Short Story : कहते हैं- हरि अनंत, हरि कथा अनंता. अगर आपके पास कुबुद्धि नहीं, सुबुद्धि है तो महंगाई के संदर्भ में शोध ग्रंथ तैयार करोगे तो आपका हृदय आनंद से विभोर हो उठेगा. जैसा कबीर दास ने बताया है अनहृदकारी. रोहरानंद से किसी खास मित्र ने कहा- ‘भैय्या ! महंगाई जी के संदर्भ में सारगर्भित बात, अगर अल्प शब्दों में कहना हो तो आप क्या कहेंगे.’
रोहरा नंद ने मंद मुस्कुराते हुए कहा, “भाई! महंगाई तो मेरा परम सखा है, मैं तो स्वपन में भी उसको भजता रहता हूं. सच कहूं तो वह अगर कृष्ण है तो मैं गरीब सुदामा हूं .”
उसने व्यंग्य से कहा-“द्वापर में हुए थे भगवान कृष्ण, तुम महंगाई की समानता श्री कृष्ण से कर रहे हो. तुम बुरी तरह फंस सकते हो….”
रोहरानंद मुस्कुराया, – “भाई ! कृष्ण को आज आप श्री कृष्ण के विशेषण के साथ आचार – व्यवहार में ला रहे हो, आज उन्हें भगवान कह रहे हो… द्वापर में उन्हें कौन जानता था कि वे ईश्वर है…”
” लगता है आपका ज्ञान अधूरा है…” उन्होंने कहा
“ तो कृपया मुझे ज्ञान दीजिए.” रोहरनंद ने विनम्रता पूर्वक कहा.
” विदुर, भीष्म पितामह आदि महाभारत काल के महारथी उन्हें ईश्वर के रूप में ही समकालीन समय में सम्मान देते थे. बॉलीवुड की कोई भी सिनेमा अथवा दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक में हमने यही देखा है.”
“इतिहास से, धर्मग्रंथों से छेड़छाड़ हमारे यहां साधारण बात है. तत्कालीन समय में चंद लोगों को श्री कृष्ण के अवतार की बात जानकारी में थी. वैसे ही आज महंगाई के संदर्भ में बहुत कम लोगों को ज्ञात है.” रोहरानंद ने बात का साधारणीकरण किया. मित्र गंभीर हो गए .उसे लगा कहीं मैं गलत तो नहीं. ऐसा तो नहीं कि मैं गलत राह पर होऊं.
“आखिर आज महंगाई का चहूं और बोल बाला है तो उसमें कुछ तो खास बात, देवत्व होगा. या हो सकता है, मैं बुराई बोलकर क्यों नरक का भागी बनूं.”रोहरानंद ने पुनः हथौड़ी चलाई-” याद करो भाई ! महाभारत में अगर कर्ण श्री कृष्ण का सम्मान करता था तो दुर्योधन भला बुरा कहता था. भीष्म पितामह श्री कृष्ण को आसन देते थे तो उसके मामा कंस ने उन्हें कितना कष्ट पहुंचाने और हत्या का षड्यंत्र रचा था. कुछ ऐसी ही हमारी महंगाई जी के साथ आज हो रहा है बहुत चुनिंदा लोग ही महंगाई के महात्म्य को जान पाए हैं.”
मित्र गंभीर हो गया.उसे लगा,वह कहीं गलत तो नहीं. कहीं चूक तो नहीं हो रही .अगर भूल से वह महंगाई के दुष्प्रचार में लगा रहा तो इतिहास में वह खलनायक न बन जाए. और फिर महान आत्माओं की खिलाफत का दंड कई जन्म तक भुगतना पड़ता है .अश्वत्थामा की कहानी उसे स्मरण हो आई एक चुक और आज भी अश्वत्थामा दर्द भरी जिंदगी जी रहा है . वह मन ही मन भयभीत हो उठा.
उसके आगे महंगाई का देवत्व! विराट आकार में आकर खड़ा हो गया. उसे प्रतीत हुआ, जिस तरह अर्जुन महाभारत में युद्ध के दरम्यान किंकर्तव्य विमूढ़ हो गए थे और गुरुजन, भाइयों, मित्रों को देखकर हथियार डाल दिए थे. महंगाई के त्रासदी के सामने संपूर्ण भारत वासियों ने हथियार डाल दिए हैं. त्राहि-त्राहि मची हुई है .जिस तरह महाभारत में दुर्योधन ने भरी सभा में द्रोपदी के चीर हरण का काम किया था. हमारी संसद में भी महंगाई की चीर- हरण का दुष्प्रयास विपक्ष ने करना चाहा. मगर जिसके साथ दैवीय शक्ति होती है, भला उसका आज तक कोई बिगाड़ हुआ है ? आखिर संसद में महंगाई का सम्मान बढ़ा कि नहीं .सरकार गंभीर खतरे में फंस गई थी. सत्ता का सिंहासन डोलायमान था.डोल रहा था. सारा देश शंकित था.
