मध्य प्रदेश में एक स्कूल में घूमर नाच कर रहे बच्चों पर करणी सेना के नाम से कुछ लोगों का उत्पात मचाना साबित करता है कि आतंकवादी अब खालिस्तानी, माओवादी, तालिबानी, जैश ए मोहम्मद ही नहीं, सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे हैं. वे देश की यूनिवर्सिटियों को चलाने वालों, अफसरों, जजों के स्थान पर बैठे हैं और उन के इशारों पर ये आतंकवादी घरघर में मौजूद हैं. जावरा कसबे के सैंट पौल कौनवैंट स्कूल के बच्चे वार्षिक उत्सव के दिन घूमर डांस कर रहे थे जो फिल्म ‘पद्मावत’ की धुन पर बना था. करणी सेना को यह नागवार लगा और उस ने कानून की परवाह किए बिना न केवल उत्सव भंग कर दिया, बल्कि तोड़फोड़ व मारपीट कर डाली. जैसा देशभर में हो रहा है, उस सेना के किसी आतंकी को गिरफ्तार नहीं किया गया. भगवा दुपट्टे की ढाल वाले बिगड़ैल मतवाले कानून तोड़ कर मजे में घरों में चले गए.

जराजरा सी बात पर गिरफ्तार व चालान करने वाली पुलिस और अफसर चुप क्यों रहे, इस का जवाब ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है. देशभर में फिल्म ‘पद्मावत’ पर मचाया जा रहा उत्पात असल में भगवा राजनीति का एक ऐसा रूप है जिस का मकसद हरेक को यह साफ करना है कि या तो लकीर के फकीर बनो वरना मारपीट को तैयार रहो. 10 लोग भगवा दुपट्टा डाल कर हर तरह के गुनाह कर के साफ बच सकते हैं. यह गैरसवर्णों को संदेश है कि चाहे राजपूत और उन के समर्थक संख्या में कम हैं, पौराणिक युग की तरह उन का दबदबा कायम है और डंडों के सहारे ही वे सारे देश को काबू में कर सकते हैं. जैसा सदियों से होता आया है, आम आदमी इस तरह के लोगों से भिड़ना नहीं चाहता क्योंकि इन्हें सत्ता का संरक्षण भी हासिल है और मंदिरों की दुकानदारी कर रहे संतोंमहंतों का भी. ये लोग राजपूती शानबान की हिफाजत नहीं कर रहे, बल्कि इन का मकसद बड़ा है, देश में पौराणिक वर्णव्यवस्था को फिर से थोपना है और गरीबों, दलितों, अतिपिछड़ों को संदेश देना है कि वे चुपचाप बिना प्रोटैस्ट करे ऊंचों को वोट भी दें और कहना भी मानें.

देशभर में फिल्म ‘पद्मावत’ पर किए गए हंगामे की कामयाबी के बाद इन का अगला निशाना मतदाता केंद्र होगा. जैसे दशकों तक बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों को मतदाता केंद्रों तक जाने ही नहीं दिया जाता था, यही अब चुनावों में होगा. फिल्म ‘पद्मावत’ पर हंगामा मतदाता केंद्रों पर कब्जों की रिहर्सल है, फुल ड्रैस रिहर्सल. देश को उत्तर कोरियाई रंग में रंगने की पूरी तैयारी है ताकि विशेष ऊंची जातियों को अपना पुराना स्थान मिल सके. यही भेदभाव हमारी सदियों की गुलामी की वजह रहा है. मुट्ठीभर विदेशी इस देश पर कब्जा कर सके, क्योंकि ये लोग जो अपनों पर जुल्म ढा रहे हैं, विदेशियों के सामने पिछड़ जाते थे और देश की विशाल दबीकुचली जनता विदेशियों को अपना तारणहार समझती थी. अब आर्थिक गुलामी का युग शुरू हो रहा है और देश गूगल, सैमसंग, अलीबाबा, माइक्रोसौफ्ट, सुजुकी, होंडा, अमेजौन जैसी कंपनियों का गुलाम बनता जा रहा है. ऊंची जातियां ‘पद्मावत’ जैसे मामले उठा कर मुंह बंद करने और दैनिक सोचविचार पर पूरा कंट्रोल कर रही हैं ताकि गुलामी की आदत खून में बहने लगे.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...