साल 2005 से साल 2016 के बीच इस की खपत दोगुनी हो चुकी थी. मनोवैज्ञानिकों की रिसर्च बताती है कि किसी चीज की लत लग जाने से इनसान को दिमागी तनाव, असंतोष और हताशा होती है. हमें इस रिसर्च की वजहों की जांचपड़ताल खुशहाली के विश्व सूचकांक में करनी चाहिए. दुनिया के 155 देशों में हम नीचे खिसक कर 133वें पायदान पर आ गए हैं,

जबकि एक साल पहले हमारी जगह 122वीं थी. अगर आम आदमी बेचैन और परेशान है तो जाहिर है कि वह राहत की तलाश में शराब जैसे नशे का आसान सहारा लेता है. लेकिन उस के लिए पैसा भी तो होना चाहिए. भारत जैसे देश में, जहां राज्य सरकारें शाही खर्च पूरे करने के लिए शराब पर भारीभरकम टैक्स लगाती हों, ऐसे में सस्ती शराब गरीब के लिए वरदान जैसी बन जाती है. इसी कमजोरी का फायदा पैसे के लिए जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले लोग उठाते हैं. केंद्र सरकार मानती है कि हर साल 2 से 3 हजार लोग जहरीली शराब पीने से अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक बार फिर जहरीली व सस्ती शराब ने 110 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया. यह तथाकथित शराब उत्तराखंड के पवित्र क्षेत्र हरिद्वार में बनी थी और एक पारिवारिक उत्सव के मौके पर वहां आए मेहमानों को परोसी गई थी. कहने की जरूरत नहीं है कि हर थोड़े समय पर लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं निकम्मे प्रशासन, भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों की ओर ध्यान दिलाती हैं, लेकिन हमदर्दी और दिखावटी कानूनी कार्यवाही वाले खोखले उपायों से आगे हम कभी जा ही नहीं पाते हैं. नतीजतन, मौत का यह ताडंव बदस्तूर जारी रहता है.

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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसा ही हादसा साल 2015 में मुंबई के इलाके मालवणी में हुआ था, जिस में तकरीबन 106 मजदूर सस्ती शराब पीने से अपनी जान गंवा बैठे थे. अगर उसी इलाके में जा कर देखा जाए तो वहां अब भी उसी तरह सस्ती व नकली शराब बनते हुए मिल जाएगी. निकम्मे प्रशासन और लचर कानून व्यवस्था की पोल खोलने वाले ऐसे हादसों के तत्काल बाद सरकारी मशीनरी छापे मारती है और तलाशी मुहिम चलाती है. ज्यादा कोशिश किए बिना ही वह नकली जहरीली शराब बनाने वाले ठिकानों तक पहुंच जाती है और सैकड़ोंहजारों लिटर जानलेवा शराब बरबाद करने की तसवीरें ले कर वाहवाही के लिए जनता के सामने आ खड़ी होती हैं. अंधाधुंध गिरफ्तारियों के साथ ही कुछ दिनों के लिए जहर के सौदागर ओझल हो जाते हैं और जैसे ही जनता का गुस्सा कम होने लगता है, वे फिर यह धंधा शुरू कर देते हैं. इस मामले में सब से जरूरी सवाल यह है कि सरकारें विभागीय जवाबदेही क्यों तय नहीं करती हैं? गैरकानूनी शराब के कारोबार पर निगरानी रखने के लिए सभी प्रदेशों में अलग विभाग काम कर रहे हैं. ऐसे हादसों के सामने आने पर इन विभागों से न केवल जवाबतलब किया जाना चाहिए, बल्कि इस के लिए जवाबदेह अफसरों और मुलाजिमों पर सख्त कार्यवाही भी की जानी चाहिए.

पर ऐसा होता नहीं है. प्रशासन वाले शायद इन आंकड़ों से खुश हो जाते हैं कि दुनिया में शराब का सब से बड़ा उपभोक्ता और तीसरा आयातकर्ता भारत है. हालांकि, देश में बहुत बड़े पैमाने पर कारखानों में शराब का उत्पादन होता है. ऐसे बड़े कारखानों की तादाद 10 है. इन में तैयार की जाने वाली शराब का 70 फीसदी देश में ही सुरा प्रेमियों द्वारा इस्तेमाल कर लिया जाता है, फिर भी ज्यादा सस्ता और आसान नशा मुहैया कराने के लिए शराब के नाम पर जहरीली चीजों से तैयार पेय का बेचा जाना आम बात है. ये पेय ही जानलेवा बन जाते हैं. देश के 8 राज्य ऐसे हैं, जिन में ऐसे 70 फीसदी हादसों से लोगों को दोचार होना पड़ता है. इन में उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं. ऐसी घटनाएं शराबबंदी वाले गुजरात में भी सामने आ चुकी हैं, हालांकि कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुए इन पर कोई सख्त कारगर कार्यवाही नहीं की गई है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हादसों से जुड़ी जानकारी बताती है कि जिस जहरीले पेय को पीने से इतनी बड़ी तादाद में लोग मौत का शिकार बने, उस की कीमत सिर्फ 10 रुपए से शुरू हो कर 30 रुपए तक थी.

