Editorial: हमारे यहां कई साल से वादा किया जा रहा है कि हम बस 5 ट्रिलियन वाली इकोनौमी होने वाले हैं. अब यह वादा हर साल आगे का नया साल बता कर दोहरा दिया जाता है पर हो कुछ नहीं रहा. 1978 में चीन बंगलादेश, चाड (अफ्रीका) और मलावी (अफ्रीका) से भी गरीब था और आम अमेरिकी के मुकाबले चीनी की इनकम 65 गुना कम थी.

आज अमेरिका के मुकाबले चीनी एकचौथाई है पर उस का देश दुनिया की दूसरी सब से बड़ी इकोनौमी है चाहे अब उस की जनसंख्या तेजी से कम होने लगी हो. एक आम भारतीय चीनी के मुकाबले 5 गुना कम है.

चीन में यह कमाल डेंग शियाओपिंग के राज में हुआ जिस ने पढ़ीलिखी, अंधविश्वासों से निकली जनता को फैक्टरियों में लगा दिया और आज दुनियाभर में चीनी माल भरभर कर पहुंच रहा है. हम दुनियाभर में अपने धर्म का ढिंढोरा पीट रहे हैं कि विश्वगुरु भारत क्या महान काम कर रहा है.

आज भारत के गांवों को तो छोडि़ए, शहरों की बस्तियों को देख लें. मुंबई का धारावी हो या दिल्ली का पूर्वी हिस्सा, एक नजर में ही 100 साल पुराने युग में जीता नजर आता है जहां जगहजगह कूड़े के ढेर लगे हैं, मकानों पर धूल व काई जमी है, बड़ी सड़कों में पतली गलियां जो 4-5 फुट की हैं, निकलती नजर आती हैं, टेढ़ेसीधे मकान नजर आते हैं जिन में लोग चूहों की तरह अंधेरे बिलों में रह रहे हैं.

इन शहरों के गंदे इलाकों के बारे में किसी को फिक्र नहीं पर बड़े फैले मंदिरों, ऊंचे होते शिखरों, मेलों, पूजाओं, मूर्तियों की बातें लगातार की जा रही हैं. गंदी बस्तियों में भी सुंदर मंदिर बन रहे हैं पर लोगों का रहनसहन वैसा ही बदबूदार माहौल का है.

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