गाय का दूध पीने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. आज भी गांवदेहातों में कई घर गाय का दूध और उस से बनी हुई चीजें जैसे दही, मक्खन और घी बेच कर पल रहे हैं. गाय के गोबर से बने उपले लाखों घरों के चूल्हों का ईंधन बने हुए हैं.
पर, आज गाय की बदहाली और अनदेखी किसी से छिपी नहीं है. गाय के नाम पर सरकारी पैसा बटोरने वाले तथाकथित गौसेवक गाय का निवाला खा रहे हैं. यही वजह है कि गाय जब तक दूध देती है, तब तक पशुपालक उस की अच्छी तरह देखभाल करते हैं और जैसे ही वह दूध देना बंद करती है, तो पशुपालक उसे सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं.
नतीजतन, बहुत सी गाएं सड़कों पर आवारा घूमती कचरे के ढेर में पड़ी प्लास्टिक की पौलीथिन तक खाती नजर आती हैं.
मध्य प्रदेश के भोपालजबलपुर नैशनल हाईवे नंबर 12 पर आवारा घूमती गायों का समूह सड़क पर हमेशा नजर आता है. इन में से कुछ गाएं आएदिन ट्रक वगैरह की चपेट में आ कर मौत का शिकार हो जाती हैं और कुछ अपाहिज भी.
सड़कों पर घायल गायों की सुध लेने के लिए कोई नहीं आता. औसतन हर 10 किलोमीटर के दायरे में सड़क किनारे मरी पड़ी गाय की बदबू लोगों का ध्यान खींचती है, पर किसी जिम्मेदार अफसर या नेता का ध्यान इस ओर नहीं जाता.
वहां के बाशिंदे बताते हैं कि गायों की खरीदफरोख्त करने वाले लोग इन गायों को साप्ताहिक लगने वाले एक बाजार से दूसरे बाजार में ट्रकों से ले जाते हैं. कई बार बाजार में मवेशी की सही कीमत न मिलने के चलते ट्रांसपोर्ट का खर्चा बचाने या तथाकथित गौरक्षकों के डर से वे उन्हें दूसरे बाजार के लिए नहीं ले जा पाते.
कुछ कारोबारी गायों के शरीर पर रंग से कोई निशान बना कर उन्हें सड़क पर छोड़ देते हैं. अगले हफ्ते वही कारोबारी आ कर उन की तलाश करते हैं और ज्यादातर गाएं उन्हें मिल भी जाती हैं, जिन्हें वे फिर से बाजार में खरीदफरोख्त के लिए ले जाते हैं.
आवारा घूमती गायों की यह हालत गाय के नाम पर हायतोबा मचाने वाले गौरक्षकों को धता बताती नजर आती है.
मध्य प्रदेश में तो बाकायदा गौसेवा आयोग भी बना है, जिस के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है, पर प्रदेश में गायों की बदहाली गौसेवा आयोग के वजूद पर ही सवालिया निशान लगाती है.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल गौर ने प्रदेश में गौशाला अनुदान का मुद्दा उठा कर सरकार पर सवाल खड़े किए थे. उन के मुताबिक, प्रदेश में गौशाला अनुदान को ले कर कोई साफ नीति नहीं है.
हो रही है चंदा वसूली
मध्य प्रदेश के कई शहरों में छोटीबड़ी दुकानों पर गाय की आकृति वाली प्लास्टिक की चंदा जमा करने वाली गुल्लकें रखी हुई हैं, जिन में दुकान पर आने वाले ग्राहक चंदे के नाम पर कुछ पैसे डालते हैं.
एक दुकानदार से इस बारे में पूछा गया कि गौशाला चलाने वाली संस्थाओं के नुमाइंदे इन गुल्लकों को दुकान पर छोड़ जाते हैं और एक निश्चित समय में उस में डाली गई रकम निकाल कर ले जाते हैं.
