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सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

उन दिनों भारी बारिश की वजह से कच्चे घरों में अकसर बिजली से जुड़ी समस्या पैदा हो ही जाया करती थी. साजिता के साथसाथ रहमान का भी उन दिनों कच्चा ही घर था.

दरअसल, रहमान और साजिता एक लंबे समय से एकदूसरे से नजर से नजर मिलाया करते थे, लेकिन दोनों की एकदूसरे के साथ बातचीत करने की हिम्मत पैदा नहीं हो रही थी.

बिजली ठीक करने के बाद जब रहमान, साजिता के घर से वापस जाने लगा तो उस ने अपना फोन नंबर साजिता के पिता को यह कहते हुए दे दिया कि अगर कुछ दिक्कत महसूस हो तो फोन कर के उसे बुला लें. उस समय तो नहीं, लेकिन कुछ दिनों बाद साजिता ने हिम्मत कर के रहमान को फोन कर ही लिया.

पहली बार की बातचीत तो सिर्फ हायहैलो में ही निकल गई, लेकिन उस के बाद जब कभी साजिता को मौका मिलता तो वह रहमान के साथ फोन पर बातें किया करती.

धीरेधीरे समय के साथसाथ दोनों के बीच दोस्ती हुई. साजिता काम का बहाना कर के घर से निकलती और वे दोनों अकसर अपने गांव से दूर कहीं और मिलने जाया करते थे. कभी साथ में शहर घूमने निकलते तो कभी दूर के खेतों में वक्त गुजारा करते.

उन की ये दोस्ती समय के साथ गहराती चली गई और वे दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. रहमान और साजिता दोनों के जीवन का वह पहला प्यार था, इसलिए उन के बीच एकदूसरे से लगाव कुछ ज्यादा ही हो गया था.

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इस के साथसाथ रहमान और साजिता ने एक बात का खासा ध्यान रखा था, वह यह कि वे दोनों अपना रिश्ता लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे. अपने गांव वालों के सामने तो बिलकुल भी नहीं.

ऐसा इसलिए कि रहमान और साजिता दोनों बखूबी जानते थे कि वे दोनों अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे. रहमान मुसलमान था तो साजिता हिंदू.

वे जानते थे कि उन के इस प्यार को, इस रिश्ते को उन के घर वाले और समाज मंजूरी नहीं देगा. इसलिए अपने प्यार को जगजाहिर होने से बचाने के लिए वे हरसंभव तरीके अपनाते थे. यहां तक कि जब दोनों फोन पर बातें करते तो बात करने के बाद काल डिटेल्स डिलीट कर देते थे.

उन के बीच यह पहले से ही तय हुआ था कि उन्हें अपने रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखना है, नहीं तो किसी की भी बुरी नजर लग सकती है.

समय बीता तो उन के बीच नजदीकियां और बढ़ती चली गईं. दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे थे. एकदूसरे के साथ पूरी जिंदगी गुजारना चाहते थे. ऐसे में साजिता ने एक शाम को प्लान बनाया और उस ने रहमान को इस के लिए तैयार भी कर लिया.

सजिता ने रहमान से कहा, ‘‘रहमान, मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी की जिंदगी गुजारना चाहती हूं. हम दोनों को अगर साथ में रहना है तो हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर जाना पड़ेगा. उन्हें छोड़ना पड़ेगा. नहीं तो ये लोग हमें जुदा कर देंगे. मैं जानती हूं कि तुम्हारे लिए यह मुश्किल फैसला होगा. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही तुम से यह बात कही है.’’

रहमान ने भी पहले से ही इस विषय में सोचविचार कर रखा था. उस ने साजिता की बातों का जवाब देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूं. अगर हम ने अपने घर वालों को अपने इस रिश्ते के बारे में बताया तो वे इस रिश्ते को मंजूरी कभी नहीं देंगे. बेहतर यही है कि हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर चले जाना चाहिए.’’

दोनों के बीच इस बातचीत के बाद दोनों ने दिन तय कर लिया कि उन्हें किस दिन अपने घर छोड़ देना है. ठीक 11 साल पहले, 2 फरवरी 2010 की रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे. ठंड के दिन थे तो उस समय तक गांव वाले सब सो चुके थे. साजिता और रहमान के घर वाले भी गहरी नींद में थे सिवाय उन दोनों के.

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साजिता ने पहले से ही अपने कपड़ेलत्ते और जरूरी सामान एक छोटे से बैग में भर लिया था. बिना आवाज किए साजिता ने घर से निकल कर पहले इधरउधर नजरें घुमाईं और यह सुनिश्चित किया कि बाहर कोई है तो नहीं. जब उसे सभी रास्ते साफ और सुनसान दिखाई दिए तो वह घर से निकल गई और पगडंडियों के सहारे रहमान से मिलने तय जगह पर चली गई.

वहां रहमान पहले से ही मौजूद था. वह वहां पहुंच तो गया था लेकिन उस के चेहरे पर काफी उदासी छाई हुई थी. साजिता ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं थे, जिस से वह उस के साथ कहीं शहर में जा कर किराए के कमरे पर गुजरबसर कर सके.

अगले भाग में पढ़ें- रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था

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