सौजन्य- मनोहर कहानियां
रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को हिरासत में ले लिया. मृतका डा. मंजू वर्मा के शव का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के एक पैनल ने किया. परीक्षण के बाद शव को मृतका के पिता अर्जुन प्रसाद को सौंप दिया गया. दरअसल ससुराल पक्ष से शव लेने कोई भी पोस्टमार्टम हाउस नहीं आया था.
अर्जुन प्रसाद बेटी का शव प्रयागराज ले जाना चाहते थे और वहीं अंतिम संस्कार करना चाहते थे, जबकि बिठूर पुलिस कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती थी और अंतिम संस्कार कानपुर के भैरवघाट पर कराना चाहती थी. थानाप्रभारी ने इस बाबत अर्जुन प्रसाद से बात की तो वह इस शर्त पर मान गए कि बेटी को मुखाग्नि उस का पति दे.
इस पर बिठूर थानाप्रभारी मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को ले कर भैरव घाट पहुंचे, जहां सुशील वर्मा ने पत्नी मंजू की चिता को अग्नि दी. उस के बाद उसे पुन: थाने लाया गया.
इधर मृतका की मां मीरा देवी व उस की बेटियों सरिता व गरिमा सुशील वर्मा के फ्लैट पर पहुंचीं. उस समय फ्लैट पर डा. सुशील वर्मा की मां कौशल्या देवी तथा छोटा भाई सुधीर वर्मा मौजूद था. मांबेटियों ने वहां जम कर भड़ास निकाली और बेटी की सास कौशल्या देवी को खूब खरीखोटी सुनाई.
मीरा देवी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो कौशल्या देवी ने कहा कि वह गांव में रहती है. बेटा और बहू शहर में रहते हैं. उन्हें न तो लोन के संबंध में जानकारी थी और न ही दोनों के बीच मनमुटाव की. बहू ने क्यों और कैसे जान दी, वह नहीं जानती. दहेज मांगने और प्रताडि़त करने की बात सरासर गलत है.
उधर एसपी (वेस्ट) संजीव त्यागी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गौर से पढ़ा. रिपोर्ट के अनुसार लगभग 75 फीट की ऊंचाई से गिरने के कारण डा. मंजू वर्मा की लगभग सारी पसलियां टूट कर चकनाचूर हो गई थीं. दिल और लिवर फट गया था. आंतरिक रक्तस्राव हुआ, जिस की वजह से मौत हो गई.
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पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद एसपी संजीव त्यागी व डीएसपी दिनेश कुमार शुक्ला ने आरोपी डा. सुशील वर्मा से बिठूर थाने में पूछताछ की. उस ने बताया कि 14 मई, 2021 की शाम सब कुछ सामान्य था. रात 8 बजे उस ने औनलाइन पिज्जा मंगाया. इस के बाद उस ने व मंजू ने पिज्जा खाया. कुछ देर तक हम दोनों बातचीत करते रहे. उस के बाद सोने चले गए.
रात 2 बजे डेढ़ वर्षीय बेटे रुद्रांश के रोने की आवाज सुन कर उस की नींद खुल गई. कमरे में आया तो देखा मंजू कमरे में नहीं है. कमरे से बाहर आ कर बालकनी में देखा तो मंजू वहां भी नहीं थी. बालकनी से नीचे झांका तो शोर सुनाई पड़ा. नीचे आ कर देखा तो मंजू की लाश पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने घर वालों को सूचना दी.
‘‘तुम्हारी पत्नी मंजू वर्मा ने आत्महत्या की या तुम ने उसे मार डाला?’’ डीएसपी दिनेश शुक्ला ने पूछा.
‘‘सर, मैं ने उस की हत्या नहीं की. मंजू ने स्वयं आत्महत्या की है.’’ सुशील ने जवाब दिया.
‘‘लेकिन डा. मंजू वर्मा ने आत्महत्या क्यों की?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.
‘‘सर, डा. मंजू वर्मा ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी. शादी के पूर्व वह प्रैक्टिस करती थी. लेकिन शादी के बाद उन की प्रैक्टिस छूट गई थी. उन की साथी उन्हें चिढ़ाती थीं कि एमबीबीएस करने से क्या फायदा जो प्रैक्टिस न कर सको. वह एमडी करना चाहती थी. लेकिन बच्चा होने से वह पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. इसी कारण वह डिप्रेशन में चली गई और उन्होंने आत्महत्या कर ली.’’