गौशाला चलाने के नाम पर ज्यादातर लोग किसी राजनीतिक दल से जुड़े लोग होते हैं, जो स्वयंसेवी संस्थाएं बना कर सरकारी अनुदान का जुगाड़ करने में माहिर होते हैं.
सड़कों पर आवारा घूमती गायों और इन गुल्लकों को देख कर यह सवाल उठता है कि आखिर गौसेवा के नाम पर उगाहे जा रहे इस चंदे का इस्तेमाल कौन सी गायों की सेवा के लिए किया जाता है?
हालांकि कुछ गौशालाएं आज भी हैं, जो बिना चंदे या सरकारी अनुदान के प्रचार से कोसों दूर कमजोर और बीमार गायों की सेवा कर रही हैं. पर दर्जनों संगठन गौसेवा के नाम पर देश में हिंसा फैला रहे हैं.
गौरक्षकों की टोली आएदिन सड़कों पर गायों को ले जाने वाले ट्रकों को रोक कर ड्राइवर और क्लीनर से मारपीट कर उन से जबरन वसूली करने में भी पीछे नहीं रहती है.
लाखों का घोटाला
छत्तीसगढ़ राज्य में चल रही गौशालाओं को सरकार लाखों रुपए का अनुदान दे रही है, लेकिन इन में से कई ऐसी गौशालाएं भी हैं, जहां गायों को दानापानी तक नहीं मिलता है. कई जगह हालात और भी खराब होने की खबर है.
प्रदेश की 3 गौशालाओं में हुई गायों की मौत के बाद खासा बवाल मचा. जानकारों का साफ कहना है कि अगर गौशालाओं की सही रिपोर्ट तैयार की गई, तो प्रदेश में एक बड़ा चारा घोटाला सामने आएगा.
प्रदेश का गौसेवा आयोग इस समय 67 गौशालाओं को लाखों रुपए का अनुदान दे रहा है. अनुदान देने के लिए यह नियम है कि गाय के लिए प्रतिदिन 25 रुपए की दर से गायों की तादाद के हिसाब से सालभर के लिए अनुदान दिया जाता है.
प्रदेशभर में 115 रजिस्ट्रर्ड गौशालाएं हैं, जिन्हें हर साल सरकार की ओर से करोड़ों रुपए का अनुदान दिया जाता है. इस मामले की तह तक जाने के बाद कुछ अहम दस्तावेज में दुर्ग की शगुन गौशाला में फर्जीवाड़ा होने की बात सामने आई है.
इस संस्था के रजिस्ट्रेशन की तारीख 6 अक्तूबर, 2010 दर्ज है. गौरतलब है कि 905 पशुओं की तादाद वाली इस गौशाला में सरकार की तरफ से जाने वाली अनुदान राशि साल 2014-15 में 20 लाख, साल
2015-16 में 19 लाख 62 हजार, साल 2016-17 में 10 लाख यानी 3 साल में इस गौशाला को तकरीबन 50 लाख रुपए अनुदान के रूप में मिले.
देखा जाए, तो साल 2010 के बाद इस संस्था द्वारा नियम के मुताबिक हर साल औडिट रिपोर्ट विभाग को दी जानी थी, जिस के आधार पर उसे अनुदान राशि दी जानी थी, लेकिन साल 2016 में रजिस्ट्रेशन के बाद से ही औडिट रिपोर्ट नहीं दी गई थी. इस के बावजूद सरकार की तरफ से उन्हें गैरकानूनी तौर पर पिछले 3 सालों में 49 लाख, 62 हजार की रकम दी जा चुकी है.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिम है कि किस आधार पर अफसरों ने बिना औडिट किए ही उस गौशाला को अनुदान राशि दी? राशि का उपयोग गौशालाओं में किस तरह से किया जा रहा है, इस की जांच भी अब तक नहीं की गई.
