सौजन्य- मनोहर कहानियां
अपने बेटे की तसवीर के सामने खड़े जयभगवान की आखें बारबार डबडबा रही थीं. हाथ में पकड़े रूमाल से आंखों में छलक आए आंसुओं की बूंदों को साफ करते हुए वह बारबार एक ही बात बुदबुदा रहे थे, ‘‘बेटा, आज मेरी लड़ाई पूरी हो गई. तेरे एकएक कातिल को मैं ने सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है. तू जहां भी है देखना कि तेरा ये बूढ़ा बाप तेरे कातिलों को उन के किए की सजा दिला कर रहेगा.’’
कहतेकहते जयभगवान अचानक फफकफफक कर रोने लगे. रोतेरोते उन की आंखों के आगे अतीत के वह लम्हे उमड़घुमड़ रहे थे, जिन्होंने उन की हंसतीखेलती जिंदगी को अचानक आंसुओं में बदल दिया था.
बाहरी दिल्ली के समालखा में रहने वाले जयभगवान प्राइवेट नौकरी करते थे. उन के 2 ही बेटे थे. बड़ा बेटा रवि और छोटा डैनी. 10वीं कक्षा तक पढ़े रवि ने 18 साल की उम्र में पिता का सहारा बनने के लिए ग्रामीण सेवा वाले आटो को चलाना शुरू कर दिया था.
3 साल बाद मातापिता को रवि की शादी की चिंता सताने लगी. समालखा की इंद्रा कालोनी में रहने वाला शेर सिंह जयभगवान की ही बिरादरी का था.
शेर सिंह की पत्नी कमलेश राजस्थान के अलवर जिले में टपूकड़ा की रहने वाली थी. उस ने अपनी साली शकुंतला का रिश्ता रवि से करने की सलाह दी थी. जिस के बाद दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हुई.
कई दौर की बातचीत के बाद रवि का शेर सिंह की साली शकुंतला से रिश्ता पक्का हो गया. शकुंतला के पिता पतराम और मां भगवती के 6 बच्चे थे, 3 बेटे और 3 बेटियां. सब से बड़ी बेटी कमलेश की शादी शेरसिंह से हुई थी. शकुंतला 5वें नंबर की थी. उस से छोटा एक और लड़का था, जिस का नाम था राजू.
दोनों परिवारों की पसंद और रजामंदी से 8 फरवरी, 2011 को सामाजिक रीतिरिवाज के साथ रवि और शकुंतला की शादी हो गई. लेकिन शादी की पहली रात को रवि कुछ रस्मों के कारण अपनी दुलहन के साथ सुहागरात नहीं मना सका.
संयोग से अगले दिन कुछ नक्षत्र योग के कारण शकुंतला को पगफेरे की रस्म के लिए अपने मायके जाना पड़ा. नक्षत्रों के फेर के कारण शकुंतला को एक महीने तक मायके में ही रहना पड़ा.
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किसी तरह एक माह गुजरा और 21 मार्च, 2011 को रवि अपनी पत्नी शकुंतला को अपनी ससुराल अलवर से अपने घर समालखा दिल्ली वापस ले आया.
शकुंतला थकी थी, लिहाजा उस रात भी रवि की पत्नी के साथ सुहागरात की मुराद पूरी नहीं हो सकी. अगली सुबह शकुंतला ने घर में पहली रसोई बना कर पूरे परिवार को खाना खिलाया, जिस के बाद जयभगवान अपनी नौकरी के लिए चले गए.
दोपहर को शकुंतला अपने पति रवि को साथ ले कर इंद्रानगर कालोनी में रहने वाली बड़ी बहन कमलेश से मिलने के लिए उस के घर चली गई. लेकिन शाम के 7 बजे तक जब बेटा और बहू घर नहीं लौटे तो जय भगवान ने बेटे रवि के मोबाइल पर फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिला.
जयभगवान छोटे बेटे को ले कर रवि के साढ़ू शेर सिंह के घर पहुंचे तो शकुंतला ने बताया कि रवि को रास्ते में ग्रामीण सेवा चलाने वाले कुछ दोस्त मिल गए थे. रवि उसे घर के पास छोड़ कर यह कह कर चला गया था कि कुछ ही देर में वापस लौट आएगा. लेकिन उस के बाद से ही वह वापस नहीं लौटा है.
जयभगवान बहू शकुंतला को उस की बहन के घर से अपने साथ घर ले आए. लेकिन पूरी रात बीत जाने पर भी रवि घर नहीं आया.
अगली सुबह 23 मार्च, 2011 को जयभगवान ने कापसहेड़ा थाने में अपने बेटे की गुमशुदगी की सूचना लिखा दी.
रवि के लापता होने की जानकारी मिलने के बाद अगले दिन शकुंतला के घर वाले भी अपने पड़ोसी कमल सिंगला को ले कर हमदर्दी जताने के लिए जयभगवान के घर पहुंचे.
उन सब ने भी जयभगवान के साथ मिल कर रवि की तलाश में इधरउधर भागदौड़ की. कई दिनों तक जब रवि का कोई सुराग नहीं मिला तो 10 दिन बाद मायके वाले शकुंतला को अपने साथ वापस अलवर ले गए.
इसी तरह वक्त तेजी से गुजरने लगा. कापसहेड़ा पुलिस ने लापता लोगों की तलाश के लिए की जाने वाली हर काररवाई की. घर वालों ने जिस पर भी रवि के लापता होने का शक जताया, उन सभी को बुला कर पूछताछ की गई. मगर कोई सुराग नहीं मिला.
