सौजन्य- सत्यकथा
‘‘खालिदा फैजी की खालाजाद बहन है. फैजी की मां की बड़ी आरजू थी कि वह खालिदा को अपनी बहू बनाए पर खालिदा की मां ने साफ इनकार कर दिया. इस पर बहुत लड़ाई भी हुई थी. लंबी नाराजगी चल रही है और खालिदा की शादी मेरे बेटे आफताब से हो गई. इस के पहले फैजी की मां और खालिदा की मां के ताल्लुकात बहुत अच्छे थे और सदमे में फैजी के बाप को फालिज का असर हो गया.’’
सारी कहानी सुन कर मैं सोच में पड़ गया. अब फैजी और जावेद दोनों शक के घेरे में आ गए थे. मैं ने फय्याज अली को बताया, ‘‘लाश शाम तक आ जाएगी. वे लोग मय्यत का बंदोबस्त कर लें.’’
सब को तसल्ली दे कर मैं वहां से उठ गया. उस दिन भी नौशाद से मुलाकात न हो सकी. वह काम से बाहर गया था.
सुलताना से की गई मालूमात तफ्तीश को आगे बढ़ाने में कारामद थी. जब मैं बाहर निकला तो फय्याज के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी और एक लड़का भी था. फय्याज ने बताया, ‘‘यह मेरे भाई फिदा अली हैं और यह खालिदा का भाई सईद.’’
इन के बारे में मैं पहले ही सुन चुका था. इन लोगों से कुछ पूछना बेकार था.
दूसरे दिन जावेद मेरे सामने खड़ा था. कसरती नौजवान था. उस के चेहरे पर रूखापन और अकड़ थी. उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने क्या किया है जो आप ने मुझे थाने बुलाया है?’’
‘‘मुझे कुछ पूछताछ करनी है. सीधा और सही जवाब चाहिए.’’
‘‘मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत है. बेवजह मुझे पकड़ लाए.’’
हवलदार ने एक चांटा उसे जड़ा तो उस का दिमाग सही हो गया. धीमे लहजे में बोला, ‘‘पूछिए, क्या पूछना है?’’
‘‘वारदात के दिन तुम कहां थे? शाम तक भी घर वापस नहीं आए.’’
‘‘सरकार, मैं गल्ला मंडी गया था. कुछ काम पड़ गया, आतेआते रात हो गई. सुबह आप की खिदमत में हाजिर हूं.’’
‘‘गल्ला मंडी क्यों गए थे?’’
‘‘मुझे सब्जियों के बीज लाने थे और गेहूं के दाम भी चैक करने थे. मैं सवेरे 8 बजे घर से निकला था.’’
इस का मतलब वह आफताब की मौत के बाद घर से निकला था. मैं आंख बंद कर के उस पर यकीन नहीं कर सकता था.
‘‘तुम ने जो बीज खरीदे, उस की रसीद दिखाओ?’’
उस ने जेब से तुड़ीमुड़ी रसीद निकाल कर मेरे आगे कर दी. तारीख की जगह पर मुझे ओवरराइटिंग का गुमान हुआ. मैं ने रसीद दराज में रख ली.
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‘‘जावेद, यह बताओ कि आफताब की मंगनी तुम्हारी बहन से हुई थी तो यह मंगनी क्यों टूट गई?’’
‘‘सरकार, उन लोगों ने मेरी बहन पर बदचलनी का इलजाम लगा कर मंगनी तोड़ दी. मुझे बहुत गुस्सा आया रंज भी हुआ. बेवजह मेरी बहन बदनाम हुई.’’
‘‘और इसी का बदला लेने के लिए गुस्से में तुम ने आफताब का कत्ल कर दिया.’’
वह घबरा कर बोला, ‘‘थानेदार साहब, गुस्सा अपनी जगह है. मैं इस बात के लिए आफताब को कत्ल नहीं कर सकता. हां, मेरी उस से लड़ाई हुई थी. उसे बुराभला कह कर मैं ने अपना गुस्सा उतार लिया था और अपने दोस्त फैजी का साथ दिया था. मैं कसम खाता हूं, मैं इस कत्ल में शामिल नहीं हूं.’’
मैं ने पलटवार किया, ‘‘तो क्या यह कत्ल फैजी ने किया है? वह खालिदा से शादी करना चाहता था, पर जब उस की शादी आफताब से हो गई तो बदला लेने के लिए उस ने आफताब को मार दिया.’’
वह जल्दी से बोला, ‘‘नहीं सरकार, फैजी ऐसा नहीं कर सकता. इतनी सी बात के लिए कोई खून नहीं कर सकता. मैं यह मानता हूं कि मेरे और फैजी के दिल में आफताब के लिए जहर भरा था, पर हम ने कत्ल की वारदात नहीं की है.’’
मैं ने धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम शक के दायरे से बाहर नहीं हो. गांव छोड़ कर बाहर मत जाना.’’
दोपहर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई और साथ ही लाश भी. लाश घर वालों के सुपुर्द कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, आफताब को 18 तारीख की सवेरे 5 और 6 बजे के बीच मारा गया था.
मौत खोपड़ी चटखने से हुई. खोपड़ी के पिछले हिस्से पर लोहे की भारी चीज से वार किया गया था. यह वार बेखबरी में पीछे से किया गया था.
शाम को लाश को दफना दिया गया. काफी लोग जमा हुए थे. गमी का माहौल था. दूसरे दिन मैं ने मशकूर हुसैन को जावेद की बात की सच्चाई जानने को रसीद के साथ गल्ला मंडी रवाना कर दिया. उस के बाद फैजी को थाने बुलाया.
फैजी 23-24 साल का गोरा जवान था. आते ही उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘मुझे आप ने सिपाही से पकड़वा कर क्यों बुलवाया? मेरा क्या कसूर है?’’
मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है. एक बार में सच बोल दो तो बेहतर है. मार के बाद तो सच ही निकलेगा. तुम ने आफताब का कत्ल क्यों किया?’’
वह चीखते हुए बोला, ‘‘आप यह कैसा इलजाम लगा रहे हैं. इस कत्ल में मैं शामिल नहीं हूं. खुदा की कसम, मैं ने उस का कत्ल नहीं किया. यह सरासर इलजाम है.’’
मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘फिर बताओ किस ने कत्ल किया? तुम उस से नफरत करते थे क्योंकि तुम्हारी पसंद की लड़की की शादी आफताब से हो गई थी. उस की जीत तुम से बरदाश्त नहीं हुई. कबड्डी के मैदान में भी तुम ने उस से झगड़ा किया था.’’
‘‘यह सही है कि मैं उस से नफरत करता था, पर सच्चाई यह है कि मैं ने आफताब को नहीं मारा.’’
‘‘जब तक सही कातिल हाथ नहीं आता, शक में तुम हवालात में बंद रहोगे.’’
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फैजी की गिरफ्तारी की खबर जल्दी ही गांव में फैल गई. उस की मां रोतेधोते हमारे पास पहुंच गई. कहने लगी, ‘‘मेरा बेटा बेकसूर है. सुलताना ने आप को भड़काया, इलजाम लगाया, आप ने उसे हवालात में डाल दिया. यह जुल्म है सरकार. यह बात सही है कि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था पर मेरी बहन ने ही मना कर दिया, मैं किसी को क्या दोष दूं.’’
मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, अभी जांच चल रही है. फैजी शक के दायरे में आता है, इसलिए उसे बंद किया है. अगर वह बेकसूर है तो यकीन रखो, मैं उसे छोड़ दूंगा.’’
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