Hindi Story : अम्मी और अब्बू की सिर्फ तसवीर ही देखी थी ज़ीनत ने. उन का प्यार कैसा होता है, इस का उसे एहसास ही नहीं था. अम्मी और अब्बू के एक सड़क दुर्घटना में मारे जाने के बाद मामी और मामू ही ज़ीनत का सहारा थे.
मामू ने ज़ीनत को पढ़ायालिखाया और इस लायक बनाया कि बडी हो कर वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सके और मामू का सहारा बने.
मामू की माली हालत अच्छी नहीं थी. एक कमरे के मकान के बाहर एक छोटा सा खोखा रख रखा था मामू ने. उस में बिसातखाने का सामान रख कर बेचते थे.
जो औरतें सामान खरीदने आतीं, वे इतना मोलभाव करतीं कि किसी चीज़ पर मिलने वाला मुनाफ़ा कम हो जाता. वैसे भी, मामू को बाहर की औरतों से बहुत लगाव महसूस होता था. वे चाहते थे कि औरतें उन के खोखे पर आ कर उन से बातें करती ही रहें. उन की इसी कमज़ोरी का लाभ चालाक औरतें खूब उठाती थीं. वे मामू से खूब रसीली बातें करतीं और सामान सस्ते में खरीद लेतीं.
घर में 5 लोग थे – मामू, मामी, उन के 2 बच्चे और एक ज़ीनत. इन सब का खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी ज़ीनत के कंधों पर ही थी. इसीलिए ज़ीनत शहर के ही एक स्कूल में कम्प्यूटर पढ़ाने का काम करने लगी थी.
ज़ीनत के मामू जितने लापरवाह किस्म के थे, मामी उतनी ही सख्त मिज़ाज़.
“मैं तो कहती हूं कि घर में अगर लड़की हो तो उस पर एक नज़र टेढ़ी ही रखनी चाहिए और घर की अंदरूनी बातों में लड़की जात को ज़्यादा शामिल नहीं करना चाहिए,” मामी ने पड़ोस में रहने वाली शकीला से कहा और शकीला ने हां में हां मिलाई.
“हां, सही कहा आप ने और इसीलिए मैं ने अपनी बेटी सलमा का स्कूल जाना बंद करवा दिया है. अब 8वीं जमात तो पास हो ही गई है, आगे की पढ़ाई के लिए लड़कों वाले स्कूल में भेजना पड़ेगा और हम ने तो सुना है कि वहां लड़का और लड़की एकसाथ बैठते हैं.”
इसी सख्ती का नतीजा था कि ज़ीनत ने अपनेआप को बहुत सम्भाल रखा था और हमेशा ही सहमी सी रहती थी. इस सहमेपन के साथ जीतेजीते वह 30 साल की हो गई थी और अभी तक कुंआरी थी. ऐसा नहीं था कि उस के लिए शादी के पैगाम नहीं आए. पर भला मामू उस की शादी करा देते तो घर के लिए पैसे कौन लाता.
मामू, मामी की सोच यही थी कि जीनत इसी घर में ही रहती रहे और पैसे लाती रहे. मामू और मामी के दोनों लड़के भी अब जवान हो चले थे और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को भरपूर समझते हुए कुछ पैसे जोड़े. कुछ पैसा बैंक से लोन लिया और अपने अब्बा की बिसातखाने की दुकान को अब एक बढ़िया मेकअप सेंटर में तबदील कर दिया और दोनों खुद ही इसी काम में उतर आए थे.
ज़ीनत भी मेहनत से स्कूल में अपनी ड्यूटी पूरी करती और घर आ कर भी मामी की रसोईघर में मदद करती.
ज़ीनत ने अपनी जवान होती भावनाओं को अच्छी तरह से काबू कर रखा था. पर फिर भी जवानी में किसी की तरफ झुकाव होना बड़ा ही स्वाभाविक होता है और ज़ीनत भी कोई अपवाद नहीं थी.
“अरे ज़ीनत मैडम, एक शायरी मैं ने लिखी है. ज़रा इस पर गौर तो फरमाइएगा,” ज़ीनत के साथ ही स्कूल में पढ़ाने वाले एक साथी टीचर ने कहा.
“अजी, आप की शायरी क्या सुनना. वह तो हमेशा की तरह अच्छी ही होती है. हां, अगर आप फिर भी अपनी और तारीफ़ सुनना चाहते हैं तो आप सुना सकते है.
“किसी आशिक़ के कलेजे को जलाया होगा,
तब जा कर खुदा ने सूरज को बनाया होगा.”
“अरे वाह, भाई वाह, क्या बात है, बहुत ही उम्दा. लगता है सूरज से कुछ ज्यादा ही प्यार है आप को और तभी तो आप ने तखल्लुस भी सूरज ही रखा है.”
“जी बिलकुल, सही कहा आप ने. इसीलिए मेरा नाम तो आफताब भले है पर मैं चाहता हूं कि अब लोग मुझे सूरज के नाम से ही पुकारें,” आफताब ने कहा.