बेमेतरा जिले की 2 गौशालाओं में 18 अगस्त, 2017 को 157 गायों की असमय मौत का मामला सामने आने के बाद से प्रशासन का ध्यान गौशालाओं की ओर गया है.
वहीं, दूसरी ओर भूखप्यास से मर रही गायों को बचाने के लिए उन्हें दूसरी गौशालाओं में शिफ्ट किया गया है. गंभीर रूप से बीमार गायों का वहीं पर इलाज किया जा रहा है. लेकिन गौशालाओं को करोड़ों रुपए का अनुदान मिलने के बावजूद भी गायों के लिए चारेपानी का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया गया.
अनुदान की रकम कहां खर्च की गई और आरोपियों को किन का संरक्षण मिला हुआ है, इस दिशा में कोई जांच अब तक नहीं की गई है.
इस पूरे मामले में गौसेवा आयोग की कमजोरी उजागर हुई है. आयोग की ओर से अनुदान को ले कर अब तक हालात साफ नहीं हैं.
जानकारी के मुताबिक, गौशालाओं पर शासन द्वारा 30 करोड़ रुपए से अधिक का अनुदान जारी किए जाने की बात सामने आई है. इस के बावजूद जिले की 2 गौशालाओं में 157 गायों व साजा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम राजपुर में 5 सौ से ज्यादा गायों की अकाल मौत होने का कलंक छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार पर लग चुका है.
गौशाला और नया प्रयोग
मध्य प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रयोग करने के मामले में नए झंडे गाड़ रहा है. इन में सब से ताजा उदाहरण है भोपाल के पत्रकारिता यूनिवर्सिटी में गौशाला खोलने का फैसला.
इस अनूठी योजना के जनक हैं यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बृजकिशोर कुठियाल. उनकी अगुआई में पिछले कुछ सालों में इस पत्रकारिता यूनिवर्सिटी में नए प्रयोग के कई रिकौर्ड बने हैं.
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता व संचार यूनिवर्सिटी मध्य प्रदेश सरकार का संस्थान है. इस की स्थापना मध्य प्रदेश सरकार के एक अधिनियम के तहत की गई है.
पिछले दिनों यूनिवर्सिटी ने बाकायदा एक टैंडर नोटिस छाप कर गौशाला खोलने की मंशा जाहिर की. उस से पता चला कि भोपाल में बने रहे 50 एकड़ में फैले अपने नए कैंपस का 10वां हिस्सा यूनिवर्सिटी ने गाय पालने के लिए रिजर्व कर रखा है. नक्शे के मुताबिक, कैंपस के अगले हिस्से में पढ़ाई होगी, वहीं बीच के हिस्से में शिक्षक और भावी पत्रकार रहेंगे व पीछे की तरफ पशु रहेंगे.
वाइस चांसलर की सोच है कि इस गौशाला से कैंपस में रहने वाले लोगों को असली दूध और ताजा दही मिलेगा और गोबर गैस के अलावा खाद भी मिलेगी, जो सब्जियां उगाने के काम आएंगी. दूध ज्यादा हुआ, तो बाजार में बेच कर यूनिवर्सिटी थोड़ेबहुत पैसे भी कमा लेगी. वे याद दिलाते हैं कि पुराने समय में नालंदा और तक्षशिला जैसी यूनिवर्सिटी में भी अपनी गौशाला होती थी.
वाइस चांसलर कुछ दिनों में कहने लगेंगे कि नालंदा में बिजली नहीं थी, तो बिजली कटवा दो. गाडि़यां नहीं थीं, तो घोड़े वाले रथों को रखेंगे. तरक्की तो यही है कि सुदूर पूर्व में देखा जाए, गौदान किया जाए.
वैसे, मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नंदकिशोर सिंह चौहान ने यह कह कर इस योजना की तारीफ की है, ‘‘यह एक अनूठा आइडिया है और पहली दफा कोई शैक्षणिक संस्थान हमारी प्राचीन परंपरा का पालन कर रहा है.’’