लेखक- असित कुमार

एक नए मेयर ने नगर महापालिका की मखमली और मुलायम कुरसी पर खुद को बैठाने की पूरी तैयारी कर रखी थी. कुरसीमान होते ही नए मेयर ने शहरियों को अपनी नीतियों से अवगत कराया. उन की नीतियां नई तो क्या खाक होतीं बस, तेवर कुछकुछ नए थे. पिछले मेयर निहायत ही आलसी थे. वह कोशिश यही करते थे कि ज्यादातर काम बैठेबैठे ही करें. मसलन, भाषण देना, शहर की खूबसूरत औरतों के साथ फोटो खिंचवाना आदि. इसीलिए उन का नारा था : ‘‘हमें अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा रह कर महापालिका को एक आदर्श निकाय के रूप में स्थापित करना है.’’

अब इस दावे की सचाई यह रही कि उन के कार्यकाल के समाप्त होने तक महापालिका की हालत इतनी पतली हो गई थी कि खुद मेयर साहब को तनख्वाह से महफूज रहना पड़ गया था.

यह अलग बात थी कि मेयर के बेटे ने बाप के कार्यकाल के दौरान नगर की सफाई, प्रकाश व्यवस्था आदि के ठेकों में 9 करोड़ बना लिए थे. खैर, यह सब तो नए मेयर का दोषारोपण था और इस तरह की टांग खिंचाई राजनीति में चलती रहती है. किसी पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाना, जांच कराने के लिए शोर मचाना आदि. फिलहाल तो पुराने मेयर साहब भूमिगत हैं जब बाहर निकलेंगे तो स्वयं ही निबट लेंगे.

हां, तो मसला यह था कि शहर गंदगी से बजबजा रहा था क्योंकि         97 प्रतिशत सफाई कर्मचारी वेतन न मिलने की वजह से हड़ताल पर थे और जो 3 प्रतिशत सफाईकर्मी पुराने मेयर के चहेते थे वे उन के साथ लपेटे में फंसे होने की वजह से छिपे हुए थे. शहर के लोग इधरउधर जमा गंदगी के ढेर से भयभीत थे. एक खतरा आवारा घूमते चौपाए जानवरों से भी था कि पता नहीं कब उन का मूड खराब हो जाए और किसी दोपाए इनसान को लपेटे में ले लें.

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कुरसी पर बैठते ही नए मेयर ने जनता के उद्धार का बीड़ा उठाया और आननफानन में सारी औपचारिकताएं पूरी कर के नगर के दौरे पर निकल पड़े.

मेयर साहब के साथ उन का पूरा स्टाफ कलमकागज ले कर उन के काफिले में शामिल था और उन की हर टिप्पणी को उसी समय नोट कर रहा था. इस तरह नगर प्रमुख का यह काफिला अभी शहर का चौथाई रास्ता ही तय कर पाया था कि उसे रुकना पड़ा क्योंकि गली के हर मोड़ पर पड़े कूड़े के ढेर से उठती दुर्गंध इस कदर दमघोंटू थी कि नाकमुंह पर मास्क पहनने के बाद भी बदबू हलक में उतर रही थी.

उस पर सूअरों के एक झुंड ने मेयर साहब की जम कर अगवानी की और कूड़े के ढेर नंबर 343 से ले कर ढेर नंबर 357 तक आगेआगे सूअर व पीछेपीछे मेयर साहब का अमला दौड़ रहा था.

दौरा स्थगित हो गया. उस बदबूदार और कीचड़ से लथपथ मेयर रूपी मानवाकृति को वापस अपनी पुरानी स्थिति में लाने के लिए एक टैंकर पानी के साथसाथ आधा दर्जन साबुन की टिकियाएं अपने ऊपर खर्च करनी पड़ीं. साथ ही अपने 5 फुट 10 इंच लंबे शरीर पर मेयर ने एक पूरी शीशी परफ्यूम की स्प्रे कर दी. इस के बाद भी उन का दम घुटता रहा और अपनी सही स्थिति पाने में उन्हें 3 दिन लग गए.

स्वास्थ्य लाभ के बाद अपनी कुरसी पर बैठते ही मेयर ने जोरदार शब्दों में शहर को सूअर और कूड़े के ढेर से आजाद करने की घोषणा की और आने वाले सोमवार से सफाई कार्यक्रम शुरू करने का बिगुल बजा दिया.

सभी न्यूज चैनलों, रेडियो स्टेशन और अखबार वालों को इस की खबर दे दी गई. नगर प्रमुख की पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपील की गई कि वे भरपूर मात्रा में झाड़ू, डंडे और सफाई की आवश्यक सामग्री ले कर महापालिका के दफ्तर पर सुबह 6 बजे जमा हों.