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यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि शराब पर सभी राज्य सरकारों को टैक्स की दरें घटानी चाहिए, लेकिन इस के खिलाफ एक दलील तो यह भी है कि शराब सस्ती होगी तो ज्यादा मात्रा में पीने की वजह से लोगों की सेहत से जुड़ी समस्याएं बढ़ेंगी. दूसरी परेशानी पैसे की है. सभी राज्य सरकारें तकरीबन 20 फीसदी राजस्व शराब पर टैक्स से जुटाती?हैं. जाहिर है, यह राजस्व का एक बड़ा जरीया है. यही वजह है कि शायद ही किसी राज्य का कोई ऐसा बजट आता हो, जिस में शराब पर टैक्स न बढ़ाए जाते हों. राज्य सरकारों की इस पैसा बटोरू लालची नीति ने शराब इतनी महंगी कर दी है कि गरीब आदमी की उस तक पहुंच मुश्किल हो गई. इन हालात ने ही सस्ती शराब बनाने के लिए संगठित अपराधी गिरोहों को मौका दिया है. ये गिरोह कई तरीकों से सस्ता नशा तैयार करते हैं. इन का तंत्र पूरी योजना बना कर काम करता है और निगरानी रखने वाले सरकारी अफसरों व मुलाजिमों के साथ भी उन की अच्छी दोस्ती बनी रहती है. आबकारी विभाग को सस्ता नशा बनाने वालों और बेचने वालों की जानकारी होती है.

सच तो यह है कि इस गैरकानूनी काम पर उन्हीं की सरपरस्ती है, वरना वे इतनी आसानी और कामयाबी से अपने आपराधिक कारोबार को चला ही नहीं सकते. आमतौर पर शराब की 4 किस्में प्रचलित हैं. इन में पहली है ताड़ी या कच्ची शराब, जिसे अरक या अर्क, ठर्रा, फैनी वगैरह कई नामों से पुकारा जाता है. दूसरी है देशी शराब, तीसरी बीयर और विदेशी कह कर सेवन की जाने वाली शराब और चौथे नंबर पर स्कौच या वाइन जैसी महंगी आयातित विदेशी शराब हैं. हम एक 5वीं किस्म भी रख सकते हैं जो गरीब बस्तियों या दूरदराज के गांवों में बिना कोशिश के मिल जाती है और जो सब से सस्ती लागत में तैयार करने के लिए जहरीली चीजों से बनाई जाती है. कच्ची शराब को ज्यादा नशीला बनाने की कोशिश में वह जहरीली हो जाती है. आमतौर पर इसे बनाने में गुड़, शीरा से लहन तैयार किया जाता है. लहन को मिट्टी में दबा दिया जाता है. इस में यूरिया और बेशरम बेल की पत्तियां डाली जाती हैं. ज्यादा नशीला बनाने के लिए इस में औक्सिटोसिन मिला दिया जाता है, जो थोड़ी भी मात्रा ज्यादा हो जाने पर मौत की वजह बनता है. कुछ जगहों पर कच्ची शराब बनाने के लिए गुड़ में खमीर और यूरिया मिला कर इसे मिट्टी में दबा दिया जाता है. खमीर उठने पर इसे भट्ठी पर चढ़ा दिया जाता है. गरम होने के बाद जब भाप उठती है तो उस से शराब उतारी जाती है. इस के अलावा सड़े संतरे, उस के छिलके और सड़ेगले अंगूर से भी खमीर तैयार किया जाता है. कच्ची शराब में औक्सिटोसिन और यूरिया जैसे कैमिकल मिलाने की वजह से मिथाइल अलकोहल बन जाता है.

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इस की वजह से ही लोगों की मौत होती है. मिथाइल अलकोहल के शरीर में जाते ही तेज रासायनिक क्रिया होने लगती है. इस का असर बढ़ने पर शरीर के अहम अंग जैसे जिगर, गुरदे, फेफड़े काम करना बंद करने लगते हैं. इस की वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है. खपत के लिहाज से देश में सब से पहला नाम आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का है. वहां एक साल में औसत प्रति व्यक्ति 34.5 लिटर या हर हफ्ते 665 मिलीलिटर शराब इस्तेमाल की जाती है. कीमती या सस्ती शराब का सीधा ताल्लुक पीने वाले की कमाई और उस के रहनसहन से होता है. शहर में कुछ बेहतर किस्म की और गांव में देशी शराब को प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है. वैसे, फिलहाल भारत में गुजरात, बिहार, केरल, लक्षद्वीप, नागालैंड और मणिपुर में शराबबंदी है. हाईवे पर शराब बिक्री बैन देश के हाईवे पर हर साल डेढ़ लाख लोगों की जान चली जाती है. इस की एक अहम वजह शराब के चलते होने वाले हादसों को माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कदम उठाते हुए नैशनल हाईवे पर बेची जाने वाली शराब के नियमों में सख्ती की है. इन रास्तों से कम से कम 220 मीटर दूर ही शराब की दुकानें खोली जा सकेंगी.

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पहले के आदेश में यह दूरी 500 मीटर तय की गई थी, लेकिन राज्य सरकारों और केंद्र की दलीलों के बाद इसे कम कर दिया गया है. उन का कहना था कि पहाड़ी क्षेत्रों में 500 मीटर के फासले पर पहाड़ आ ही जाएगा. इस बदलाव का फायदा सिक्किम, मेघालय, हिमाचल प्रदेश राज्यों को भी मिलेगा. इसी तरह का तर्क गोवा के मामले में पेश किया गया कि इतनी कम दूरी पर समुद्र हर जगह पर आ जाएगा. इस आधार पर वहां भी यह फासला घटा दिया गया. अदालत से कुछ राज्यों ने यह गुहार भी लगाई गई कि वहां शराबबंदी लागू की जाए. इन में झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं. एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि शराब की दुकानों का संचालन नहीं, नशे के कारोबार पर कंट्रोल करना सरकारों का काम है, इसलिए जो निगम या सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं, उन को इस से हट जाना चाहिए.

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