बिहार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी के हवाले से छपी इस खबर में बिहार के तकरीबन 8,300 गांव (पंचायतों) के विकास व उन के बढि़या रखरखाव के लिए एक रूपरेखा पेश की गई, जिस में पूरे राज्य की हर पंचायत में पार्क बनाने, खेल के लिए मैदान बनाने, सिक्योरिटी के नजरिए से गांवगांव में सीसीटीवी कैमरे लगाने, छठ घाट बनाने व उन्हें निखारने और सामुदायिक शौचालय बनाने जैसी और भी कई योजनाओं को लागू करने की बात की गई.

पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने यह भी बताया कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के तहत केंद्र सरकार ने बकाया 1,254 करोड़ रुपए पंचायती राज विभाग को भेज दिए हैं, जबकि 3,763 करोड़ रुपए की रकम पहले ही भेजी जा चुकी है.

यकीनन यह खबर उन लोगों पर जरूर असर डालेगी, जिन्होंने अब तक बिहार के गांवों के दर्शन नहीं किए हैं, पर वे लोग जो बिहार से जुड़े हैं और अकसर बिहार के गांवदेहात के इलाकों में आतेजाते रहते हैं, उन के लिए यह खबर खास जोश की बात नहीं हो सकती, बजाय इस के कि यह खबर गांवदेहात के इलाकों की तरक्की और उन्हें निखारने की कम और लूटखसोट व बंदरबांट के लिए गढ़ी जाने वाली योजना संबंधी खबर ज्यादा लगती है.

जिन गांवों को ‘वीआईपी गांव’ बनाने की बात कही जा रही है, उन की आज के समय में क्या हालत है, इस का जायजा लेना जरूरी है. गांव की तो छोडि़ए, आप बिहार के शहरों की यहां तक कि राजधानी पटना की बात करें तो यहां अनेक इलाके ऐसे हैं, जिधर से आप का मुंह पर रूमाल रखे या नाक बंद किए बिना गुजर पाना भी मुमकिन नहीं है.

ये भी पढ़ें- लोक जनशक्ति पार्टी: बिहार में लगातार गिरती साख

अभी पिछले साल की ही तो बात है, जब पटना की जल निकासी व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई थी. लोगों के घरों में पानी घुस गया था. यहां तक कि राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी घुटनेघुटने पानी में सपरिवार मदद के लिए सड़क पर खड़े नजर आए थे.

आज बिहार के ज्यादातर गांव बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. शायद राज्य के किसी भी गांव में जल निकासी का कोई ठोस इंतजाम नहीं है. हां, अनेक गांवों में नालियां व नाले बने जरूर देखे जा सकते हैं, पर आज या तो वे टूटेफूटे पड़े हैं या उन में कूड़ा पटा पड़ा है या जिस मकसद से ये नालेनालियां बनाए गए थे, वह कतई पूरा नहीं हो रहा.

कूड़ा निबटान की कोई योजना पूरे राज्य के किसी गांव में नहीं है. नतीजतन, तकरीबन हर घर के सामने कूड़े का ढेर लगा है, जो बदबू फैलाता है. इसी गंदगी के चलते मक्खीमच्छरों की भरमार है.

आज भी गांव के तमाम लोग सड़कों के किनारे खुले में शौच करते हैं, जिस के चलते राहगीरों का गुजरना तो मुश्किल हो ही जाता है, बदबू के साथ बीमारी फैलने का भी डर बना रहता है.

पिछले साल बारिश के दिनों में दरभंगा जिले व आसपास के कई इलाकों में बाढ़ व बारिश का जो पानी गांवों में घुस गया था, वह आज तक कई ठिकानों पर रुका हुआ है. इस से वहां बदबू व मच्छरमक्खियों का तो साम्राज्य है ही, साथ ही ऐसी जगहों पर आम के पेड़ों समेत और भी पेड़ लगातार पानी लगे रहने के चलते खराब हो चुके हैं.

ये भी पढें- उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव: विधानसभा चुनाव का

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पिछले शासनकाल में ‘हर घर नलजल योजना’ की शुरुआत की थी. पर यह योजना जनहितकारी योजना तो कम भ्रष्टाचार में डूबा हुआ एक तमाशा जरूर साबित हुई.

इस के तहत गांवगांव में पानी की प्लास्टिक की वे टंकियां रखी गई हैं, जो अमूमन लोग अपने मकानों पर जल भंडारण के लिए रखवाते हैं. इस के अलावा प्लास्टिक (फाइबर) के पाइप बिछाए गए, जो लगने के साथसाथ खराब होते जा रहे थे.

इन टंकियों में मोटर द्वारा जमीनी जल भरा जाता था और उसी की सप्लाई की जाती थी. आज यह योजना तकरीबन नाकाम हो चुकी है, क्योंकि या तो प्लास्टिक के पाइप टूटफूट गए हैं या जमीन के नीचे से पानी खींचने वाली मोटरें जल गई हैं.

ऐसा जान पड़ता है कि इस तरह की योजनाएं जनता की सुविधा के लिए नहीं, बल्कि जनता के टैक्स के पैसों की लूटखसोट के लिए ही बनाई जाती हैं, इसीलिए शक पैदा हो रहा है कि राज्य के गांवों को चमकाने व उन्हें ‘वीआईपी’ बनाने की जो नई कवायद एक बार फिर शुरू होने जा रही है, वह हकीकत में धरातल पर दिखाई भी देगी या नेताओं, पंचायत प्रतिनिधियों व सरकारी अफसरों के बीच लूटखसोट का साधन बन कर रह जाएगी?

सीसीटीवी कैमरे व पार्क बनाने से ज्यादा जरूरी है कि सही तरीके से चलने वाली नालेनालियां बनाई जाएं और जो टूटेफूटे हैं, उन्हें ठीक किया जाए. हर गांव में कूड़ा निबटान का बढि़या इंतजाम किया जाए.

‘हर घर नलजल योजना’ की दोबारा समीक्षा की जाए और इन के पाइप बदल कर लोहे के पाइप बिछाए जाएं व जलशोधन के बाद जल की सप्लाई की जाए. इस के लिए प्लास्टिक की टंकियां पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि बड़ी सीमेंट की टंकियां बनवाई जाएं.

इन सब से भी ज्यादा जरूरी है कि इन सभी योजनाओं को भ्रष्टाचार से मुक्त रखा जाए और जो भी सरकारी अफसर, जनप्रतिनिधि या ठेकेदार इन जनहितकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार करते दिखें, उन्हें फौरन जेल भेजा जाए. इस के साथसाथ गांव के लोगों को भी जागरूक किया जाए और उन्हें भी गंदगी व साफसफाई के बीच के फर्क को समझाने के लिए जनसंपर्क मुहिम चलाई जाए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...