शहर भर के बड़े ढाबे वालों एवं होटल वालों को मौखिक आदेश दे दिया गया कि वे कार्यकर्ताओं के स्तर के हिसाब से अपने अपने यहां लंच पैकेट तथा कोल्ड ड्रिंक का प्रबंध रखें.

वह दिन भी आ गया. चुस्त जींस, रंगीन टीशर्ट और सफेद टोपी पहन कर मेयर साहब ने अपने आवास के बाहर कदम रखा. बाहर पहले से ही तैनात टीवी और समाचारपत्र संवाददाताओं ने अपने कैमरे चालू किए और विभिन्न मुद्राओं में उन के चित्र उतारे. नंगे सिर, टोपी के साथ, एक हाथ में झाड़ू तथा दूसरे में सूअर पकड़ने का विशेष जाल लिए मेयर साहब के फोटो खींचे गए.

इस तमाशेबाजी के साथ मेयर साहब ने कूड़े के कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया और शीघ्र ही वह कूड़े के ढेर नंबर 343 के पास पहुंच गए जहां सूअर के एक झुंड से उन का वास्ता पड़ा था और जिस ने उन के सफेद कपड़ों पर कीचड़ के छींटे मारने की गलती की थी.

जुलूस वहां पहुंचा और अचानक ही नारे लगने बंद हो गए क्योंकि सामने से वैसे ही जुलूस के साथ विपक्षी पार्टी के सदस्य सूअर बचाओ आंदोलन के बैनर लिए पहले से ही मौजूद थे.

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किसी प्रकार का असमंजस या कन्फ्यूजन न हो इस के लिए वे सभी अपने सिरों पर सूअर के मुंह के आकार वाली टोपियां पहने थे. कूड़े के ढेर के चारों ओर एक गोलाकार घेरा बना कर सूअर बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता हाथों में लाठियां और डंडे लिए खड़े थे. उन के पीछे कूड़े के ढेर में दूसरे चौपाए जानवरों के साथ सूअरों का झुंड बड़े इत्मीनान के साथ विहार कर रहा था.

मेयर अपने दलबल के साथ जैसे ही वहां पहुंचे दूसरी ओर से यह नारा लगा :

‘‘मेयर नहीं कसाई है, सूअर हमारा भाई है.’’

जोश में एक महिला ने कूड़े के ढेर पर खड़े हो कर लोगों को यह जताने का प्रयास किया कि सूअर वास्तव में पर्यावरण के संरक्षक…इस के आगे के शब्द अनसुने ही रह गए क्योंकि तब तक वह कूड़े के ढेर में धंस कर अदृश्य हो चुकी थी.

इस के बाद तो सूअर बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता अपनेअपने बैनर और झंडे छोड़ कर कूड़े के ढेर पर पिल पड़े. इस अप्रत्याशित हमले से घबरा कर चौपाए जानवर इतने बौखला गए कि अपनी ही जाति के लोगों से भिड़ गए.

‘अरे, मार डाला रे,’ के जोरदार चीत्कार को सुन कर मीडिया वालों ने अपने कैमरे उधर घुमाए तो पाया कि शहर के जानेमाने रंगकर्मी चुरुल बाबू एक बिदके सांड के सींगों के बीच

टंगे लोगों से जरा बचाने की गुहार कर रहे हैं.

तभी लोगों ने देखा कि सांड ने चुरुल बाबू को किसी राकेट लांचर की तरह उछाल कर कूड़े के ढेर की

ओर फेंका तो वह अपने साथसाथ 2 और लोगों को ले कर कूड़े के ढेर में समा गए.

मीडियाकर्मियों की हंसी उड़ाती निगाहों ने मेयर साहब को मजबूर कर दिया कि वह कूड़ा रणक्षेत्र से पीछे न हटें बल्कि ऐसा कुछ करें कि सब का मुंह बंद हो जाए. वह जानते थे कि मीडिया वाले सुरक्षित स्थानों पर डटे हुए दूर से ही कैमरे का फोकस करेंगे और अनापशनाप बोलना शुरू कर देंगे, क्योंकि यही तो उन की रोजीरोटी का जरिया है.

चुरुल बाबू और सूअर बचाओ आंदोलन की नेत्री अभी भी कूड़े के ढेर में गुम थे और इन दोनों को बचाने के लिए की जा रही कोशिशों को सूअर, कुत्तों और सांडों के गठबंधन ने पूरी तरह विफल कर डाला था.

इस सारे दृश्य का एक सीधा अर्थ था कि अब वहां मौजूद जनसमूह की निगाहें मेयर साहब के रूप में अपने नए तारनहार को देख रही थीं. ऐसे में कोई भी गलत कदम उन की कुरसी को हिला सकता था. मेयर साहब ने असमंजस से अपनी टोपी उतार कर सिर खुजलाया.

