Short Story : ‘‘अरे बाबा, आजकल फसलों पर एक बड़ी मुसीबत आई है. सुना है कि 3-4 किलोमीटर लंबा एक टिड्डी दल किसी भी दिशा से आता है और लहलहाती फसलों पर बैठ कर कुछ ही समय में उन्हें चट कर जाता है. इन टिड्डियों के चलते किसानों में बड़ा डर फैला हुआ है. आजकल किसान खेतों में दिनरात पहरा दे रहे हैं,’’ केशव ने अपने बाबा त्रिकाली डोम से कहा.

‘‘हां... हो सकता है... पर इस खतरे से हमें न कल डर था और न आज ही कोई डर है,’’ केशव के बाबा आसमान में देखते हुए बोले.

‘‘हम तो भूमिविहीन ही पैदा हुए. और हमारे डोम समाज का काम चिता को सजाने से ले कर उसे पूरी तरह जलाने का था. इसलिए जमीन न होने के चलते फसल कभी उगाई नहीं और आज भी हमारे पास जमीन नहीं है, इसलिए टिड्डी दल का खतरा हो या न हो, हमें कोई असर नहीं पड़ता,’’ और फिर केशव का बाबा एक गाना गाने लगा था:

‘‘तिसना छूटी... माया छूटी,

छूटी माटी, माटी रे...

माटी का तन मिला माटी में...

रह गई, माटी माटी... रे...’’

किसी जमाने में इस गांव में लाशें जलाने का काम करने वालों को डोमराजा कहा जाता था और वे समाज में अनदेखे रहते थे, पर धीरेधीरे जैसे इस गांव का विकास हुआ, वैसे ही इन लोगों की जिंदगी में भी सुधार हुआ. डोम लोगों की अगली पीढ़ी अब अपना पुश्तैनी काम न कर के पढ़ाई करना चाहती थी.

त्रिकाली डोम का पोता केशव भी शहर से पढ़ाईलिखाई कर के गांव में वापस आ गया था और उस ने गांव में ही कपड़े का कारोबार शुरू कर दिया था. केशव के अच्छे बरताव और मेहनत के चलते उस का काम भी चमक रहा था.

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