नुपूर की मां की तबीयत थोड़ी खराब रहती थी तो वे उम्मीदकर रही थीं कि बेटी घर आएगी तो उन्हें कुछ आराम मिलेगा, यानी बेटी उन के काम में हाथ बंटाएगी. लेकिन बेटी कुछ कहने पर भड़क जाती.

वह  कहती कि घर पर भी इंसान थोड़ी आजादी से नहीं रह पाता. हर बात पर टोकाटाकी. नुपूर की मां ने सोचा कि घर में शांति बनी रहे, इसलिए बेटी से कुछ कहना ही छोड़ दिया. उस का मन करे सोए या जागे. लेकिन जल्द इस खातिरदारी से वे थकने लगीं.

इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष का छात्र रक्षित 2 महीने की लंबी छुट्टियों में  होस्टल से घर आया था. कई दिनों से उस के मम्मीपापा उस का इंतजार कर रहे थे. लेकिन वह घर आ कर अलगथलग रहने लगा था. दोपहर तक सोता रहता, पापा कब दफ्तर जाते हैं, उसे पता ही नहीं चलता. मम्मी नाश्ता ले कर उस का इंतजार करतीं कि कब वह सो कर उठे और वे सुबह के कामों से फारिग हों, जब खाना खाने बैठता तो काफी नखरे करता.

रात को जब सब सोने चले जाते तो वह देररात तक जागता रहता. पेरैंट्स के साथ कुछ मदद करना तो दूर, वह उलटा उन के रूटीन को बिगाड़ उन से अपेक्षा करता कि उसे कोई कुछ न कहे.

ऐसा व्यवहार एकदो घरों में ही नहीं, बल्कि आजकल सभी घरों में आम हो चला है. बच्चों पर आरोप लगते हैं कि वे तो खुद को नवाब समझते हैं. शुरू में लाड़प्यार में मातापिता को भी अच्छा लगता है कि बच्चा थक कर आया है, कुछ दिन आराम करे. पर बच्चों को यह एहसास ही नहीं होता कि उन का भी कुछ फर्ज बनता है. जिस तरह वे बचपन में हर चीज के लिए मां पर निर्भर रहते थे, वही सोच उन की अब भी बरकरार रहती है.

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