सौजन्य- सत्यकथा
इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए.
16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था.
उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.
पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था.
चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.
अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया.
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था. वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था.
भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है.
बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं.
इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.
परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था.
दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी.
तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.
सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था.
परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.
तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.
‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.
ये भी पढ़ें- प्यार की चाहत में – भाग 3
‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’
‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा.
उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था.
परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’