प्रसिद्व साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन के काव्यसंग्रह मधुशाला में मदिरा सेवन का खूबसूरती से महिमामंडन किया गया है. मदिरा के अतिरिक्त चरस, गांजा, स्मैक, अफीम, हीरोइन जैसे अनेक ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिन से मनुष्य अपनी नशे की लत को पूर्ण करता है. अपनी मौजमस्ती और यारीदोस्ती निभाने के लिए किए गए किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ के जहर का सेवन न जाने कितने परिवारों की सुखशांति को छीन लेता है और कितने ही घर बरबाद कर देता है. मदिरा का सेवन तो आजकल स्टेटस सिंबल माना जाता है. कभी कभार किया जाने वाला नशा जब

लत में परिवर्तित हो जाता है तो नशा करने वाले का शरीर अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. इस से वह स्वयं तो परेशान रहता ही है, उस के घरपरिवार वालों को भी अनेक आर्थिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

इंदौर का राहुल दवे पिछले 5 सालों से स्मैक पी रहा है. उस का शरीर स्मैक का इतना आदी हो गया है कि अगर उसे स्मैक की डोज नहीं मिले तो उस के हाथ पैर कांपने लगते हैं. और उसे लगता है कि जान ही निकल जाएगी. उस के परिवार में

10 साल का बेटा और 4 साल की बेटी के अलावा पत्नी, मातापिता और एक भाई हैं. परिवार वाले पिछले कई सालों में न जाने कितने मंदिर, मसजिद और गुरुद्वारे गए कि किसी प्रकार राहुल की नशे की लत छूट जाए पर इन जगहों पर क्या किसी को कोई लाभ हुआ है? झाड़फूंक करने वालों और गंडेताबीज बनाने वालों की शरण में भी गए पर ये तमाम अंधविश्वासी टोटके नाकाम साबित हुए.

कालू सिंह 20 साल से गांजे का सेवन कर रहे थे. घर वाले परेशान रहते थे परंतु उन की लत के आगे बेबस थे. प्रारंभ में उन की पत्नी उन्हें हर रोज एक महाराज के सत्संग में ले जाती थी क्योंकि महाराज जी ने उन की नशे की लत छुड़ाने की गारंटी ली थी. उन्होंने कहा था कि प्रतिदिन सत्संग में लाने से उन की नशे की लत भगवान भक्ति में लग जाएगी. सुबह पत्नी उन्हें जबरदस्ती सत्संग में ले जाती और शाम को वे नशे में धुत हो कर पत्नी को ही गाली देते और घर से निकल जाते. पड़ोसी उन्हें किसी तरह घर ले कर आते. अंत में पत्नी ने हार मान कर उन्हें उन के हाल पर छोड़ दिया.

रमेश त्यागी बहुत अच्छे घर से हैं. घर में कोई भी नशा नहीं करता. प्रारंभ में दोस्त जबरदस्ती उन्हें पिलाते थे पर धीरेधीरे उन्हें भी मजा आने लगा. फिर तो यह स्थिति हो गई कि जिस दिन उन्हें शराब नहीं मिलती थी, न भूख लगती थी न प्यास. बस, एक शराब ही थी जो उन्हें संतुष्टि देती थी. मातापिता बहुत परेशान रहते थे, घर में कलह होता था, और एक दिन गुस्से में आ कर उन के पिता ने उन्हें घर से ही निकाल दिया. उन की मां ने शराब की लत छुड़ाने के लिए कई उपवास किए. घर में हवन, कथा करवाई. पर नतीजा सिर्फ नशा मुक्ति केंद्र उपरोक्त सभी नशा करने वाले लोग उज्जैन के नशा मुक्ति केंद्र में भरती हैं. जब एक नशा करने वाला इस अवस्था में पहुंच जाता है कि नशे के बिना वह रह नहीं पाता तो ऐसी अवस्था में फंसे लोगों की लत छुड़ाने के लिए सरकार ने नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना की है. इन आवासीय नशा मुक्ति केंद्रो में विभिन्न प्रकार के नशा करने वालों को काउंसलिंग, डाक्टरी सहायता और मनोरंजन द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है. यहां मरीज या तो स्वयं आते हैं अथवा मित्र या परिवार वाले ले कर आते हैं. लगभग 15 से 20 दिनों के उपचार के बाद यहां से मरीजों को छुट्टी दे दी जाती है.

मरीज की यातनाएं

नशा मुक्ति केंद्र में मरीज आता तो अपनी या परिवार वालों की मर्जी से है परंतु यहां रह कर उसे कम तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ता है.

-यहां पर सब से बड़ी कमी उसे परिवार की खलती है. परिवार के साथ न होने से मनोबल कमजोर हो जाता है और कई बार वह स्वयं को इस संसार में एकाकी महसूस करने लगता है.

-नशे के आदी हो चुके शरीर को जब उस की डोज नहीं मिलती तो मरीज को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की परेशानी होनी प्रारंभ हो जाती है. परिवार के साथ न होने से उतनी अच्छी देखभाल भी नहीं हो पाती.

-जब नशे की लत को छुड़ाने की दवा दी जाती है तो शरीर पर उस का प्रतिरोधी असर होता है और उन्हें उलटी, दस्त, बुखार व डिप्रैशन जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है.

