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सौजन्य: मनोहर कहानियां

घर वालों को उन पर किसी तरह का शक इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि दोनों पारिवारिक रिश्ते में भाईबहन थे. इसी रिश्ते की आड़ में वे घर वालों को बेवकूफ बनाते रहे. उन के बीच जो प्यार उपजा था, वह भाईबहन के रिश्ते को भूल गया था. मर्यादाओं में रहते हुए वे जीवन के हसीन ख्वाब देखने लगे थे. लेकिन उन के संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे न रह सके. एक दिन आरती की मां ममता ने उस की और विकास की बातें सुन लीं. इस के बाद वह आरती और विकास के ज्यादा मिलने का मतलब समझ गई. शाम को उस ने इस बारे में बेटी से पूछा तो उस ने मुसकराते हुए कह दिया कि उस का विकास से इस तरह का कोई संबंध नहीं है.

ममता ने भी जमाना देखा था. वह समझ गई कि बेटी झूठ बोल रही है. इसलिए उस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती को सच उगलना ही पड़ा. उस ने डरतेडरते कह दिया कि वह विकास से प्यार करती है.

इस के बाद ममता का गुस्सा फट पड़ा. वह आरती की पिटाई करते हुए बोली, ‘‘कुलच्छिनी, तुझे शर्म नहीं आई. जानती है, वह तेरा क्या लगता है? कम से कम अपने रिश्ते का तो लिहाज किया होता.’’

‘‘मम्मी, वह कोई सगा भाई थोड़े ही है और जब प्यार होता है, तो वह रिश्ता नहीं देखता. हम दोनों ही एकदूसरे को चाहते हैं.’’ आरती ने रोते हुए कहा.

‘‘अच्छा, बहुत जुबान चल रही है, अभी खींचती हूं तेरी जुबान,’’ कहते हुए ममता ने उस पर लात और थप्पड़ों की बरसात कर दी. लेकिन आरती यही कहती रही कि चाहे वह उसे कितना भी मार ले, वह विकास को नहीं छोड़ेगी.

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