Bihar Elections 2025: साल 2014 में जब बिहार की राजनीति भारी उथलपुथल के दौर से गुजर रही थी, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अहम फैसला लेते हुए भाजपा के सहयोग से महादलित मुसहर समुदाय से आने वाले नेता जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था.

यह कोई उदारता नहीं थी, बल्कि नीतीश कुमार की मजबूरी हो गई थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उन की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) 40 में से केवल 2 सीटें ही जीत पाई थी.

अपने खिलाफ पनप रहे चौतरफा असंतोष और विरोध को काबू करने के लिए उन का यह टोटका तात्कालिक तौर पर कामयाब रहा था, लेकिन दिक्कत उस वक्त खड़ी हो गई, जब जीतनराम मां झी अपने वादे से मुकर गए और यह तक कहने लगे थे कि मैं कोई रबर स्टांप सीएम नहीं हूं.

जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्री बन जाने से हुआ क्या, दलितों के लिहाज से इस के कोई खास माने नहीं, क्योंकि उन्होंने भी दलितों के भले के लिए कुछ नहीं किया. 9 महीने के अपने कार्यकाल में जीतनराम मां झी ने जो बड़ी गलतियां की थीं, उन में से एक थी मंदिर जाना.

यों किसी भी मुख्यमंत्री का मंदिर जाना कोई हैरत की बात नहीं होती, लेकिन उन का जाना जरूर हैरत की बात थी, क्योंकि वे वक्तवक्त पर खुद को न केवल नास्तिक कहते रहे हैं, बल्कि मनुवाद सहित हिंदू धर्मग्रंथों की भी आलोचना करते रहे हैं.

मुख्यमंत्री रहते हुए जीतनराम मांझी ने साल 2015 में कहा था, ‘‘मैं भगवान में विश्वास नहीं करता क्योंकि अगर भगवान होते तो दलितों पर इतना अत्याचार क्यों होता? मंदिरों में अब भी दलितों को भेदभाव झेलना पड़ता है, इसलिए मु झे मंदिरों में कोई आस्था नहीं.’’

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