VIDEO : इस तरह बनाएं अपने होंठो को गुलाबी
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.
पहले सरकार से हर रोज कोई न कोई शिकायत रहती थी. अब केवल खुद से रहने लगी है. आज तक न तो सरकार से मुझे अपनी शिकायतों का हल मिला, न ही खुद से.
सरकार द्वारा जनता की शिकायतों के हल के लिए खुले हर ‘शिकायत निवारण कक्ष’ के बाहर जब तक टांगों में दम रहा, मैं घंटों खड़ा रहा. बहुत बार तो ‘शिकायत निवारण कक्ष’ के मुंह पर
जंग लगे ताले ही लटके मिले और जो कभीकभार कोई ‘शिकायत निवारण कक्ष’ खुला भी मिला तो वहां पहले से ही शिकायत करने वालों की इतनी लंबी लाइन थी कि शिकायत लिखवाने में ही हफ्तों लग जाएं. ऐसी शिकायत का हल दोबारा जन्म लेने के बाद भी मिल जाए, तो भी तालियां.
जब मैं ने महसूस किया कि मेरी अपने से शिकायतें कुछ ज्यादा ही बढ़ रही हैं तो पड़ोस के एक गुणी ने मुझे सलाह दी, ‘‘देखो बंधु, मैं एक बार फिर चेतावनी दे रहा हूं कि जब तक तुम्हारा समय पूरा नहीं हो जाता, ऊपर मत चल पड़ना. अगर ऐसा किया तो वहां शरणार्थी शिविर में रहना पड़ेगा और तुम शरणार्थी शिविरों की बदहाल जिंदगी के बारे तो जानते ही हो. फिर मत कहना कि… इसलिए जब तक समय पूरा नहीं हो जाता, जैसेतैसे दम साधे जीने की कोशिश करते रहो दोस्त. यही तुम्हारे लिए बेहतर है.
‘‘तो क्यों न अब ऐसा करो कि अपना बचा समय काटने के लिए खुद को सरकारी अस्पताल में चैक करा आओ. ऐसे में थोड़ा बदलाव भी हो जाएगा और अस्पताल की भागदौड़ में 2-4 पुराने दोस्त भी मिल जाएंगे. घर में वैसे भी तुम अकेले पड़ेपड़े सड़ते रहते हो.’’
उस गुणी की सलाह मुझे नेक लगी और मैं सरकारी अस्पताल को कूच कर गया.
अस्पताल गया तो पता चला कि अपने प्राइवेट क्लिनिक से बड़े दिनों बाद डाक्टर साहब वहां आए थे. हो सकता है, उन के हाथों ही मेरी मौत लिखी थी.
मेरे ऊपर जाने सौरी खुद को चैक करवाने की बारी आई तो मैं डाक्टर के पास हो लिया.
वे मुझे बड़े ही बुझे मन से चैक करते हुए पूछने लगे, ‘‘क्या बात है? सरकारी अस्पताल ही क्यों आए हो? घर में चैन से नहीं मर सकते थे क्या?
‘‘आजकल अजीब सा फैशन हो गया है जनता में. हर कोई घर में मरने के बदले अस्पताल में आ कर मरना चाहता है. पता नहीं, अस्पताल आ कर मरने में ऐसा क्या खास है कि… चलो, उस तरफ को लेट जाओ.’’
dमैं ने उन के कहे ओर लेटते हुए कहा, ‘‘असल में सर क्या है न कि लोगों में किसी ने यह अफवाह फैला दी है कि जो सरकारी अस्पताल में मरता है वह सीधा बैकुंठ को जाता है.’’
वे चौंके, ‘‘सच?’’
‘‘जी हुजूर, वरना सारी उम्र अपने घर में तिलतिल कर मरने के बाद आप के अस्पताल में मरने कौन बेवकूफ आता.’’
‘‘यहां आने के लिए क्या महसूस किया तुम ने?’’ डाक्टर ने पूछा.
‘‘डाक्टर साहब, मन की बात कहूं तो अब सांस लेने का भी मन नहीं कर रहा है. खून की कमी तो मुझ में है ही, उस के बाद भी सिस्टम के खटमलों ने मुझे इतना चूसा कि…’’ मैं ने लंबी सांस लेने की नाजायज कोशिश की.
‘‘सिस्टम में खटमल? पर सरकार तो कहती है कि सिस्टम अब खटमल फ्री हो गया है. जरा और जोर लगा कर जीने की हिम्मत करो,’’ डाक्टर बोले.
‘‘नहीं सर, सच पूछो तो अभी आप के सरकारी अस्पताल के बिस्तर भी खटमल फ्री नहीं हुए हैं. पिछली दफा जब खून की कमी होने पर खून चढ़वाने आया था तो यहां से डिस्चार्ज होते वक्त 2 ग्राम खून कम हो गया था. सिस्टम की बात तो आप छोडि़ए.’’
‘‘काफी निचुड़े हुए लगते हो?’’ डाक्टर साहब ने हंसते हुए मुझे दूसरी ओर को पलटा, ‘‘तो इस के सिवा और क्याक्या महसूस करते हो तुम?’’
‘‘खैर, भूख तो बहुत पहले कभी लगती थी डाक्टर साहब. जब कुछ खाने को नहीं मिला तो अब उस ने भी लगना बंद कर दिया है. शुरूशुरू में जब चक्कर आते थे तो मैं तो नहीं, पर मेरी आत्मा बहुत परेशान होती थी. पर जब लगातार चक्कर पर चक्कर आने लगे तो उस ने मेरे चक्करों के बारे में सोचना ही छोड़ दिया.
‘‘शुरूशुरू में टांगों में कंपन हुई तो मैं बहुत घबराया. अब तो रोज ही टांगों में कंपन रहती है तो मैं ने इसे ऊपर वाले का उपहार मान लिया.’’
‘‘बड़ी हिम्मत वाले हो यार तुम. जीना है तो और हिम्मत वाले बनो,’’ डाक्टर साहब ने पीठ के बदले मेरा पेट थपथपाने के बाद पूछा, ‘‘तो अब…?’’
‘‘कुछ दिनों से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. जब दिक्कत कुछ ज्यादा ही हो गई तो… पर मैं वह बंदा हूं साहब, जो बिना किसी की परवाह किए शुद्ध जल के बिना जी सकता है. शुद्ध अन्न के बिना जी सकता है, शुद्ध मन के बिना भी जी सकता है. लेकिन हवा के बिना जब जीना मुश्किल लगा तो…’’
‘‘पर यार…’’
‘‘क्या सर…’’ मैं ने इतना ही कहा था कि तभी सायरन बजा तो मुझे छोड़ कर भागते डाक्टर साहब से मैं ने पूछा, ‘‘यह सायरन कैसा है सर? कोई बड़ी मुसीबत आ गई है क्या?’’
‘‘बचना है तो भाग, अस्पताल की हवा खत्म हो गई है.’’
‘‘अब सर…?’’
‘‘जो मरीज ठीक होना चाहें उन्हें मेरी सलाह है कि वे कुछ दिन अस्पताल से बाहर भी रहा करें,’’ कहते हुए उन्होंने अस्पताल से नौ दो ग्यारह होने के लिए कमर कसी.
‘‘मतलब?’’ मैं ने फिर पूछा.
‘‘नो मोर बकवास. जान बचानी है तो भाग पेशेंट भाग,’’ कह कर डाक्टर साहब नजर नहीं आए.