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बेटे का सुराग नहीं मिलता देख जयभगवान ने उच्चाधिकारियों से भी मुलाकात की फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ. लिहाजा उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. जिस पर दिल्ली पुलिस को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया.
कोर्ट के आदेश पर हुई जांच शुरू
नोटिस जारी होते ही दिल्ली पुलिस के उच्चाधिकारियों के कान खड़े हुए और इसी के आधार पर पीडि़त जयभगवान की शिकायत पर 16 अप्रैल, 2011 को रवि की गुमशुदगी के मामले को कापसहेड़ा पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 365 (अपहरण) की रिपोर्ट दर्ज कर ली.
जयभगवान से पूछा गया तो उन्होंने पुलिस के सामने शंका जाहिर की कि उन्हें शकुंतला के भाई राजू और उन के पड़ोसी कमल सिंगला पर शक है.
वह कोई ठोस कारण तो नहीं बता सके, लेकिन उन्होंने बताया कि शादी होने से पहले कमल ही शंकुतला के घर वालों के साथ हर बार उन के घर आया, जबकि वह उन का रिश्तेदार भी नहीं है.
हालांकि पुलिस के पास कोई पुख्ता आधार नहीं था, लेकिन इस के बावजूद उन दोनों को बुला कर पूछताछ की गई. मगर ऐसी कोई संदिग्ध बात पता नहीं चल सकी, जिस के आधार पर उन से सख्ती की जाती.
पुलिस ने शकुंतला, उस की बहन कमलेश, जीजा शेर सिंह और भाई राजू के साथ कमल सिंगला के अलावा भी अलवर जा कर कुछ और लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा.
पुलिस को आशंका थी कि कहीं रवि की शादी उस के घर वालों ने बिना उस की मरजी के तो नहीं की थी, जिस से वह पत्नी को छोड़ कर खुद कहीं चला गया हो. इस बिंदु पर भी जांचपड़ताल हुई, लेकिन पुलिस को कोई सिरा नहीं मिला.
रवि के पिता ने कमल सिंगला नाम के जिस युवक पर आरोप लगाया था, वह उस समय 19 साल का भी नहीं हुआ था. इसलिए पुलिस उस के साथ सख्ती से पूछताछ भी नहीं कर सकती थी. वैसे भी पुलिस को कमल के खिलाफ ऐसा कोई आधार नहीं मिल रहा था कि वह रवि के अपहरण का आरोपी ठहराया जा सके.
जांच में यह भी पता चला था कि वारदात वाले दिन कमल अलवर में ही था. रही बात राजू के इस वारदात में शामिल होने की तो वह भला अपनी ही बहन के पति का अपहरण क्यों करेगा, जिस की शादी एक महीना पहले ही हुई है.
दोनों के खिलाफ न तो कोई सबूत मिल रहा था और न ही रवि के अपहरण या हत्या के पीछे पुलिस को कोई आधार दिख रहा था.
पुलिस को साफ लग रहा था कि रवि की लाइफ में ऐसा कुछ जरूर है, जिसे परिवार वाले छिपा रहे हैं और उस के लापता होने का ठीकरा उस की पत्नी व दूसरे लोगों पर फोड़ रहे हैं.
पुलिस को लगा कि या तो शादी से पहले रवि का किसी दूसरी लड़की से संबध था या उस का अपने पेशे से जुड़े ग्रामीण सेवा के किसी ड्राइवर से पुराना विवाद था और शायद इसी वजह से उस की हत्या कर दी गई हो.
कापसहेड़ा पुलिस ने उस इलाके के ग्रामीण सेवा चलाने वाले कई ड्राइवरों और रवि के टैंपो के मालिक से भी कई बार पूछताछ की. उस के चरित्र और दुश्मनी के बारे में भी जानकारी हासिल की गई, लेकिन कहीं से भी ऐसा कोई सुराग हाथ नहीं लगा कि जांच को आगे बढ़ाने का रास्ता मिलता.
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इस दौरान हाईकोर्ट में सिंतबर, 2011 में पुलिस को जांच की स्टेटस रिपोर्ट देनी थी तो उस में कोई प्रगति न पा कर हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को इस मामले की जांच एक सक्षम एजेंसी को सौंपने के लिए कहा.
अदालत का आदेश आने के बाद पुलिस आयुक्त ने अक्तूबर 2011 में रवि के अपहरण की जांच का जिम्मा एंटी किडनैपिंग यूनिट के सुपुर्द कर दिया. उन दिनों एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को एंटी किडनैपिंग यूनिट के नाम से जाना जाता था.
बदलते रहे जांच अधिकारी
इस मामले की जांच का काम सब से पहले इस यूनिट के एसआई हरिवंश को सौंपा गया. फाइल हाथ में लेने के बाद उन्होंने इस का गहन अध्ययन किया और उस के बाद नए सिरे से सभी संदिग्धों को बुला कर उन से पूछताछ का काम शुरू किया.
इस काम में 2 महीने का वक्त गुजर गया. इस से पहले कि वह जांच को आगे बढ़ाते अपराध शाखा से उन का तबादला हो गया.
इस के बाद जांच का काम एसआई रजनीकांत को सौंपा गया. रजनीकांत को लगा कि कमल सिंगला जैसे एक अमीर इंसान की एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार से ऐसी घनिष्ठता के पीछे कोई वजह तो जरूर होगी. उन्हें रवि के पिता जयभगवान के आरोपों में कुछ सच्चाई दिखी.
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