Modern Society: आज से तकरीबन 3 साल पहले हरियाणा में जींद शहर के रहने वाले नवीन की नौकरी गुड़गांव में लगी थी. चूंकि नवीन इंजीनियर था, तो गुड़गांव में नौकरी करने का एक फायदा यह था कि वह शुक्रवार की रात को अपने घर जींद चला जाता था और सोमवार को सुबह की पहली बस पकड़ कर वापस गुड़गांव लौट आता था.
चूंकि नवीन कुंआरा था, तो ऐसा करना उस के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था. घर और नौकरी में बढि़या तालमेल था. पर पिछले 4 महीने से नवीन की जिंदगी में बहुत ज्यादा बदलाव आया है. खुशी की बात यह है कि उस की शादी हो गई है और दुख की बात भी यही है कि उस की शादी हो गई है. आप पूछेंगे कि यह क्या माजरा है?
इसे कुछ इस तरह से समझते हैं. नवीन इंजीनियर है और उस की पत्नी आरती भी इसी पेशे में है. नवीन ने अपने मांबाप को पहले ही बता दिया था कि आरती भी गुड़गांव में नौकरी करेगी और वे दोनों वहीं रहेंगे.
हफ्ते या 15 दिन में एक बार उन से मिलने जींद आ जाएंगे.
तब तो नवीन के मांबाप मान गए और शादी के एक महीने के बाद ही नवीन ने गुड़गांव में एक किराए के घर में अपनी गृहस्थी बसा ली. चूंकि वे दोनों नौकरी कर रहे थे, तो गुड़गांव में रहने का खर्च निकालना आसान हो गया और उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी भी मजे से कटने लगी.
कुछ दिन तो ठीक रहा, पर उस के बाद नवीन की मां ने अकेलेपन का हवाला दे कर नवीन से कह दिया कि वह आरती को यहीं छोड़ दे.
यह सुन कर आरती बिदक गई और उस ने साफ कह दिया कि वह नौकरी छोड़ कर घर नहीं बैठेगी. अब नवीन की जान आफत में. वह मां को समझाता तो वे बुरा मान जातीं और अगर आरती को कुछ कहता तो वह आंखें दिखाती.
आरती का कहना सही था कि वह नौकरी छोड़ कर क्यों घर बैठे? क्या इसी दिन के लिए उस ने इंजीनियरिंग की थी? फिर शादी के बाद भी अगर पतिपत्नी को अलगअलग रहना पड़े, तो शादी करने का फायदा ही क्या?
नवीन को पता था कि अब अगर उसे अकेले गुड़गांव रहना पड़ा तो उस की जिंदगी जहन्नुम बन जाएगी. पहले तो वह दोस्तों के साथ समय बिता लिया करता था, पर अब सब अपनीअपनी जिंदगी में सैट हो चुके हैं. कब तक वे उस की खातिरदारी करेंगे? और जब अपनी बीवी है, तो फिर वह क्यों किसी के दर पर भटके?
गांवदेहात हो या छोटे शहर, आज बहुत से जोड़ों की यह बहुत बड़ी समस्या है कि शादी के बाद भी वे साथ नहीं रह पाते हैं और अपनी आजादी का मजा नहीं ले पाते हैं.
नवीन और आरती अब एक अनचाहे डिप्रैशन से जूझ रहे हैं, जबकि नवीन के मांबाप आज भी उसी सोच में जी रहे हैं कि बेटे का काम है पैसा कमाना और बहू का फर्ज है अपने सासससुर की सेवा करना.
नवीन की मां को इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं है कि आरती की कमाई नवीन के बराबर है और जब कल को वे दादी बनेंगी, तब यही बचत नवीन और आरती के काम आएगी. उन की जिद बहूबेटे की खुशी से बड़ी है.
बात पैसे और आरती के कैरियर के साथसाथ नवीन और आरती की सैक्स लाइफ से भी जुड़ी है. उन की शादी को दिन ही कितने हुए हैं. उन्हें साथ रहने का हक है और शादी के शुरुआती दिनों में ही उन का एकदूसरे के लिए तड़पना नाइंसाफी है.
आज से 40-50 साल पहले की बात अलग थी जब पति शहर में और पत्नी गांव में अपने सासससुर के लिए खप रही होती थी. तब लड़की नौकरी को इतनी ज्यादा अहमियत नहीं देती थी या फिर अगर पति सेना में होता था, तो वहां अपने कैंट में पति को सुविधाएं भी अच्छी मिल जाती थीं. आसपास माहौल भी अच्छा होता था और अनुशासन में रहते हुए उस का समय आसानी से बीत ही जाता था.
पर आज जब गांव के लड़के शहर में नौकरी करने आते हैं, तो जरूरी नहीं कि वे नवीन की तरह इंजीनियर ही हों. बहुत से तो दड़बेनुमा छोटे कमरों में शेयरिंग के हिसाब से रहते हैं और शादी के बाद बिना पत्नी के रहना उन के अकेलेपन को बढ़ा देता है.
बहुत सी जगह तो शनिवार की छुट्टी नहीं होती है, तो जल्दीजल्दी गांव जाने में भी दिक्कत होती है. वे किसी तरह पत्नी को साथ रखना चाहते हैं और चूंकि पत्नी भी पढ़ीलिखी होती है, तो उन्हें शहर में उस की नौकरी लगने की ज्यादा उम्मीद रहती है.
पर मांबाप यह मजबूरी नहीं समझ पाते हैं या समझना नहीं चाहते हैं. उन्हें बहू तो पढ़ीलिखी चाहिए, पर नौकरी न करे. उन की यही सोच नए जोड़ों को अपनी आजादी में खलल लगती है. उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझता है.
इस का नतीजा होता है घर में क्लेश, क्योंकि जब भी लड़का गांव जाता है, तो अपनी पत्नी की शिकायतों से तंग आ जाता है या फिर खुद को इतना मजबूर समझता है कि छाती ठोंक कर पत्नी को शहर लाने की हिम्मत नहीं दिखा पाता है. यहीं से जिंदगी नरक हो जाती है.
तो इस समस्या का हल क्या है? हल यही है कि सासससुर को समझना चाहिए कि जिस तरह वे दोनों सारी उम्र एकसाथ रहे हैं, उसी तरह उन के बहूबेटे को भी साथ रहने का हक है. वे दोनों साथ में शहर रहेंगे, तो उन्हें अपनी गृहस्थी बसाने में आसानी होगी, आमदनी बढ़ेगी सो अलग. यही तो नए जोड़े की सच्ची आजादी है. Modern Society