सास बहू की तकरारों के किस्से हर जबान पर होते हैं पर साथसाथ रहते उन में अकसर ऐसा प्रेम हो जाता है कि एकदूसरे के बिना जीना दूभर हो जाता है. जौनपुर के निकट मछली शहर की एक 55 वर्षीय बहू की सड़क पर जाते हुए दुर्घटना में मौत का समाचार जब इलाहाबाद में इलाज करा रही उस की 78 वर्षीय सास को मिला तो उन्होंने दम तोड़ दिया. दोनों की अरथी एकसाथ घर से निकली.
सास लंबी बीमारी से ग्रस्त थीं पर बहू ने अपनेपन से उन का ध्यान रखा था. इसीलिए बहू की मृत्यु के समाचार का आघात सास सह न सकीं और चल बसीं.
सासबहू का 10-15 साल साथ रहने के बाद प्यार स्वाभाविक है. अगर इस प्यार में खटास पैदा होती है तो समाज के उन विध्वंसकों के कारण जो हर समय सासबहू के मामूली मतभेद को बढ़ाचढ़ा कर पेश करते रहते हैं. इस बारे में इतने सवाल किए जाते हैं कि हर सास को हर बहू पर संदेह होने लगता है. इस पर दूसरे रोज तेजाब डालते हैं.
महान संस्कारों और संस्कृति का ढोल पीटने वाले भूल जाते हैं कि इस ढोल में पोल ही है बस. हमारे यहां संबंध केवल स्वार्थ और संदेह पर टिके हैं और यह हमें विरासत में मिला है. जिन पौराणिक घटनाओं का आंख मूंद कर हवाला दिया जाता है उन में सासबहू का मतभेद जम कर महिमामंडित किया गया है. जो प्रवचन आज दिनरात दिए जा रहे हैं और जिन का धंधा अब चमचमाने लगा है उन में सास के मन में भरा जाता है कि वह पूजनीय है, कामधाम न करे, बैठ कर खाए. केवल पुत्रवती बहू को स्वीकारे, दहेज सांस्कारिक है और बहू को रीतिरिवाजों से बांध कर रखे. ऐसे में बहू भला कैसे खुश रहेगी.
अगर उलट शिक्षा दी जाए कि बहू जीवन का अभिन्न अंग है, बेटे के बराबर नहीं, बढ़ कर है, बेटी की तरह पराए घर में भी नहीं रहती. सासबहू में जौनपुर वाली सासबहू का लगाव होना स्वाभाविक ही है. आज की गलत शिक्षा पाश्चात्य देन नहीं, हमारी अपनी सांस्कृतिक विरासत है जिसे चिपका कर नहीं माथे पर लगाने में गर्व हो रहा है.
एक घर में रहते सास को सब से ज्यादा भरोसा बहू पर करना चाहिए. बेटे से भी बढ़ कर, बेटी को नाराज कर के भी. बहू से विवाद तभी खत्म होंगे जब वह दोस्त, सहयोगी अपनी सी हो.