Family Story In Hindi: गरीब झांझन की छोटी सी दुकान थी. एक वक्त ऐसा था जब अमीर जगदंबा बाबू ने उस की बहन की इज्जत लूट ली थी. पर अब वे लकवे के शिकार हो थे. उन का परिवार दानेदाने को मुहताज था. इसी बात का फायदा उठा कर झांझन ने उन की बेटी से अपनी बहन का बदला लेना चाहा. क्या उस की नीयत में खोट आ गया था?

जब बारिश और सर्द हवाओं ने जनवरी की ठंड का रंग और जमा दिया, तो गांव में सांझ ढले ही सन्नाटा होने लगा. लेकिन झांझन की दुकान काफी देर तक खुली रहती, क्योंकि जरूरतमंद गरीब लोग दिन में मजदूरी कर के आटा, दाल, चावल वगैरह खरीदने वहां पहुंच जाते थे.

झांझन की चांदी हो चली थी. वह भी मनमाने दाम पर चीजें बेच कर वक्त की नजाकत का फायदा उठाता.
धंधे में वह कतई बेमुरब्बत था, इसीलिए लोग कहते कि जगदंबा बाबू के घर एड़ी रगड़ कर भी इसे गरीबी के दुख का एहसास नहीं है. चार दिन से चार पैसे हो गए, तो गरीबों को ही खा जाने की नीयत हो गई.

मगर झांझन पर इस का कोई असर नहीं होता. हालांकि उस ने बिना पैसे की दुनिया देखी थी. वह दिनभर जगदंबा बाबू की भैंसें चराता था और एक गिलास मट्ठे के साथ 2 रोटियां खा कर उसे संतोष करना पड़ता था. तब इस दुकान और घर की जगह झोंपड़ी थी, पर चेहरे पर मस्ती थी.

भैंस चराने जाते समय कंधे पर रखी लाठी को झांझन राइफल से कम नहीं समझता था. यह काम वह कभी नहीं छोड़ता, अगर जगदंबा बाबू ने मजदूरी के लिए गई हुई उस की जवान बहन पर हाथ न डाल दिया होता और सबकुछ लुटा कर उस ने पिछवाड़े के पोखर में कूद कर अपनी जान न दे दी होती.

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