सौजन्य- सत्यकथा
उस ने खुद क्राइम ब्रांच के औफिस जा कर यह बात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों से बताई. लेकिन पुलिस ने उस की गवाही मानने के बजाय उसे चोरी के आरोप में जेल भेज दिया और क्राइम ब्रांच पुलिस ने भी वही रिपोर्ट दी, जो स्थानीय थाना पुलिस ने दी थी. क्राइम ब्रांच का कहना था कि सिस्टर अभया की मौत कुएं में डूबने से हुई थी यानी उन्होंने आत्महत्या की थी.
पर कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं था. यही वजह थी कि जेमोन पुथेनपुरक्कल जैसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस जांच के खिलाफ न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस मामले को ले कर विधानसभा में भी काफी हंगामा हुआ.
अंतत: जब यह मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. यह सन 1993 की बात है. जांच का आदेश मिलते ही सीबीआई की टीम सिस्टर अभया की मौत के रहस्य का पता लगाने में लग गई.
सीबीआई ने भी अपनी जांच के बाद वही कहा, जो पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अपनी रिपोर्ट में कहा था. उस का कहना था कि उसे इस तरह का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला कि वह इसे हत्या का मामला माने. सीबीआई की इस टीम का ध्यान न तो उस नन की बात पर गया था, न चोर अदक्का राजा की बात पर.
सीबीआई ने यह रिपोर्ट सन 1996 में दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को खारिज कर फिर से जांच के आदेश दिए. इस के बाद सीबीआई की दूसरी टीम इस मामले की जांच में लगाई गई.
दूसरी टीम ने भी जांच कर के सन 1999 में रिपोर्ट दी कि उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा है कि सिस्टर अभया की हत्या हुई या उन्होंने आत्महत्या की है. पर इस टीम ने इस मामले को संदिग्ध जरूर माना था.
इस टीम का कहना था कि मामला है तो संदिग्ध, पर सबूत के अभाव में वह निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकती. हाईकोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगा कर फिर से ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए.
इस के बाद सीबीआई की तीसरी टीम जांच में लगाई गई. इस तीसरी टीम ने जांच करने के बाद कोर्ट को बताया कि जांच में यह तो पता चल गया है कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है. लेकिन उन के पास ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि वह किसी को दोषी मान कर जांच आगे बढ़ाए. उस का कहना था कि इस मामले में अब तक सारे सबूत मिटाए जा चुके हैं.
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कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया और एक बार फिर से डांट कर ईमानदारी और ढंग से जांच करने के आदेश दिए.
इस बार सीबीआई ने किसी भी तरह का सबूत या सुराग देने वाले को 3 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा भी की थी. फिर भी सीबीआई के हाथ ऐसा कोई सबूत या सुराग नहीं लगा कि वह कोर्ट में यह साबित कर सके कि यह हत्या का मामला है.
इसी बीच सीबीआई के एक अफसर वर्गीज पी. थौमस, जो इस मामले की जांच कर रहे थे और काफी तेजतर्रार अफसर माने जाते थे, ने एक दिन अचानक उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस बुलाई.
19 जनवरी, 1994 को जब यह रिपोर्ट आई थी, तब उन्होंने कहा था कि वह समय से पहले अपनी नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस मामले में ईमानदारी से जांच करने की इजाजत नहीं दी जा रही है.
केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के सुपरिटेंडेंट वी. त्यागराजन उन पर दबाव डाल रहे हैं कि वह सिस्टर अभया के मामले में अपनी जांच रिपोर्ट को सुसाइड में तब्दील कर के कोर्ट में सुसाइड ही दिखाएं.
यह खुलासा होने के बाद तो हंगामा मच गया. सीबीआई पर काफी दबाव पड़ा तो वी. त्यागराजन को कोच्चि से हटा दिया गया. इस के बाद कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की चौथी टीम को जांच पर लगाया गया. यह टीम केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई औफिस के अफसरों की थी.
सीबीआई की टीम ने इस केस में फादर कोट्टूर, फादर जोस पुथुरुक्कयिल और नन सिस्टर सेफी को संदिग्ध माना. साथ ही उन लोगों का नारको टेस्ट कराने का फैसला किया. जब इस बात की जानकारी कौन्वेंट को हुई तो उस ने हौस्टल की रसोइया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करा कर नारको टेस्ट रोकवाने का भी प्रयास किया. पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोक लगाने से मना कर दिया.
इस के बाद बेंगलुरु में इन तीनों का नारको टेस्ट कराया गया. तीनों का नारको टेस्ट डा. मालिनी ने किया. नारको टेस्ट के दौरान इन तीनों का जो इकबालिया बयान था, वह एक सीडी के तौर पर सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसे सीबीआई ने कोर्ट में पेश किया.
लेकिन बाद में पता चला कि सीबीआई ने तीनों के नारको टेस्ट की जो सीडी अदालत में पेश की थी, उस के साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस का मतलब यह था कि फादर और नन सेफी ने नारको टेस्ट के दौरान जो कुछ भी कहा था, छेड़छाड़ कर के उसे बदल दिया गया था. इस के बाद कोर्ट ने सीधे डा. मालिनी से संपर्क कर उन से कहा कि इस मामले की जो ओरिजनल रिकौर्डिंग है, वह उन्हें भेजें.
पर डा. मालिनी ने अपने बर्थ सार्टिफिकेट को ले कर कुछ गलत काम किया था, इसलिए उसी समय उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. इस के बाद यह मामला यहीं लटक गया. अब वह सीडी सही है या गलत, कोई जानकारी देने वाला नहीं था.
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लेकिन एक दिन अचानक वही सीडी केरल के एक लोकल चैनल पर चल गई. वह सीडी चैनल को कहां से और कैसे मिली, यह तो पता नहीं चल सका. जबकि कोर्ट ने कहा कि यह सीडी सीलबंद लिफाफे में हमें दो.
उस सीडी में दोनों फादर और नन अपनी पूरी कहानी सुना रहे थे, जो नारको टेस्ट के दौरान उन्होंने बताई थी. इस के बाद सीबीआई की इस चौथी टीम का ध्यान चोर अदक्का राजा पर गया.
अगले भाग में पढ़ें- सिस्टर अभया जिंदा थीं या मर चुकी थीं