उधर जुगाली करते हुए एक बैल को 2 सूअरों ने थूथन मार कर राह से हटाने का प्रयास किया. बैल को ताव आ गया और उस ने सिर झुका कर दोनों सूअरों को दौड़ा लिया.

दोनों सूअर जान बचाने के लिए उधर की तरफ भागे जिधर मेयर साहब पीठ किए खड़े थे. वह अपने एक हाथ में जाल को लटकाए हुए थे तो दूसरे हाथ में टोपी और झाड़ू थामे थे. एक सूअर गोली की रफ्तार से उन के पैरों के बीच से निकल भागा तो दूसरा उन की एक टांग पर थूथन मारता हुआ निकल गया.

घबराहट और अचंभे की मिलीजुली चीत्कार मेयर के मुख से निकली. उन के समर्थकों ने पलट कर देखा तो पाया कि बैल के दोनों सींग मेयर के हाथ में लटके जाल में उलझ गए थे. वह जाल लिए भागता चला गया और साथ में शहर के मेयर भी.

बैल से बचने और जाल को छुड़ाने की कोशिश में कब मेयर बैल की पीठ पर सवार हो गए पता ही नहीं चला और आश्चर्य से आंखें फाडे़ प्रत्यक्षदर्शियों ने देखा कि बड़ी बहादुरी से बैल को जाल में फांसे मेयर दनादन झाड़ू बरसाने में लगे हैं.

यह देख कर उन के समर्थकों के होंठों पर प्रशंसा के शब्द वाहवाह ‘आ’ गए. मीडियाकर्मी फटाफट कैमरे चालू कर के तसवीरें खींचने लगे और टेलीविजन पर उन की इस वीरता का आंखों देखा हाल प्रसारित होने लगा.

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मेयर समर्थक आकाशभेदी नारे बुलंद करने लगे, ‘‘देखो, फंसा शिकंजे में, बैल मेयर के पंजे में.’’

उधर इस  सब से अनजान मेयर साहब अपनी जान बचाने के लिए संघर्षरत थे. दोनों पैरों को बैल के पेट पर चिमटे की तरह फंसाए, सींगों को साइकिल के हैंडिल की तरह कभी इस हाथ से तो कभी उस हाथ से पकड़ने के चक्कर में उन की टोपी एक सींग में इस तरह फंस गई कि कोल्हू के बैल की तरह उस की एक आंख ही बंद हो गई.

बैल बेतहाशा उछलकूद कर के उस नामाकूल टोपी से छुटकारा पाने की जुगत में लगा था लेकिन सब बेकार इधर चक्कर, उधर घुमाव लेते हुए आखिर में उस की हिम्मत ने साथ छोड़ दिया और वह कूड़े के ढेर पर ढेर हो गया.

दूर खड़े प्रत्यक्ष- दर्शियों ने जोरदार नारे लगा कर मेयर की बहादुरी का स्वागत किया. 2-3 उत्साही पार्टी कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़ कर मेयर साहब को बैल पर से उतारा और कंधों पर लाद कर विजयी उद्घोष करते हुए कूड़े के चारों ओर चक्कर काटने लगे.

अपने थके हाथपांवों और भयंकर पीड़ा से दुखते शरीर के बावजूद मेयर साहब हंसहंस कर इस जयजयकार को स्वीकार करने लगे.

दूसरे हाथ से उस  पर ‘छुट्टा पशु पकड़ो’ दल के कर्मचारियों ने विजय नारे लगाते हुए जाल में फंसे बैल को उठा कर ट्रक में डाला और सरपट निकल चले. उन के जाते ही डंपर, ट्रक और कूड़ा उठाने वाली क्रेन और मशीनें आ गईं, युद्धस्तर पर काम होने लगा और ट्रकों में कूड़ा भरभर कर नगर के बाहर सूखे पड़े एक तालाब पर ले जाया जाने लगा. वहां एक नई कालोनी बनाने का इरादा था.

इन सब के बीच किसी युद्ध विजेता की तरह सीना फुलाए मेयर साहब हाथ में लंबी जमादारी झाड़ू, जाल लिए तिरछी टोपी लगाए एक ओर खड़े मुसकरा रहे थे.

17 घंटे चले इस सफाई अभियान के बाद महल्ले की सड़कें ऐसे जगमगा उठीं जैसे कभी कूड़ा वहां रहा ही न हो. इस प्रकार मेयर ने ढेर नंबर 343 पर उस सूअर द्वारा की गई अपनी फजीहत का बदला ले लिया था.            द्य

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