मोहित मडप का पुलिस इंचार्ज था. ललिता हाउस उस की ही मिल्कियत थी, जो कई साल पहले उस की पत्नी की मृत्यु के बाद उसे विरासत में मिली थी. उस की पत्नी ने मरने से कुछ साल पहले 50 करोड़ में ललिता हाउस का बीमा करवाया था, जिस का प्रीमियम अब मोहित भर रहा था. लेकिन आमदनी सीमित होने की वजह से उस के लिए प्रीमियम की अदायगी जारी रखना मुश्किल हो रहा था.
वैसे भी 60 साल पुराना ललिता हाउस उस की जरूरत से कहीं ज्यादा बड़ा था. लंबे समय से देखभाल न होने की वजह से इमारत की हालत भी खराब हो गई थी. चंद महीने पहले उस ने ललिता हाउस को बेचने की कोशिश की तो पता चला कोई भी इस इमारत के 20 करोड़ से ज्यादा देने को तैयार नहीं था.
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फिर 6 सप्ताह पहले जब उस ने अखबार में यह खबर पढ़ी कि बीमा कंपनी बीमाशुदा पुरानी इमारतों की मौजूदा हालत का पुनर्निरीक्षण कर के उन की बीमा की रकम का दोबारा निर्धारण करेगी तो मोहित चौंका. उसे विश्वास था कि उस के मकान की हालत देखने के बाद बीमा कंपनी उस की पौलिसी खत्म कर देगी और इस तरह उसे बड़ी रकम से वंचित होना पड़ेगा. यह सब सोच कर उस ने ललिता हाउस को आग लगाने का फैसला कर लिया और इस के लिए 2 करोड़ की रकम के बदले मनमोहन की सेवाएं ले लीं.
मनमोहन या उस के साथियों का मडप से कोई संबंध नहीं था. इस तरह उन पर किसी किस्म का शक भी नहीं किया जा सकता था. मोहित को विश्वास था कि इमारत जलने के बाद ज्यादा से ज्यादा 2 सप्ताह में बीमा कंपनी अपनी जांच पूरी कर के उसे 50 करोड़ की अदायगी कर देगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर गोवा या कहीं और चला जाएगा.
मकान को आग लगाने के लिए मोहित ने बड़ी उम्दा प्लानिंग की थी लेकिन पहली ही स्टेज पर गड़बड़ हो गई थी. अब वह बारबार पीछे मुड़ कर देखते हुए विक्रम की कामयाबी की दुआएं मांग रहा था.
कार निगाहों से ओझल हो चुकी थी. विक्रम ने हाथ से चेहरा पोंछते हुए मनमोहन को 2-4 गालियां दीं और सड़क पार कर के ललिता हाउस के लौन में दाखिल हो गया. रात के 3 बजने वाले थे, हर तरफ गहरा सन्नाटा और अंधेरा था.
अचानक झाडि़यों में से किसी पक्षी के फड़फड़ाने की आवाज से वह बुरी तरह उछल पड़ा. उस के मुंह से चीख निकलतेनिकलते रह गई. वह अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार फिर मनमोहन की शान में कसीदे पढ़ने लगा.
ललिता हाउस में दाखिल होते ही वह होशियार हो गया. बिना नीचे रुके वह ऊपर वाली मंजिल पर चला गया, जहां पिछली बार उस ने ज्वलनशील पदार्थ नेफ्थलीन के 2 डिब्बे रखे थे.
दोनों डिब्बे उठा कर वह नीचे ले आया, फिर सारी खिड़कियों, दरवाजों के परदे उतार कर उन्हें चौड़ी गैलरी के आखिरी सिरे पर स्थित लाउंज में ढेर कर दिया. वहां का फर्नीचर बाबा आदम के जमाने का था. उस ने फर्नीचर पर चढ़े कपड़े के सारे कवर उतार कर उन के ऊपर डाल दिए.
उस ने मेजें और कुर्सियां भी कपड़ों के ढेर के पास जमा कर दीं. फटे पुराने कालीन भी उस जगह पहुंचा दिए. फिर नेफ्थलीन का एक डिब्बा खोल कर कपड़ों के उस ढेर और फर्नीचर पर ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने लगा.
खिड़कियों और दरवाजों पर भी उस ने ज्वलनशील पदार्थ छिड़क दिया. इस भागदौड़ में उस का जिस्म पसीने से भीग गया था. नेफ्थलीन की गंध दिमाग में चढ़ी जा रही थी. अपने अब तक के काम का निरीक्षण कर के उस ने निश्चिंत होने वाले अंदाज में सिर हिलाया.
