सौजन्य- सत्यकथा
देवेंद्र सोनी उर्फ दीपक अपनी पत्नी दीप्ति और 7 वर्षीय बेटी सोनिया के साथ कोरबा आया था. पहले पहल दोनों ने बालको नगर स्थित अपने भारतीय स्टेट बैंक के काम को निपटाया. बहुत दिनों से देवेंद्र पत्नी से कह रहा था कि अपने बैंक अकाउंट को अब बिलासपुर ट्रांसफर करवा ले. लगे हाथ उस दिन देवेंद्र सोनी ने पत्नी के अकाउंट में नौमिनी के रूप में अपना नाम भी दर्ज करवा लिया था.
दीप्ति का बचपन कोरबा के बालको नगर में बीता था. यहां भारत अल्युमिनियम कंपनी, जो देश की प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र की अल्युमिनियम कंपनी कहलाती थी, में उस के पिता कृष्ण कुमार सोनी काम करते थे.
एक सहेली रजनी से भी उस की अकसर फोन पर बात होती थी. उस से भी उस दिन मुलाकात हो गई दीप्ति बहुत खुश थी. मगर अचानक जाने क्या हुआ कि वह परेशान नजर आने लगी.
पतिपत्नी दोनों ने रजनी के यहां शाम की चाय नाश्ते के बाद बेटी सोनिया को परिजन के यहां छोड़ दिया. इस के बाद वह गृहनगर सरकंडा, बिलासपुर की ओर अपनी मारुति ब्रेजा कार सीजी10 एयू 6761 से रवाना हो गए.
देवेंद्र ने गौर किया कि दीप्ति आज दिन भर तो खुश नजर आ रही थी मगर बाद में शाम होतेहोते कुछ परेशान नजर आने लगी. उस ने उस की ओर देखते हुए संशय भाव से पूछा, ‘‘क्या बात है दीपू, तुम उखड़ीउखड़ी सी दिखाई दे रही हो.’’
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दीप्ति को वह प्यार से अकसर दीपू कह कर पुकारता था. दीप्ति खुद को फिल्मों की बहुचर्चित स्टार दीपिका पादुकोण जैसी समझती थी. उस ने अपना चेहरा नाराजगी से दूसरी तरफ घुमा लिया, मानो देवेंद्र की बात उस ने सुनी ही नहीं.
लंबे समय से देवेंद्र सोनी (30 वर्ष) और दीप्ति (28 वर्ष) का दांपत्य जीवन इसी तरह उतारचढ़ाव मानमनुहार में बीत रहा था. देवेंद्र मन ही मन दीप्ति पर शक करता, वह भी लड़झगड़ कर चुप रह जाती थी, सोचती कि धीरेधीरे गाड़ी पटरी पर आ जाएगी. दरअसल, दीप्ति पति देवेंद्र के दूसरी औरत के साथ संबंध के बारे में आज जान चुकी थी.
जब वे दोनों गाड़ी से गृहनगर बिलासपुर जा रहे थे. देवेंद्र भी चुपचाप ड्राइविंग पर ध्यान दे रहा था, तभी अंतत: दीप्ति फट पड़ी, ‘‘मुझे लगता है, तुम शायद अपने आप को बदल नहीं सकते.’’
‘‘क्यों, फिर क्या हो गया?’’ अनजान से देवेंद्र सोनी ने गाड़ी ड्राइव करते हुए उस की ओर देखते हुए पूछा.
‘‘तुम जितने भोले बनते हो, दरअसल हो नहीं. मैं ने तुम्हारा फोन चैक किया था, तुम अभी भी…’’
यह सुन कर देवेंद्र थोड़ा घबराया फिर बोला, ‘‘तुम्हें मेरा मोबाइल नहीं देखना चाहिए. इस बात के लिए मैं पहले भी मना कर चुका हूं.’’
‘‘क्यों, मैं क्यों नहीं देख सकती, लो तुम भी मेरा मोबाइल देख लो.’’ तुनक कर दीप्ति ने अपना मोबाइल उस की तरफ बढ़ा दिया.
देवेंद्र ने गुस्से में फुफकारते हुए अपनी निगाह सड़क की ओर लगाई और गाड़ी ड्राइव करते हुए बोला, ‘‘दीप्ति तुम हद पार कर रही हो…’’
‘‘अच्छा, मैं हद पार कर रही हूं.’’ दीप्ति ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं. हमारी एक बेटी है यह तुम्हें पता है न. और मैं हद पार कर रही हूं और तुम जो कर रहे हो, क्या वह सही है? बताओ, तुम एक पति के रूप में मेरे साथ न्याय कर रहे हो.’’ गुस्से से उफनती दीप्ति के मुंह में जो आ रहा था, कहने लगी.
‘‘अच्छाअच्छा शांत हो जाओ, गुस्सा तुम्हारे लिए नुकसानदेह होगा. हम पतियों को तो ऐश करने का अधिकार है. अच्छी बीवियां शौहर के गैरऔरतों से बनाए संबंधों पर निगाह नहीं डालतीं.’’
‘‘अच्छा, तुम मुझ पर जब बेवजह शक करते हो तो बताओ मैं क्यों चुप रहूं? अब मेरे पास तो सबूत है, तुम्हारा अपना मोबाइल.’’
‘‘देखो, तुम मेरे रास्ते में मत आओ, चुपचाप मौज से अपनी जिंदगी गुजारो. मुझे भी गुजारने दो, यह मैं तुम से आज अंतिम बार कह रहा हूं, वरना…’’
‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.
‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’
वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’
दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’
देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.
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वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.
उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.
पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.
मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.
देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.
देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.
अगले भाग में पढ़ें- दीप्ति ने उस के इस अत्याचार को भी एक तरह से स्वीकार किया था