ सचसच बता दिया है कि कैसे उस की पहली पत्नी की मौत शादी के कुछ दिन बाद हो गई.

‘‘बेचारे ने तो शादी का सुख भी नहीं भोगा. अब तुम बताओ, क्या अभी भी मु झे उस की ईमानदारी पर शक करना चाहिए?’’

‘‘नीता, क्या तुम ने उमेश की पहली पत्नी की तसवीर देखी है?’’

‘‘नहीं, इस की जरूरत ही नहीं है. जिस बात से उमेश को तकलीफ पहुंचती हो, वह बात मु झे करना भी पसंद नहीं. प्यार करने वाले जख्मों को भरा करते हैं, उसे कुरेदा नहीं करते.’’

‘‘पर, अगर कभी उमेश की पहली पत्नी अचानक तुम्हारे सामने आ कर खड़ी हो जाए, अगर वह जिंदा हो, उस की मौत ही न हुई हो, फिर तुम क्या करोगी?’’

‘‘यह बात तो मैं मान ही नहीं सकती. ऐसा कभी हो ही नहीं सकता. अगर ऐसा हुआ भी जैसा कि तुम कह रही हो, तब भी मैं उमेश का साथ नहीं छोड़ूंगी. मैं तब भी अपने कदम पीछे नहीं हटाऊंगी. उस की पहली पत्नी को ही पीछे हटना होगा. अगर वह जिंदा थी, तो इतने सालों तक उस ने उमेश की खोजखबर क्यों नहीं ली?

‘‘मैं यही सम झूंगी कि जरूर इस में उमेश की कोई न कोई मजबूरी रही होगी. मैं उमेश से जुदा हो कर जी नहीं सकूंगी.’’

शकुंतला का मन उमेश के प्रति नफरत से भर गया. कैसे उस ने जीतेजी उसे मरा हुआ बता दिया. उस का मन पीड़ा से भर उठा. क्या शादी का बंधन, उस की पवित्रता, उस की मर्यादा को निभाने की, अग्निकुंड के सामने मंत्र उच्चारण के साथ जो वचन लिए गए थे, उन्हें निभाने की जिम्मेदारी सिर्फ उसी की थी?

मंगलसूत्र टूट जाने पर शकुंतला को कितनाकुछ सुनाया था. वह हर वक्त डरती रही कि गलती से भी कहीं मंगलसूत्र उस के गले से निकल कर टूट न जाए, जबकि उमेश ने तो यहां उस के भरोसे, उस के आत्मसम्मान को ही चकनाचूर कर दिया.

क्या उस के आत्मसम्मान की कीमत उस के मंगलसूत्र से भी कम है? क्या इस समाज में मंगलसूत्र, सिंदूर और बिंदी की कीमत किसी औरत के आत्मसम्मान से ज्यादा है?

इस समाज में कितनी ही ऐसी औरतें हैं, जिन के पति उन्हें न तो पूरी तरह अपनाते हैं और न ही आजाद हो कर जीने का हक देते हैं. वे शादीशुदा होते हुए भी अकेले जिंदगी बिताने को मजबूर रहती हैं, जबकि उन के पति उन्हें अकेला छोड़ कर ऐशोआराम की जिंदगी बड़े शान से जी रहे होते हैं. तब यही समाज उन के पतियों से कुछ नहीं कहता. लेकिन, किसी औरत के गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर न पा कर सभी उस की बुराई करने लग जाते हैं.

अगर शकुंतला मुंबई नहीं आई होती, तो वह कभी भी अपने पति उमेश की हकीकत जान ही नहीं पाती. वह तो अकेली सुहागन होने का, शादीशुदा होने का तमगा लटकाए जिंदगी को ढोने के लिए मजबूर कर दी जाती.

शकुंतला कुरसी पर बैठे हुए बहुत देर तक मन ही मन काफीकुछ सोचती रही. उस के सामने ड्रैसिंग टेबल पर लगा हुआ आईना था, जिस पर उस ने पिछले दिन ही अपनी बिंदी उतार कर चिपकाई थी, जो उस की ओर झांक रही थी.

शकुंतला रूमाल से आईने को साफ करने लगी. वह रूमाल को आईने पर तब तक रगड़ती रही, जब तक कि वह बिंदी पूरी तरह निकल नहीं गई.

अगले दिन शकुंतला आत्मविश्वास के साथ रिंग सैरेमनी फंक्शन में नीता के बताए पते पर पहुंच गई. समारोह किसी होटल में था. नीता काफी खुश नजर आ रही थी.

शकुंतला को देखते ही नीता दौड़ कर उस के गले मिली. शकुंतला का हाथ पकड़ कर वह उसे उमेश के पास ले गई और उस का परिचय उमेश से कराते हुए बोली, ‘‘उमेश, यह है मेरी सहेली शकुंतला. यह मुंबई की एक बड़ी कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है.’’

शकुंतला उमेश से ऐसे मिली, जैसे उसे पहली बार देखा हो, जबकि शकुंतला को देख कर उमेश हक्काबक्का रह गया.

शकुंतला उन दोनों के लिए 2 अलगअलग गिफ्ट ले आई थी. वह गिफ्ट दे कर वहां से होस्टल के लिए निकल गई.

नीता के होस्टल पहुंचने से पहले ही शकुंतला होस्टल छोड़ कर कहीं दूसरी जगह शिफ्ट हो गई थी. दूसरी तरफ समारोह खत्म होने के बाद जब उमेश अपने कमरे में अकेला था, तब उस ने शकुंतला का दिया हुआ गिफ्ट खोला. एक बौक्स के अंदर मंगलसूत्र और झुमके के साथ ही उस की लिखी एक चिट्ठी भी थी.

चिट्ठी में शकुंतला ने लिखा था, ‘यह मंगलसूत्र मेरे लिए जंजीर से ज्यादा कुछ नहीं. मैं इस के बो झ से खुद को आजाद कर रही हूं… लेकिन हां, तुम ने अब तक मेरे साथ जोकुछ किया, वह सब नीता के साथ मत करना. वह तुम से बहुत प्यार करती है. कम से कम उस की इस बात की ही इज्जत रखना.

‘मैं ने उसे तुम्हारी कोई भी हकीकत अभी तक नहीं बताई है, नहीं तो प्यार से उस का भरोसा उठ जाता. जिस दिन इस दुनिया में लोगों का प्यार से भरोसा उठ गया, उस दिन यह दुनिया जीने लायक नहीं रहेगी और यह मैं बिलकुल नहीं चाहती…

‘जो धोखा तुम ने मु झे दिया है, वह नीता को कभी मत देना. एक शादीशुदा औरत के लिए उस के पति से मिलने वाली इज्जत और प्यार ही सब से बड़ा सिंगार होता है, उस का सब से कीमती जेवर होता है, जिस की कमी को दुनिया का महंगा से महंगा जेवर भी पूरा नहीं कर सकता.

‘मंगलसूत्र के साथ मैं झुमके भी तुम्हें लौटा रही हूं, जो तुम ने उस दिन अपने उस बड़े से झूठ पर परदा डालने और मेरा विश्वास जीतने के लिए दिए थे. तुम्हें तलाक का नोटिस मैं बहुत जल्दी ही भेज दूंगी.’

शकुंतला की लिखी चिट्ठी को उमेश बारबार पढ़ता रहा. अपने दिल के किसी कोने में आज पहली बार उसे दर्द का एहसास हुआ.

लेखिका – गायत्री ठाकुर

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