इधरउधर निगाह दौड़ाने पर उसे लगभग 4 फीट लंबा बांस का एक टुकड़ा मिल गया. उस ने ढेर पर से एक परदा उठा कर फाड़ा और कपड़े का एक टुकड़ा बांस के सिरे पर लपेटने लगा. फिर उसे नेफ्थलीन में कुछ इस तरह गीला किया कि तरल पदार्थ नीचे टपकने लगा.
जेब से माचिस निकालते हुए वह गहरी नजरों से गैलरी का निरीक्षण करने लगा. गैलरी लगभग 35 फीट लंबी थी. वह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इस ढेर को आग लगाने के बाद कितनी देर में गैलरी के सिरे वाली खिड़की तक पहुंच पाएगा. चांस कम है, यह सोचते हुए उस ने लाउंज की एक खिड़की खोल दी और माचिस जला कर बांस के सिरे पर लिपटे ज्वलनशील पदार्थ में डूबे कपड़े को दिखा दी.
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मशाल भड़क उठी. वह कुछ क्षण तक अपने और खिड़की के बीच की दूरी का अंदाजा लगाता रहा. फिर मशाल को पूरी ताकत के साथ कपड़ों के ढेर की ओर उछाल दिया. मशाल ठीक कपड़ों के ढेर के ऊपर गिरी. एक क्षण को कुछ भी नहीं हुआ. विक्रम जलती हुई मशाल को देखते हुए खिड़की से छलांग लगाने को तैयार खड़ा था. उसे हैरत थी कि फर्नीचर और कपड़ों के ढेर पर फैले ज्वलनशील पदार्थ ने आग क्यों नहीं पकड़ी.
लेकिन फिर अचानक भक की आवाज हुई और कपड़ों का ढेर आतिशबाजी की तरह उड़ गया. शोलों में लिपटे हुए भारी परदे चारों ओर उड़ते हुए नजर आ रहे थे. एक जलता हुआ परदा उस के सिर के ऊपर से होता हुआ खिड़की के बाहर चला गया. एक परदे ने विक्रम को अपनी लपेट में लेने की कोशिश की.
विक्रम अपने आप को बचाने के लिए फर्श पर गिर गया. बचाव के बावजूद परदे का एक कोना उस के सिर पर लिपट गया था. उस ने हाथ मार कर परदा एक तरफ झटक दिया. उस के बाल जल गए थे, उस ने उठना चाहा लेकिन उस का पैर रपट गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया.
उस का सिर जोरों से फर्श से टकराया तो उसे अपनी आंखों के सामने नीलीपीली चिंगारियां सी निकलती दिखाई दीं. और फिर उस का दिमाग अंधेरे में डूबता चला गया.
होश में आते ही वह बुरी तरह बदहवास हो गया, उस के सिर के नीचे कालीन सुलग रहा था. सिर के आधे से ज्यादा बाल जल चुके थे और 1-2 जगह से खाल भी जल गई थी. वह बुरी तरह सिर पटकने लगा. फिर खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ, लेकिन दूसरे ही क्षण उसे फिर गिरना पड़ा. अगर उसे एक पल की भी देर हो जाती तो कुरसी से टूटी हवा में जलती हुई लकड़ी उस के सिर पर लगती.
हाल में धुंआ भर चुका था. हर तरफ आग ही आग नजर आ रही थी. वह कालीन पर रेंगता हुआ पास के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा. उस के हाथों की खाल भी बुरी तरह जल चुकी थी. चेहरे पर भी 1-2 जगह जख्म आए थे. उसे लग रहा था, जैसे वह यहां से नहीं निकल पाएगा.
दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने जोर से टक्कर मारी, दरवाजा खुल गया और वह कलाबाजी खाता हुआ बाहर लौन में आ गिरा. ठीक उसी क्षण एक जोरदार धमाका हुआ और ललिता हाउस की छत का एक सिरा नीचे गिर गया. विक्रम ने बदहवासी में अपनी जगह से छलांग लगा दी और दूर फूलों की क्यारी में जा कर गिरा.
विक्रम फूलों की क्यारी में पड़ा गहरीगहरी सांस ले रहा था. पीठ पर जलन महसूस हो रही थी. उस ने गरदन घुमा कर पीछे देखा और दूसरे ही क्षण उछल पड़ा. उस के कोट में आग लगी हुई थी, जिस से उस की त्वचा भी जल गई थी. उस ने जल्दी से कोट उतार दिया और पीठ को उस जगह सहलाने लगा, जहां तेज जलन महसूस हो रही थी.