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सौजन्य- मनोहर कहानियां

चूंकि वारदात के समय कोरोना बीमारी के कारण 2 डिप्टी जेलर छुट्टी पर थे और जेलर व जेल अधीक्षक जेल के बाहर अपने आवास में थे, जबकि नियमत: उन में से किसी एक को जेल के भीतर होना चाहिए था.

इस से साफ हो गया कि कहीं न कहीं जानबूझ कर या अनजाने में लापरवाही हुई है. इसीलिए डीआईजी (जेल) संजीव त्रिपाठी की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने चित्रकूट जेल हत्याकांड मामले में चित्रकूट जेल के जेलर महेंद्र पाल व और जेल अधीक्षक श्रीप्रकाश त्रिपाठी को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ विभागीय काररवाई के भी आदेश दिए गए. साथ ही 3 अन्य जेल कर्मचारी संजय खरे, हरिशंकर राम और अमित कुमार को भी सस्पेंड किया गया.

उन की जगह अशोक कुमार सागर को चित्रकूट का नया जेल अधीक्षक बनाया गया. वहीं सी.पी. त्रिपाठी चित्रकूट जेल के नए जेलर बनाए गए.

लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि आखिर अंशुल ने मेराज व मुकीम काला की हत्या क्यों की? जेल के भीतर यह शूटआउट जिस तरह से हुआ था, उस से एक बात तो साफ थी कि किसी ने साजिश रच कर मेराज व मुकीम काला को जेल के भीतर मरवाया है और अंशुल को शूटर के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

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मारे गए तीनों थे कुख्यात अपराधी

जिस तरह वारदात के समय अंशुल मुख्तार अंसारी का नाम बारबार ले कर उस के गैंग को खत्म करने की बात कर रहा था, उस से भी स्पष्ट था कि मुख्तार अंसारी के किसी दुश्मन ने उसे कमजोर करने के लिए इस काम को अंजाम दिया या फिर मुख्तार गैंग ने ही इस शूटआउट को अंजाम दिलवाया है.

शासन के आदेश पर डीआईजी (जेल) संजीव त्रिपाठी के अलावा चित्रकूट जिला पुलिस की जांच टीम के सीओ (सिटी) शीतला प्रसाद पांडेय, कोतवाल वीरेंद्र त्रिपाठी, एसआई रामाश्रय सिंह को मिला कर एक जांच दल गठित किया, जिस ने धीरेधीरे इन सवालों के जवाब तलाशने शुरू कर दिए.

इन तमाम सवालों के जवाब जानने से पहले हमें चित्रकूट जेल के शूटआउट में मारे गए तीनों अपराधियों के जुर्म का इतिहास खंगालना होगा.

अंशुल सीतापुर जिले के मानकपुर कुड़रा बनी का मूल निवासी था. पुलिस कस्टडी के दौरान अंशुल अपराध की दुनिया के सफर में अपने शामिल होने की जो कहानी सुनाता था, उस के मुताबिक सीतापुर में एक राजनैतिक पार्टी के नेता का बेटा उस की बहन से छेड़छाड़ करता था. ऐसी हरकत से मना करने पर उस नेता के बेटे ने गुंडई की. सरेआम पिटाई करने के बाद अंशुल पर गोली दाग दी.

नेता के बेटे द्वारा किए गए हमले में अंशुल के पैर में गोली लगी. जब वह शिकायत ले कर थाने गया तो थानाप्रभारी ने काररवाई करने से मना कर दिया. इस दौरान उस के पूरे परिवार का उत्पीड़न किया गया. इस उत्पीड़न की वजह से उस की भाभी को काफी तकलीफ उठानी पड़ी. इस दौरान भाभी का गर्भपात भी हो गया.

उस के बाद से अंशुल ने ठान लिया कि वह अब बदला ले कर ही रहेगा. अंशुल को फैजाबाद के एक नेता का वरदहस्त मिला, तब उस ने स्थानीय नेता के बेटे की हत्या कर इंतकाम की आग शांत की.

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कालेज में हुआ था अपराधियों से संपर्क

अंशुल दीक्षित ने तब तक लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था, जहां वह कई अपराधियों के संपर्क में आया और उसी की बदौलत उस ने अपना बदला भी लिया. लखनऊ यूनिवर्सिटी के पूर्व महामंत्री विनोद त्रिपाठी से उन दिनों उस की सब से गहरी दोस्ती थी. उसी की बदौलत अंशुल का अपराधियों के साथ नेटवर्क बना था.

लेकिन बाद में किसी विवाद में अंशुल ने ही 11 दिसंबर, 2008 को गोमतीनगर के नेहरू इनक्लेव में विनोद त्रिपाठी और उस के साथी गौरव की हत्या कर दी थी.

विनोद त्रिपाठी की हत्या के केस में छात्र नेता हेमंत सिंह, विपिन सिंह और अश्वनी उपाध्याय गवाह थे. हालांकि अंशुल के खौफ से विपिन और अश्वनी ने आधी गवाही के बाद ही पैर पीछे खींच लिए.

लेकिन हेमंत, अंशुल को सजा दिलाने पर अड़ा था. इसलिए अंशुल हेमंत को गवाही से पीछे हटाने के लिए जान से मारने की धमकी दे रहा था. इसी दौरान वह मुख्तार अंसारी के भी संपर्क में आया और उस के लिए छिटपुट काम भी किए.

सन 2008 में वह गोपालगंज (बिहार) के भोरे में अवैध असलहों के साथ पहली बार पकड़ा गया था. लेकिन 6 साल बाद 17 अक्तूबर, 2013 को पेशी से लौटते समय वह सीतापुर रेलवे स्टेशन पर सिपाहियों को जहरीला पदार्थ खिला कर फायर करते हुए फरार हो गया था. बाद में उस पर 50 हजार का ईनाम घोषित हुआ.

पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद 27 सितंबर, 2014 को अंशुल की भोपाल में मौजूदगी की सूचना पर एसटीएफ लखनऊ के दारोगा संदीप मिश्र उसे भोपाल क्राइम ब्रांच के साथ गिरफ्तार करने गए थे. लेकिन यहां भी अंशुल दीक्षित पुलिस पर फायरिंग करते हुए भाग निकला.

उस की गोली से दरोगा संदीप मिश्र तथा क्राइम ब्रांच (भोपाल) के सिपाही राघवेंद्र घायल हो गए थे.

बन गया मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर

लेकिन पुलिस पर हमला करने के बाद एसटीएफ हाथ धो कर अंशुल के पीछे पड़ गई और 4 दिसंबर, 2014 को गोरखपुर की स्पैशल टास्क फोर्स ने अंशुल दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की गिरफ्त में आया अंशुल तब तक कई बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुका था. तब तक उस की पहचान अपराध जगत में माफिया सरगना मुख्तार अंसारी का खास व उस के शार्प शूटर के रूप में बन चुकी थी.

गिरफ्तारी के बाद लखनऊ जेल से अंशुल को 30 सितंबर, 2018 को रायबरेली जेल लाया गया. अंशुल दीक्षित रायबरेली कारागार में करीब 50 दिन रहा. इतने दिनों में ही उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर जेल के भीतर अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी थीं.

यहां उस ने शातिर बदमाश दलशृंगार सिंह और सोहराब के साथ मिल कर कई वीडियो बनाए. इन वीडियो के बल पर वह जेल के अफसरों को ब्लैकमेल करने लगा. बात जब सिर के ऊपर से गुजरी तो उसे व उस के साथियों को 20 नवंबर, 2018 को प्रतापगढ़ जेल शिफ्ट कर दिया गया.

अंशुल ने यहां भी अपने कारनामे जारी रखे. और एक के बाद एक 6 वीडियो वायरल किए. इस के बाद उसे 9 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश की नई हाईटेक चित्रकूट जेल भेजा गया.

तब से वह इसी जेल में बंद था. अंशुल जल्द ही चित्रकूट जेल में रम गया और ठाठ से रहने लगा. बताया जाता है कि जेल में उस से मुलाकात करने वाले उसे बड़ी रकम दे कर जाते थे. जेल के सभी वार्डनों, डिप्टी  जेलर तथा उच्चाधिकारियों से उस की गहरी सांठगांठ हो गई थी.

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कुख्यात गैंगस्टर था मुकीम काला

अंशुल की तरह मुकीम काला भी कुख्यात अपराधी था. मुकीम काला शामली जिले के कैराना थाना क्षेत्र के जहानपुरा गांव का रहने वाला था. उस पर शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के अलावा दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में 61 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज थे.

इन में लूट, रंगदारी, अपहरण, फिरौती के 35 से ज्यादा मुकदमे थे. मुकीम काला के दूसरे भाई वसीम काला को सन 2017 में एसटीएफ ने मेरठ में मुठभेड़ में मार गिराया था.

अपराध की दुनिया में आने से पहले मुकीम काला करीब 12 साल पहले राजमिस्त्री का काम करता था. लेकिन बाद में अपराधियों के संपर्क में आ कर मुकीम काला पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बन गया. उस पर एक लाख रुपए का ईनाम भी रखा जा चुका था.

सपा सरकार में मुकीम काला का वेस्ट यूपी में जबरदस्त आतंक था. यूपी ही नहीं, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में भी उस के खिलाफ कई मामले दर्ज थे.

मुकीम काला ने हरियाणा के पानीपत में एक मकान में डकैती डाल कर पहली वारदात को अंजाम दिया. इस मामले में जेल गया. जेल में ही उस की मुलाकात सहारनपुर जिले के थाना गंगोह के मुस्तफा उर्फ कग्गा से हुई थी, जिस के बाद मुस्तफा उर्फ कग्गा ने उसे अपने गैंग में शामिल कर लिया. मुकीम के आने के बाद कग्गा का गैंग और मजबूत हो गया. पुलिस पर हमले करने के बाद यह गैंग रडार पर आया.

दिसबंर 2011 में पुलिस एनकाउंटर में मुस्तफा उर्फ कग्गा मारा गया. मुस्तफा की मौत के बाद मुकीम काला ने कग्गा के गैंग की बागडोर संभाल कर सरगना बन गया. काला के गैंग में 20 से अधिक बदमाश शामिल रहे.

इसी दौरान मुकीम काला भी मुख्तार के संपर्क में आया जो उस के धर्म से जुड़ा बड़ा माफिया होने के साथ एक सियासी रसूख वाला व्यक्ति भी था. मुख्तार के कहने पर काला ने कई वारदातों को अंजाम दिया.

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मुकीम काला जेल में बंद रहे या बाहर रहे, लेकिन अपने क्षेत्र कैराना में उस के नाम का इतना आतंक व्याप्त हो चुका था कि वहां रहने वाले हिंदू कारोबारियों से वह खुल कर रंगदारी वसूलने लगा. जो रंगदारी नहीं देता उसे मुकीम का गिरोह मौत के घाट उतार देता था.

उस की दहशत इतनी फैल गई कि कैराना में रहने वाले हिंदू परिवार वहां से डर के कारण पलायन करने लगे, जिसे 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ा मुद्दा तक बनाया.

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