-अक्सर नशेड़ी बाहरी लोगों से बातचीत करने में कतराते हैं क्योंकि नशा इन का आत्मविश्वास समाप्त कर देता है.

-मनचाहे भोजन, पारिवारिक वातावरण का अभाव, आर्थिक परेशानी और यहां की तयशुदा दिनचर्या से चलना कई बार उन के लिए बहुत बड़ी परेशानी का कारण बन जाता है.

-कोई काम न होने से मन नहीं लगता और वे बड़ी कठिनता से यहां समय व्यतीत कर पाते हैं.

परिवार की यातनाएं

नशा करने वाले का परिवार पूरी तरह निर्दोष होता है परंतु बीमार के साथसाथ परिवारजन भी अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करते हैं. अपने दिल पर पत्थर रख कर वे अपने परिवार के सदस्य को यहां छोड़ कर जाते हैं. क्योंकि यहां सिर्फ मरीज के रहने की ही व्यवस्था होती है. दूर से प्रतिदिन मिलने आना संभव नहीं होता. ऐसे में दिन में कई बार फोन द्वारा वे अपने रिश्तेदार का हालचाल लेते रहते हैं. कईर् घरों के तो मुखिया ही नशे के शिकार होते हैं, ऐसे में घर वालों के सामने रोजीरोटी का ही प्रश्न खड़ा हो जाता है.

-एक व्यक्ति जब नशा कर के आता है तो घर में कलह करता है. कई बार तो पत्नी और बच्चों के साथ मारपीट भी करता है. जिस से छोटे बच्चे सहम जाते हैं और उन के मन में पिता के प्रति सम्मान ही समाप्त हो जाता है.

-मेरी एक सहेली के पति को शराब की लत है. जब उन की बेटी की 12वीं की बोर्ड परीक्षा हो रही थी, उन्होंने घर में आ कर सहेली के साथ मारपीट की. देररात तक दोनों में कहासुनी होती रही. फलस्वरूप, बेटी अगले दिन की परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाई. उस विषय में उस के बहुत कम अंक आने से परीक्षा परिणाम खराब हो गया.

-कई बार पिता का अनुसरण कर के बच्चे भी नशा करना प्रारंभ कर देते हैं. जिस से उन का पूरा जीवन बरबाद हो जाता है.

-बच्चों के दोस्त उन के पिता के नशे को ले कर मजाक उड़ाते हैं जिस से उन का बालमन आहत हो जाता है. वे तनाव के शिकार हो जाते हैं.

आर्थिक संकट

नशे की लत जब एक बार शरीर को लग जाती है तो उसे किसी भी कीमत पर नशे की डोज की आवश्यकता होती है.

एक नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी राजेश ठाकुर बताते हैं कि यों तो सभी प्रकार के नशे खर्चीले होते हैं परंतु स्मैक का नशा सर्वाधिक खतरनाक और खर्चीला होता है. 10 ग्राम स्मैक की पुडि़या 200 रुपए में आती है और एक नशेड़ी एक दिन में 2 पुडि़यों का सेवन तो करता ही है. यानी प्रतिदिन 400 रुपए का खर्चा.

-जब नशा करने वाले को पैसे नहीं मिलते तो वह बेचैन हो जाता है और पत्नी, मां के गहने व घर का सामान तक बेच देता है.

-नशा कोई भी हो, उसे करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और जब नशेडि़यों को सुगमता से पैसे प्राप्त नहीं होते तो वे चोरी, डकैती और लूटमार जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं.

-नशा मुक्ति केंद्र में भेजने के बाद भी मरीज के भोजन, चायनाश्ता, और कई बार दवाओं व फल आदि का इंतजाम भी परिवारीजनों को करना पड़ता है. इस से उन पर अतिरिक्त आर्थिक भार आ जाता है.

प्रतिष्ठा को ठेस

समाज में नशा करने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. नशा करने वालों और उन के परिवार के प्रति लोगों का सम्मान समाप्त हो जाता है. परिवार के सदस्य स्वयं भी आत्मविश्वास की कमी के कारण लोगों से बातचीत करने में कतराते हैं. मेरी एक परिचित कालेज में प्रोफैसर है. उस के पति नशे की लत के इस कदर शिकार हैं कि अकसर सड़क पर पड़े मिल जाते हैं. इस कारण उस को सब के सामने शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. परेशान हो कर उस ने लोगों से मिलनाजुलना ही छोड़ दिया है.

नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो, नुकसान दायक ही होता है. बेहतर है कि इस का शौक पालने से ही बचा जाए. आमतौर पर इस प्रकार का शौक यारीदोस्ती में उत्पन्न होता है. इसलिए आवश्यक है कि ऐसे लोगों से समय रहते दूरी बना ली जाए. कई बार नशा मुक्ति केंद्र में रहने के बाद नशे की लत से मुक्ति मिल जाती है परंतु घर जा कर यार दोस्तों के प्रभाव में आ कर व्यक्ति फिर से नशा प्रारंभ कर देता है. नशा करने वाला तो अपनी मौजमस्ती करता है परंतु मानसिक, आर्थिक और सामाजिक तकलीफ व परेशानी उस के परिवार को सहनी पड़ती है.

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