मैं मरता क्या न करता. न चाहते हुए भी स्वप्नधारी बाबा के पास घुटनों के बल सपरिवार गया.

हम सब उन के चरणों में नतमस्तक हुए तो उन्होंने पूछा, ‘‘कहो, क्या चाहते हो सरकार?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं सरकार नहीं बाबा, वोटर हूं. और वोटर भी वह जिस के वोट का बटन कोई और ही दबाता है. मेरे तो बस उंगली में स्याही ही लगती है. हमें रोटी चाहिए बाबा... रोटी.’’

‘‘क्या बोले बेटा... जरा ऊंचा बोलो. दिल्ली के कानों की तरह मेरे कान भी ऊंचा सुनते हैं,’’ बाबा ने कहा तो मैं ने सपरिवार उन के कान में एकसाथ कहा, ‘रोटी, बाबा रोटी...’

बाबा हाथ नचाते हुए बोले, ‘‘वह तो खाद्य सुरक्षा बिल ने दे दी है.

‘‘और बोलो क्या चाहिए? एक सपना लूंगा और पलक झपकते ही समस्या का समाधान कर दूंगा. अपनी खुद की समस्या को छोड़ वोटर की हर समस्या का समाधान है मेरे पास. तुम मेरे पास आ गए, गलती की. मोबाइल फोन पर ही अपनी समस्या बता दी होती. मैं जनता की हर समस्या का समाधान डीटीएच से ही कर देता हूं.’’

‘‘डीटीएच बोले तो...?’’ मैं ने दांतों तले उंगली दबाते हुए पूछा.

कमबख्त उंगली भी दांत से कट गई. दांतों ने कई दिनों से रोटी जो नहीं काटी थी.

‘‘डीटीएच बोले तो डायरैक्ट टू होम. कबूतरों के गले में संदेश बांध कर भेजने का समय गया. डाकिए भी अब गए ही समझो. अब तो हाईटैक जमाना है, हाईटैक. घर में टैलीविजन के पास बैठेबैठे औनलाइन समस्या का समाधान.

‘‘धर्मपत्नी से धोखा मिलना, सौतन के लिए घरवाली को शर्तिया मनाना, अपने निर्वाचन क्षेत्र के नेता पर वशीकरण, दोस्तों से छुटकारा, पैसे दे कर नौकरी पक्की करवाना, भाग कर मैरिज करवाना... गड़े पैसे को निकलवाने में तो मेरी मास्टरी है बेटा.

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