Superstition: ‘‘बाबा, अगर यह पूजा करा दूं, तो नौकरी पक्की हो जाएगी न?’’
बिहार की राजधानी पटना के एक बड़े मंदिर के बाहर खड़े 25 साल के रोहित ने पुजारी से यह सवाल किया. बीटैक पास रोहित पिछले डेढ़ साल से नौकरी की तलाश में है. सरकारी इम्तिहान दिए, प्राइवेट इंटरव्यू दिए, लेकिन नतीजा वही, नौकरी नहीं मिली. अब रोहित के भरोसे की आखिरी डोर भगवान और कर्मकांड है.
यह कहानी सिर्फ रोहित की नहीं, बल्कि आज के लाखोंकरोड़ों नौजवानों की है. पढ़ाईलिखाई में अच्छे, तकनीक के इस्तेमाल में आगे, लेकिन जिंदगी की चुनौतियों के सामने जब हार महसूस होती है, तो वे धर्म और कर्मकांड की शरण में चले जाते हैं.
धर्म की ओर लौटते नौजवान
यह विरोधाभास नहीं तो और क्या है कि जो नौजवान इंटरनैट पर रील बनाता है, आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की बातें करता है, वही मंदिर में मन्नत का धागा भी बांधता है. पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली 22 साल की नेहा कहती है, ‘‘हम पढ़ेलिखे हैं, लेकिन कभीकभी लगता है कि कोई ताकत तो है, जो सब बदल सकती है. शायद पूजा करने से किस्मत भी बदल जाए.’’
मंदिरों में नौजवानों की बढ़ती भीड़ इस का सुबूत है. पूजापाठ के बाद सोशल मीडिया पर फोटो डालना, शिवभक्ति के गानों पर रील बनाना, यूट्यूब पर धार्मिक गुरुओं के प्रवचन सुनना, यह नई पीढ़ी के रूटीन का हिस्सा बन गया है.
बेरोजगारी और निराशा की तरफ
बेरोजगारी इस सोच की सब से बड़ी वजह है. गांव का पढ़ालिखा लड़का जब शहर में स्ट्रगल करता है और नाकाम होता है, तो उस का भरोसा सिस्टम से ज्यादा ‘ऊपर वाले’ पर होने लगता है.
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