सरकार अब गयी कि तब गयी. मत विभाजन पर सरकार का जाना तय माना जाने लगा था. सभी चिंतित थे. मगर अचानक महंगाई का पक्ष किस तरह बनने लगा… विपक्ष का, विपक्ष का सारा षड्यंत्र धरा का धरा रह गया . सरकार का बाल भी बांका नहीं हुआ. जय हो महंगाई की… प्रभु मेरी रक्षा करना… अपनी शरण धरौ प्रभु…. वह बुड़बुडा कर स्मरण करने लगा .
रोहरानंद मित्र के चेहरे के हाव-भाव देखता खड़ा था. वह समझ रहा था… उसकी बातों का गहरा असर हुआ है… अन्यथा यह मानुष इतनी जल्दी हार मानने वालों में नहीं…
मित्र सोच रहा है – सचमुच मैं पतित पापी हूं…मैंने महंगाई के संदर्भ में धृष्टता पूर्वक सोचा ही क्यों .मेरा पूर्व जन्म इसका कारक होगा. अच्छा है मुझे भाई रोहरानंद मिल गए. मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिये.’ वह शून्य में ताकता रहा, सोचता रहा- ‘जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ‘कर्मन्यावाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना’ के शब्दघोष के साथ उन मित्रों, गुरु, भाइयों के संहार का ज्ञान दिया था. मेरे समक्ष भी महंगाई विराट रूप धारण करके खड़ी है. महंगाई कह रही है- ‘वत्स ! मेरी शरण में आओ, देखो मुझे, मुझमें समाहित हो जाओगे एक दिन. तुम मुझमें ही से तो अव तारित हुए हो… एक दिन मुझ में ही तिरोहित हो जाओगे. यह दुनिया, दुनिया का कण कण जो बिकता है मुझसे ही नि:सृत हुआ है और मुझमे ही समा जाएगा. मैं श्री महंगाई हूं . मैं कलयुग का अवतार हूं. मुझसे क्षुद्र कुछ नहीं,मुझसे विराट कुछ नहीं. जो मेरी छाया से जाता है, नष्ट हो जाता है, जो छाया में प्रविष्ट होता है, जीवन का सुख, संपदा प्राप्त करता है.”
वह अर्जुन की भांति घुटनों के बल बैठ गया. उसकी आंखों के आगे ईश्वरीय रूप में महंगाई खड़ी है .रोहरानंद अचंभित है .मित्र को क्या हो रहा है… कहीं उसने ज्यादा डोज तो नहीं दे दिया, जिसके कारण हेलुसीनेशन सन्निपात (मतिभ्रम )में चला गया हो…. रोहरानंद घबरा गया . कहीं मित्र को कुछ हो गया तो? उसने तत्काल मित्र को झकझोरा- मित्र ने उसकी ओर देखा और कहा- “भाई, तुमने मेरा जीवन धन्य कर दिया. देखों ! मेरे समक्ष महंगाई ईश्वरीय रूप में ज्ञान प्रसारित कर रही है.”
रोहरनंद आंखें फाड़कर देखने का प्रयत्न करने लगा. ऊपर नीचे, दाये बांये कहीं कुछ भी नहीं है. उसे लगा कहीं मुन्ना भाई लगे रहो के संजय दत्त की भांति इसे भी तो उस बीमारी ने नहीं जकड़ लिया . इसे गांधी की तरह महंगाई ईश्वरीय रूप में दृष्टिगोचर हो रही है. रोहरानंद ने आंखें फाड़ कर सखा की ओर देखा, ‘मित्र तुम ठीक कह रहे हो .’ उसे स्वीकार करना पड़ा . अन्यथा उसका अज्ञानी मित्र उस पर हंसता. मित्र ने महंगाई का श्री महंगाई के रूप में दर्शन प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त कर लिया और वह महरूम रह जाए. यह उसे स्वीकार नहीं था. दोनों गले में बाहें डाले- हंसते, गाते, रोते चलते जाते .सभी समवेत गा रहे हैं -तंत्रीनाद कवित्त रस सरस-राग,रति रंग अनबूडे तिरे जे बूडे सब संग .
थोड़ी दूर पर एक माॅल पर महंगाई बैठा आनंद उठा रहा है. अपना भक्ति गीत मित्र रोहरानंद व अन्य लोगों के मुख से सुन उसे प्रसन्नता हुई. वह भाव- विभोर हो उठा. महंगाई माॅल से उतर कर उनके पास आया, उसकी आंखें भीग गई थी. गला भर आया था . खुशी के मारे कंठ से आवाज नहीं निकल रही .रोहरानंद ने मित्र को पहचान लिया. गायक दल थम गया . रोहरानंद ने कहा- “मित्र! अन्यथा न लेना, तुम्हारी स्तुति और भक्ति में बड़ा आनंद है .हम सब मानों दुनिया की सारी खुशियों से ओत – प्रोत हैं. तुम्हारी भक्ति हमारे जीवन का आधार बन गई है .हमें मना मत करना. हम पर दया बनाए रखना. अन्यथा हम इस संसार मैं जीव की भांति भटकते रहेंगे. हमें न जुगती मिलेगी न मुक्ति .” महंगाई श्री कृष्ण की भांति मुस्कुराया, – “ तथास्तु ” कह कर अंतर्ध्यान हो गया.