ज्यादा नहीं अब से कोई तीन महीने पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जब विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तब अपने अंदरूनी और बाहरी सर्वेक्षणों के नतीजे देख भाजपा और आरएसएस दोनों सकते में आ गए थे क्योंकि तीनों राज्यों से सत्ता पलट के आंकड़े आ रहे थे. कमोबेश यही बात अधिकतर न्यूज चैनल्स और एजेंसियों के सर्वे भी कह रहे थे कि तीनों राज्यों का वोटर बदलाव चाहता है. भगवा खेमे का सरदर्द उस वक्त और बढ़ा जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिरों में जाकर पूजा पाठ करना शुरू किया और वे भी धोती कुर्ता पहन, माथे पर त्रिपुंड लगाकर मंदिरों से बाहर आते दिखने लगे.
राहुल गांधी ने इतना पूजा पाठ और दूसरे धार्मिक ढकोसले किए कि भगवा खेमा उनकी हिंदूवादी इमेज देख चकरा उठा कि अब इसका जबाब कैसे दें. अक्सर राहुल गांधी को मुसलमान, ईसाई या पारसी प्रचारित करते रहने वाले हिंदूवादियों की बोलती तब और बंद होने लगी जब राहुल ने पहले खुद को हिन्दू और फिर जनेऊधारी ब्राह्मण कहना शुरू कर दिया. इस धार्मिक हमले से बौखलाए भाजपा के दूरदर्शनीय प्रवक्ता संबित पात्रा भोपाल में उनसे उनका गोत्र पूछते नजर आए लेकिन लोगों ने राजनीति का गोत्र के स्तर तक गिरना स्वीकार नहीं किया और मान लिया कि राहुल गांधी हिन्दू हैं. उन्हें भी मंदिरों में जाकर पूजा पाठ और अभिषेक करने का उतना ही हक है जितना कि नरेंद्र मोदी या दूसरे किसी नेता को है.इसके पहले खुद को हिन्दू साबित करने या जताने राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा कर आए थे.
राहुल गांधी का यह रूप जनमानस पर छाने लगा और किसी भी टोटके से तीनों राज्यों में भाजपा की स्थिति में सुधार होता नहीं दिखा तो एकाएक ही फिर से बिना किसी सम्मन या पूर्व सूचना के राम मंदिर निर्माण का जिन्न बोतल से बाहर आ गया और अब हालत यह है फिर से रामभक्त मंदिर के लिए जान देने की बात करने लगे हैं. एक नए आंदोलन की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है. लग ऐसा रहा है कि अगर आजकल में मंदिर नहीं बना तो प्रलय आ जाएगी. राम भक्त मंदिर के लिए अध्यादेश और कानून की भी बात कर रहे हैं. देश भर के संत जानबूझकर बेचेनी दिखाते खुद पर और सरकार पर लानतें भेज रहे हैं कि बिना अयोध्या में राम मंदिर के जीवन व्यर्थ है.
मंदिर का विधानसभा चुनाव कनेक्शन
अभी तक तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव में मंदिर निर्माण सीधे सीधे कोई मुद्दा नहीं है और भगवा खेमा इसे अभी चुनावी मुद्दा बनाएगा भी नहीं क्योंकि लोग खुद उसकी उम्मीद के मुताबिक पूछ रहे हैं कि अभी तक सो रहे थे क्या, साढ़े चार साल सत्ता में रहते क्यों मंदिर के बाबत होश नहीं आया, नरेन्द्र मोदी की सरकार अब तक क्या कर रही थी जबकि सब कुछ उसके हाथ में था और नोटबंदी की जगह अगर मंदिर के लिए कानून ले आए होते तो बात कुछ और होती. अब चुनाव सर आ गए और कुर्सी पर बने रहने के लिए गिनाने कुछ नहीं है तो तम्बू में पड़े राम जी याद आने लगे.
भगवा खेमा जानता है ये सवाल हर कोई पूछेगा लेकिन इन के जबाब नहीं देना है बल्कि मंदिर निर्माण मुहिम को सुलगते देना है, हां कानूनी मजबूरी की बात जरूर दोहराते रहना है जिससे आज सवाल कर रहे हिन्दू खुद कहने लगें कि बात तो ठीक है कि मंदिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही बने तो हिन्दू यानि सनातन धर्म की साख भी बनी रहेगी और बगैर किसी कलंक या हिंसा के मंदिर भी बन जाएगा. एक बार मंदिर का नशा हिंदुओं के सर चढ़ भर जाये फिर तो इन्हें यह ज्ञान भी मिल जाएगा कि आखिर मंदिर बनाएगा कौन, जाहिर है हम यानि भगवा खेमा.
बात बड़ी दिलचस्प है कि खुद आम हिन्दू समझ रहा है कि हमेशा की तरह मंदिर के ठेकेदारों की मंशा सचमुच में मंदिर बनाने की नहीं है. यह शुद्ध चुनावी चाल है जिससे हालफिलहाल तीन राज्यों में लोगों का ध्यान सरकार विरोधी मुद्दों से हट जाये और वे चुनाव तक इस बहस में उलझे रहें कि मंदिर किस विधि से बनना ठीक रहेगा. उन लोगों की विधि से जो यह कह रहे हैं कि हिंदुओं की सब्र जबाब दे चुकी है या उन लोगों की पद्धत्ति से जो दरियादिली दिखाते यह दलील दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट को एक मौका और दिया जाये फिर भले ही फैसला मंदिर के पक्ष में न आए वह चिंता की बात नहीं होगी, क्योंकि तब हम हिन्दू एकजुट होकर रामलला का भव्य मंदिर कैसे बनाएंगे इसका एहसास और अंदाजा सभी को है.