“हां जी, तो ऐसी बात है. तो, अब मैं आप को सूरज के नाम से ही बुलाऊंगी,” ज़ीनत ने कहा.
दो जवां दिलों के बीच प्यार को पनपने के लिए बहुतकुछ ख़ास की ज़रूरत नहीं होती. बस, थोड़ा सा अपनापन का पानी, ख़ूबसूरती की खाद और फिर प्यार के फल आने लगते हैं.
ज़ीनत को अपने साथ स्कूल में पढ़ाने वाले एक लड़के से प्यार हो गया था. वह लड़का कोई और नहीं, बल्कि आफताब या सूरज ही था.
आफताब एक सीधासादा लड़का था. वह ज़िंदगी से जूझ रहा था. फिर भी हमेशा मुसकराता रहता और अपनी ज़िंदगी के गम को शायरियों में कह कर उड़ा दिया करता. पर माली हालत की बात करें, तो आफताब की माली हालत ज़ीनत से तो बेहतर थी.
इस बार नए साल पर आफताब ने ज़ीनत को एक मोबाइल गिफ्ट कर दिया. ज़ीनत ने बहुत नानुकुर की, पर अफातब ने ऐसी दलील दी कि उसे चुप हो जाना पड़ा.
” देखिए मैडम, यह मैं आप को इसलिए गिफ्ट कर रहा हूं ताकि मैं आप को व्हाट्सऐप पर शायरियां भेज सकूं और आप उस की अच्छाइयां व कमियां मुझे बताएं, जिस से मुझे और बेहतर शायर बनने में मदद मिल सकेगी. क्या अब भी आप यह मोबाइल नहीं लेंगी,” आफताब ने कहा.
“ठीक है, ठीक है, ले लेती हूं. पर जब मैं अपने घर पर रहूंगी तब आप फोन नहीं करेंगे. हां, मैसेज के ज़रिए बात जरूर कर सकते हैं.”
“ठीक है, ज़ीनत जी.”
ज़ीनत और आफताब को एकदूसरे का साथ अच्छा लग रहा था और दोनों ही अपने आगे का जीवन एकदूसरे के साथ गुजारने की बात सोच रहे थे. पर हमेशा ही इंसान का सोचा हुआ कहां होता है?
इतना जीवन गुजरने के बाद एक बात तो ज़ीनत मन ही मन जान चुकी थी कि मामू और मामी उस की शादी जानकर नहीं करना चाहते और वे लोग यही चाहते है कि मैं उन के लिए बस ऐसे ही पैसे कमाती रहूं और वो लोग आराम से मज़े करते रहें. इसलिए, ज़ीनत इस बाबत मामी से खुद ही बात करने की बात सोचने लगी.
एक रात को आफताब ने कुछ शायरियां लिख कर ज़ीनत के मोबाइल पर भेजीं और पूछा कि कोई सुधार के गुंजाइश हो तो बताए. ज़ीनत ने सारी शायरियां पढ़ीं और उन का जवाब भी आफ़ताब को लिख दिया, फिर सो गई. सुबह उठी तो स्कूल के लिए देर हो रही थी, इसलिए जल्दी में ज़ीनत मोबाइल वहीँ अपने बिस्तर पर ही भूल गई.
“चलो फिर मैं आज तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं,” अपनी बाइक की ओर इशारा करता हुआ आफताब बोला.
ज़ीनत पहले तो हिचकिचाई, क्योंकि गली के नुक्कड़ पर ही तो मामू की दुकान है, बहुत मुमकिन है कि घर के लोग आफताब के साथ उसे देख लें. ‘देख लें तो देख लें, मैं कोई चोरी तो नहीं कर रही और फिर आज तो मुझे वैसे भी आफताब के बारे में बात करनी ही है,’ ऐसा सोच कर ज़ीनत ने बाइक पर जाने के लिए हां कर दी और आफताब के साथ बैठ कर चल दी.
कुछ देर बाद घर के सामने पहुंचने वाली थी ज़ीनत. उस ने आफताब से उसे वहीँ उतार देने को कहा और घर तक पैदल ही चली गई.
घर में अंदर का नज़ारा ही अलग था. मामू, उन का लड़का असलम और मामी एकसाथ बैठे हुए थे. सभी ज़ीनत को घूर रहे थे.
“अरे ज़ीनत बिटिया, बहुत थक गई होगी,” मामू ने कहा.
“हां मामू, स्कूल में काम ही इतना होता है. थोड़ीबहुत थकान आना तो लाजिमी ही है,” ज़ीनत ने कहा.
ज़ीनत का इतना कहना था कि मामी बिफर पड़ीं, “हांहां, थकान तो आएगी ही जब देररात तक किसी लड़के से चक्कर चलाया जाएगा.”
तुरंत ही ज़ीनत को याद आया कि आज वह अपना मोबाइल घर में ही भूल गई थी. और इसीलिए मामी ऐसा बोल रही हैं.
“वो… मामी, मैं आप से बात करने ही वाली थी आज,” ज़ीनत हकला गई.
“अरे, तू क्या बात करेगी. तू तो चक्कर चला रही है वह भी किसी गैरज़ात के लड़के के साथ?”
