अनाथ गीता शायद दुनिया की पहली ऐसी लड़की है जिस के मांबाप, पता, जातिधर्म का किसी को पता नहीं. यहां तक कि गीता नाम भी उसे पाकिस्तानियों ने दिया है.
गीता की दुखद कहानी तो उस के पैदा होने के साथ ही शुरू हो गई थी क्योंकि वह न तो बोल सकती थी और न ही सुन सकती थी. सरकारी जबान में कहें तो वह मूकबधिर यानी गूंगीबहरी है.
गीता कौन है और कहां की है, इस सवाल का जवाब हासिल करने की जीतोड़ कोशिशें सरकार के विदेश मंत्रालय ने कीं, लेकिन अब तक वह भी नाकाम ही रहा है.
साल 2003-04 में मासूम गीता भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली ट्रेन में लावारिस हालत में पाकिस्तानी सैनिकों को मिली थी.
पाकिस्तानी सैनिकों ने तरस खा कर उसे कराची की मशहूर समाजसेवी संस्था ईधी फाउंडेशन के हवाले कर दिया तो गीता वहीं की हो कर रह गई. इस फाउंडेशन के कर्ताधर्ता पाकिस्तान के नामी समाजसेवी अब्दुल सत्तार और उन की बीवी बिल्किस बेगम ने उसे हिंदू मानते हुए गीता नाम दे दिया था.
इन दोनों मियांबीवी ने लाख कोशिशें कीं, पर गीता के घरबार और मांबाप का पता नहीं चला.
गीता चूंकि हिंदू और हिंदुस्तानी मान ली गई थी, इसलिए ईधी फाउंडेशन में ही उस के पूजापाठ के इंतजाम कर
दिए गए. लेकिन भगवान भी गीता के पूजापाठ के आगे नहीं पसीजा और गीता गुमनामी की जिंदगी जीने लगी.
और जब वतन आई गीता की कहानी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की जानकारी में आई तो वे पसीज उठीं. उन्हें लगा कि अपने देश की इस लड़की को अगर उस के घर और मांबाप से मिला दिया जाए.
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