लेकिन सुशील कुमार की बात पुलिस अधिकारियों के गले नहीं उतरी और उन्होंने सुशील कुमार को दहेज हत्या में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस ने सुशील के बड़े भाई सुनील वर्मा से भी पूछताछ की, जो बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर कानपुर (देहात) जिले में तैनात थे.
उन्होंने बताया कि डा. मंजू वर्मा की मौत से उन का कोई लेनादेना नहीं है. डा. मंजू वर्मा ने मौत को गले क्यों लगाया, उन्हें कोई जानकारी नही है. डा. मंजू वर्मा के पिता अर्जुन प्रसाद ने उन की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है.
पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपी के बयानों एवं मृतका के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर डा. मंजू वर्मा की मौत की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.
उत्तर प्रदेश का प्रयागराज शहर कई मायनों में चर्चित है. गंगा यमुना के संगम तट पर बसा प्रयागराज धर्म नगरी के रूप में भी जाना जाता है. हर 12 साल में यहां संगम तट पर कुंभ का मेला लगता है. देशविदेश के लाखों श्रद्धालु एवं संत मेले में आते हैं और गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं. मेले का आकर्षण देख कर विदेशी श्रद्धालु अचरज से भर उठते हैं.
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प्रयागराज शहर में उच्च न्यायालय भी है, जहां प्रदेश के मुकदमों की सुनवाई होती है. पूर्व में प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से भी जाना जाता था.
इसी प्रयागराज का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-नैनी. नैनी क्षेत्र की पीडीए कालोनी में अर्जुन प्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मीरा देवी के अलावा 3 बेटियां मंजू, सरिता, गरिमा तथा एक बेटा विष्णुकांत था.
अर्जुन प्रसाद औद्योगिक न्यायाधिकरण प्रयागराज में सहायक लिपिक पद पर कार्यरत थे. वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. लेकिन रहनसहन साधारण था.
अर्जुन प्रसाद की बड़ी बेटी मंजू दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ने में भी उतनी ही तेज थी. हाईस्कूल तथा इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद मंजू ने प्रयागराज के स्वरूप रानी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली थी. उस के बाद वह प्रैक्टिस करने लगी थी.
मंजू डाक्टर बन गई थी और कमाने भी लगी थी. लेकिन अर्जुन प्रसाद के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगी थीं. एक देहाती कहावत है ‘जब बेटी भई सयानी, फिर पेटे नहीं समानी.’ अर्जुन प्रसाद और उन की पत्नी मीरा भी इस कहावत से अछूते नहीं थे. मंजू के ब्याह की चिंता उन्हें सताने लगी थी.
मातापिता मंजू का विवाह ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो उस के समकक्ष हो. मंजू डाक्टर थी, सो वह डाक्टर वर की ही खोज कर रहे थे. अथक प्रयास के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था सुशील कुमार वर्मा.
डाक्टर से ही की बेटी की शादी
सुशील कुमार वर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश रायबरेली जिले के चतुर्भुज गांव का रहने वाला था. 3 भाइयों में वह मंझला था. सुशील का छोटा भाई सुधीर, गांव में मां कौशल्या देवी के साथ रहता था और पेशे से वकील था, जबकि सुशील का बड़ा भाई सुनील बेसिक शिक्षा अधिकारी था.
सुशील कुमार वर्मा स्वयं डाक्टर था. वह उरई मैडिकल कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर तैनात था और कानपुर (बिठूर) स्थित रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट में रहता था.
अर्जुन प्रसाद बेटी के लिए जैसा वर चाहते थे, सुशील कुमार वैसा ही था. अत: उन्होंने उसे पसंद कर लिया. इस के बाद 29 जनवरी, 2019 को अर्जुन प्रसाद ने अपनी बेटी डा. मंजू वर्मा का विवाह डा. सुशील कुमार वर्मा के साथ धूमधाम से कर दिया. शादी में उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया था.
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