“अरे नहीं मामी, वह तो आफताब…”
“बता कौन है यह सूरज जो तुझ से अपनी मोहब्बत का इज़हार शेरोशायरी से कर रहा है और जिस का जवाब भी तू खूब वाहवाह कर के दे रही है? अरे, मैं कह रही हूं कि हमारी जात में कोई लड़के नहीं रह गए थे क्या जो तू किसी हिंदू लड़के से…”
“नहीं मामी, वह सूरज नहीं, आफताब है और हमारी ही जात का है. मैं खुद ही आज आप से अपनी शादी के बारे में बात करने वाली थी,” ज़ीनत सबकुछ बोलती चली गई.
“अरे, तू दोचार शब्द पढ़ क्या गई है, मुझे ही शब्दों के मतलब समझाने लगी है. और तू समझ क्या रही है, तू किसी भी जात वाले से शादी करने को कहेगी और हम कर देंगे? तुझे ऐसे ही हमारे लिए पैसे कमाने होंगे, भूल जा कि तेरी कभी शादी भी होगी,” मामी का पारा चढ़ चुका था.
“शादी तो मैं सूरज से ही करूंगी. और आप सब को बताना चाहूंगी कि मैं सूरज के बच्चे की मां बनने वाली हूं,” ज़ीनत ने यह बात सिर्फ इसलिए कह दी थी कि ऐसा सुन कर मामू और मामी के तेवर नरम हो जाएं. उस ने अपनी बात जारी रखते जुए कहा, “आप लोग नहीं मानोगे तो जबरदस्ती ही सही… देखती हूं कि मुझे कौन रोकता है.” ज़ीनत भी अड़ गई थी.
“मैं रोकूंगी तुझे, नमकहराम, हमारी नाक कटवाती है. महल्ले में हमारा जीना मुश्किल करना चाहती है,” मामी चिल्ला रही थीं.
ज़ीनत ने सोचा कि जब बात इतनी बढ़ ही चुकी है तो आफताब को भी फोन कर के यहीं बुला लेती हूं और इस गरज से उस ने मामी के हाथ से अपने मोबाइल को छीन कर आफताब को फोन कर दिया.
“हां, तुम मेरे घर आ जाओ. सब लोग घर पर ही हैं. आमनेसामने बैठ कर बात हो जाएगी.”
आफताब अभी ज्यादा दूर नहीं गया था. वह फ़ौरन ही लौट पड़ा.
मामू ने ज़ीनत के विद्रोही सुर देखे, तो मामी को शांत कराने लगे. “ठीक है ज़ीनत, तुम्हारे फैसले को हमारी भी हां है. जैसा चाहो वैसा करो,” मामू ने कहा.
पर असलम को काटो तो खून नहीं, उसे यह बात कतई मंज़ूर नहीं हो पा रही थी कि किसी लड़के को घर बुला कर ज़ीनत खुद ही अपनी शादी की बात करे.
कुछ देर बाद ही आफताब वहां आ गया. अभी उस ने दरवाज़े के अंदर पहला कदम रखा ही था कि असलम उसे देख कर भड़क गया.
असलम ने तुरंत ही आफताब की शर्ट का कौलर पकड़ लिया और उस को ज़मीन पर गिरा कर लातघूसे चलाने लगा.
आफताब को अचानक इस हमले की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह असलम का विरोध नहीं कर सका. अब तो मौक़ा देख कर ज़ीनत के मामू ने भी असलम को मारना शुरू कर दिया. वे दोनों आफताब को मारते हुए बाहर ले आए. ज़ीनत आफताब को बचाने के लिए दौड़ी तो मामी ने उसे पकड़ लिया.
बाहर महल्ले के लोग जमा होने लगे थे.
“साले, दिनदहाड़े चोरी करने घुसता है…स्साले. आज तुझे नहीं छोड़ेंगे,” असलम चीख रहा था.
एक चोर को पिटता देख कर जमा हुई भीड़ की हथेलियों में भी खुजली होने लगी थी बिना जाने कि सच क्या है. भीड़ ने भी बेतहाशा आफताब को मारना शुरू कर दिया.
ज़ीनत ने बड़ी कोशिशों से अपनेआप को मामी की गिरफ्त से आज़ाद किया और आफताब को बचाने दौड़ी. भीड़ अब भी आफताब को मारे जा रही थी. ज़ीनत आफताब तक पहुच ही नहीं पा रही थी. वह लगातार चीख रही थी, “मत मारो उसे. वह चोर नहीं हैं…” पर भीड़ तो खुद ही वकील होती है और खुद ही जज. इतने में ज़ीनत पिटते हुए आफताब से उसे बचाने की गरज से उस से जा चिपकी. पर उन्मादी भीड़ को वह दिखाई तक न दी और भीड़ लाठीडंडे बरसाती रही.
कुछ ही देर बाद ज़ीनत और आफताब के सिरों से खून की धारा निकल पड़ी थी और उन दोनों के शव एकदूसरे से लिपटे पड़े थे.
भीड़ ने अपनी ताकत दिखाते हुए न्याय कर दिया था.