किसी ने गलत नहीं कहा कि नब्बे फीसदी भारतीय बेवकूफ हैं उन्हें आसानी से धर्म के नाम पर बहलाया फुसलाया जा सकता है. हो यही रहा है कि महज तीन चार दिन में ही तीन राज्यों में किसानों की खुदकुशियों और बेरोजगारों की बात कम हो चली हैं. सवर्ण अब एट्रोसिटी एक्ट को नहीं रो रहा और न ही आरक्षण पर हफ्ते भर पहले की तरह विलाप कर रहा है. उसे समझ आ रहा कई कि जमानत की जरूरत तो तब पड़ती है जब कोई रिपोर्ट लिखाने की जुर्रत करे. वह खुद को जज समझते कह रहा है कि अच्छा तो यह होगा कि हिंसा के जरिये मंदिर बनाने की नौबत न आए और अगर आ भी जाये तो फिर पीछे न हटा जाये. हिंदुओं के देश में ही उनके आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मंदिर बनाने अदालत का मुंह सालों साल ताकना पड़े यह तो सच में जिल्लत और जलालत की बात है. यही वर्ग बड़ी शिद्दत से यह भी कह रहा है कि अब अगर भाजपा मंदिर के नाम पर वोट मांगेगी तो उसे ठेंगा दिखा देंगे.
यही समाज की वह आत्मघाती मानसिकता और प्रतिक्रिया है जिसके लिए बड़े पैमाने पर मंदिर निर्माण की बात विरोधाभासी ढंग से भगवा खेमा कह रहा है. कोई यह नहीं कह रहा कि देश में लाखों राम मंदिर हैं फिर अयोध्या को लेकर ही जिद क्यों.
अब इसके आगे किसी के कुछ बोलने सुनने की जरूरत नहीं रह जाती क्योंकि मंदिर एक्सप्रेस अब आस्था नाम के जंक्शन पर खड़ी है जहां से हर लाइन अयोध्या जाती है. इसी ट्रेक पर आकर आस्था आसानी से हिंसा में तब्दील हो जाती है.
लोग हर कभी पंडों, संतों, महंतों, शंकराचार्यों सहित आरएसएस व विहिप और नेताओं के बिछाए संयुक्त जाल में फंसकर धर्म की अफीम खाकर बहकने लगते हैं जिससे उनका शरीर सुस्त और हाथ पैर ढीले पड़ जाते हैं. उनका दिमाग यानि बुद्धि काम करना बंद कर देती है तो हैरत किस बात की, धर्म के इन ठेकेदारों ने ऐसे ही कितने भीषण युद्ध कराये हैं, भाई के हाथों भाई को मरवाया है, औरतों की इज्जत से सरेआम खिलवाड़ किया और करवाया है, शूद्रों पर जानवरों की तरह जुल्म ढाये हैं, उनसे गुलामों की तरह काम कराया है यह बात कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. फिर तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव तो कुछ भी नहीं.
बहरहाल रही बात तीन राज्यों में मंदिर मुद्दे की तो लोग धीरे धीरे ही सही अफीम चखने के झांसे में आ रहे हैं और ऐसे आ रहे हैं कि खुद भी नहीं समझ पा रहे. तीन राज्यों मे भाजपा जीते या हारे यह भगवा खेमे की चिंता का विषय नहीं है उसे चिंता नरेंद्र मोदी और 2019 की है. तब तक हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर कानून और संविधान की दुहाई देना भी बंद हो जाये. कम ही लोग दूर की सोच पा रहे हैं कि अगर हिंसा बड़े पैमाने पर मंदिर के नाम पर हुई तो एक विकल्प या रास्ता आपातकाल का भी सरकार के पास बचता है बशर्ते लोग 1992 की तरह मंदिर निर्माण के बाबत तैयार या इकट्ठा नहीं हुये तो. कोशिश यह जताने की भी है कि अगर नरेंद्र मोदी कानून नहीं लाये तो उन्हें चलता कर कोई दूसरा चेहरा पेश कर दिया जाएगा और इस बाबत योगी आदित्यनाथ सबसे मुफीद हैं.
दरअसल में साजिश अब राम मंदिर के नाम पर हिंदुओं को उकसाने की नहीं बल्कि धार्मिक ग्लानि से भर देने की है कि अगर मंदिर के लिए आगे नहीं आए तो तुम से बड़ा कायर कोई नहीं होगा और आने वाली पीढ़ियां तुम्हारी उदासीनता और खामोशी का फल भुगतेंगी और फिर से गुलाम हो जाएंगी जिसके लक्षण नई नस्ल में दिख भी रहे हैं जो पूजा पाठ यज्ञ हवन बगैरह से कतराने लगी है.