प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जब जब टीवी पर देश को संबोधित करने, संदेश देने आते हैं चारों तरफ एक भय का वातावरण, सनाका खींच आता है. आखिर लाख टके का सवाल यह है कि देश की आवाम अपने प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से भयभीत क्यों रहती है?

जैसे “अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है” एक मुहावरा बन गया है. वैसे ही आज देश में नरेंद्र मोदी की लाइव टेलीकास्ट के समय यह चर्चा बड़े जोरों पर चलती है, ट्रेड करने लगती है कि हमारे प्रधानमंत्री आज जाने क्या “वज्रपात” करेंगे, “बिजली” गिराएंगे!

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शायद यही कारण है कि अपनी इस छवि को दुरुस्त  करने के लिए शुक्रवार का दिन नरेंद्र मोदी ने चयन किया और वक्त भी सुबह 9 बजे का. सबसे बड़ी बात यह कि अपेक्षा के विपरीत, देश की जनता को, सहज  सहलता के साथ सहलाते हुए, यही आग्रह किया कि आगामी पांच अप्रैल दिन रविवार को रात 9 बजे सिर्फ 9 मिनट तक घर में , सब जगह अंधेरा करके, एक दिया जला दिया जाए, एक टार्च  जला दी जाए और यह संदेश दिया जाए कि भारत एक है, भारत की 130 करोड़ आवाम एक है और हम सब मिलकर कोरोना को परास्त करेंगे.

यहां यह बताना लाजमी होगा कि नरेंद्र दामोदर दास मोदी की कार्यशैली पूर्व सभी प्रधानमंत्रियों से बिल्कुल भिन्न है और आपकी एक ही चाहत है कि देश आपको कभी बिसार  न सके संभवत यही कारण है कि बारंबार कुछ ऐसे फैसले लिए जाते हैं जिससे जनता चाहे रो कर नाम ले, की हंसकर नाम ले, नाम तो मोदी का लेना ही पड़ेगा.

मोदी ने अपना मिथक तोड़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज तीन अप्रैल को एक तरह से अपने ही बनाये मिथक को तोड़ दिया. दरअसल, जाने अनजाने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा एक बड़ी लकीर खींच दी गई थी. यह लकीर थी, देश की जनता को संबोधन करने के समय कुछ ऐसा प्रहार, कुछ ऐसा वज्रपात, बिजली गिराना की जनता त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे.

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स्मरण आता है 8 नवंबर का वह दिन जब “नोट बंदी” की उन्होंने रात को 8 बजे घोषणा की थी. जब यह संदेश आया था कि प्रधानमंत्री देश को संबोधित करेंगे तो लोगों ने सहजता से लिया था मगर जब रात को 8 बजे उन्होंने नोटबंदी की घोषणा कर दी तो त्राहि-त्राहि मच गई. बाद में जब वह पुनः  रात को आए तो भी जनता को कोई राहत नहीं मिली और यह सबक जरूर मिला की नोटबंदी से आतंकवाद, नक्सलवाद, काला धन समाप्त हो जाएगा. जो कि हम जानते हैं,आज तलक  नहीं हुआ है, इसी तरह जीएसटी पर भी रात को 8 बजे आकर उन्होंने देश को संबोधित किया था. कुल जमा रात को प्रधानमंत्री का आना लोगों में भय, सिहरन पैदा करने लगा था. जिसे आज उनहोंने स्वयं तोड़ने का प्रयास किया है.  मगर मसला यहीं खत्म नहीं होता सवाल है सिर्फ आज के अल्प संवाद से जनता को हासिल क्या हुआ ?जनता को बड़ी अपेक्षा थी कि देश की विषम स्थिति पर, आप मलहम लगाएंगे, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

कोरोना: यक्ष-प्रश्न यह है

बीते 22 मार्च से, देश एक तरह से घर में बंद है. लॉक डाउन की स्थिति में संपूर्ण देश मानो ठहर गया है.दुकाने बंद है दफ्तर बंद है ट्रेन बंद है, बस बंद है सिर्फ अति आवश्यक कार्य जारी है देश ने अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात को माना और सम्मान करते हुए स्वयं को घरों में कैद कर लिया है. मगर इसके बावजूद देश की स्थिति भयावह होती चली जा रही है लोग सड़कों पर रात बिताने को मजबूर हैं. लोग भूखे हैं, लोग पैदल सैकड़ों किलोमीटर अपने घर की ओर लौट रहे हैं. दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज की घटना से देश उद्वेलित है लोगों पर थूका जा रहा है, डाक्टर  अपना काम निष्ठा पूर्वक कर रहे हैं. मगर डॉक्टरों के लिए सरकार द्वारा सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं कराई गई हैं. ऐसे में देश में एक जन भावनाओं का उद्वेलन देश के नायक ही पैदा कर सकते हैंएक दिशा  प्रदान  कर सकते हैं . आज अगर मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं तो उनसे अपेक्षा देशवासियों को है कि इन मसले पर भी, अपने उद्गार व्यक्त करके देश को दिशा प्रदान करें.

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