मूलरूप से गाजियाबाद के लोनी की इंद्रापुरी कालोनी में रहने वाली पूनम चौधरी के पिता मांगेराम उत्तर प्रदेश होमगार्ड में नौकरी करते थे. उन के 3 बच्चे थे. पूनम सब से बड़ी थी. मांगेराम बहुत ज्यादा तो नहीं कमा पाते थे, लेकिन किसी तरह गुजरबसर हो जाती थी.
पूनम बचपन से आजादखयाल लड़की थी. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की और ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर के एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही मातापिता ने उस की शादी कर दी.
पूनम की शादी सन 2010 में गाजियाबाद के भोजपुर थाना क्षेत्र के खंजरपुर निवासी राजीव चौधरी से हुई थी. एक तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाला जाट परिवार, ऊपर से पूनम जैसी लड़की का आजादखयाल और महत्त्वाकांक्षी होना. सो पति और ससुराल वालों से पूनम की ज्यादा पटरी नहीं बैठी. छोटीछोटी बातों पर टोकाटाकी और सासससुर के शर्मलिहाज के उलाहनों से पूनम इतनी आजिज आ गई कि उस के राजीव से आए दिन झगड़े होने लगे.
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इस दौरान पूनम एक बेटी की मां बन चुकी थी. जिस का नाम उस ने कशिश रखा. लेकिन बंदिशों में रहना पूनम को मंजूर नहीं था, इसलिए पति और ससुराल वालों से उस का विवाद कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ गया. पूनम के मातापिता ने भी उसे समझाया कि शादीब्याह के बाद लड़की को बहुत से समझौते करने पड़ते हैं, इसलिए वह अपनी ससुराल वालों और पति के साथ कुछ समझौते कर के चले.
लेकिन अपने ही तरीके से जिंदगी जीने वाली पूनम की समझ में यह बात नहीं आई. आखिरकार नतीजा यह निकला कि दोनों परिवारों के बीच कई बार मानमनौव्वल की कोशिशें बेकार गईं. अंतत: सन 2013 में पूनम का राजीव से तलाक हो गया.
तलाक के समय पूनम को ससुराल की तरफ से हरजाने के रूप में 3-4 लाख रुपए मिले. पूनम अपनी बेटी को ले कर माता पिता के पास आ गई. कुछ दिनों बाद मांगेराम ने लोनी का अपना घर बेच दिया और वह गाजियाबाद के सिहानी गेट स्थित नेहरू नगर में आ कर रहने लगे. 5 साल पहले वे होमगार्ड से रिटायर हो गए.
इधर, पति से तलाक के बाद पूनम मातापिता के साथ उन के घर आ कर रहने लगी. लेकिन पूनम आजादखयाल जिंदगी बसर करना चाहती थी, जिस के चलते मातापिता के घर में भी सुसराल की तरह जिंदगी जीने पर प्रतिबंध लगने लगे. कुछ महीने तो जैसेतैसे गुजर गए. लेकिन फिर आए दिन पूनम को कभी मां से तो कभी पिता से रोकटोक के कारण झगड़ा होने लगा.
आए दिन की कलह के बाद आखिर एक दिन पूनम ने अपना घर छोड़ने का फैसला कर लिया. उस ने सोच लिया कि वह अपनी बेटी कशिश को ले कर परिवार से अलग रह कर अपनी जिंदगी अपने पैरों पर खड़े हो कर गुजारेगी. इस के लिए उसने अपना नाम भी बदल लिया. उस ने पूनम की जगह अपना नाम प्रिया चौधरी रख लिया. उस ने इसी नाम से अपना आधार कार्ड व दूसरे दस्तावेज भी तैयार करवा लिए.
पूनम उर्फ प्रिया ने जब मायका छोड़ा तो मातापिता ने उसे लाख समझाना चाहा, लेकिन वह नहीं मानी. इसीलिए मातापिता से उस की खूब कहासुनी भी हुई. तब पिता ने दुखी हो कर प्रिया से कहा था कि जो बच्चे अपने मातापिता की बात नहीं सुनते, वे कभी खुश नहीं रहते और एक न एक दिन उन्हें पछताना पड़ता है.
लेकिन प्रिया के सिर पर तो आजादी से आत्मनिर्भर हो कर रहने का भूत सवार था लिहाजा उस वक्त मातापिता की ये बात उसे ऐसी लगी मानो वे उसे अभिशाप दे रहे हैं. यही कारण था कि माता पिता का घर छोड़ते समय उस ने यहां तक कह दिया कि अगर वो मर भी जाए तो वे उस की अर्थी को कंधा देने ना आएं.
घर छोड़ने के बाद मातापिता से प्रिया ने कभी बहुत ज्यादा संबंध नहीं रखे. हां, यदाकदा उस की मां और बहनभाई फोन पर उस की कुशलक्षेम जरूर पूछते रहते थे. इस से ज्यादा परिवार वालों का उस की जिंदगी में कोई दखल नहीं था.
इधर, मातापिता का घर छोड़ने के बाद प्रिया के सामने दिक्कत थी कि अब क्या करे और कहां रहे. लिहाजा उस ने अपनी सहेली चंचल से इस बारे में बात की. चंचल उस की ही बिरादरी की युवती थी. दोनों की पुरानी दोस्ती थी.
लोनी की ही रहने वाली चंचल की शादी मोदी नगर में हुई थी. वह अपने पति के साथ मोदीनगर के सुदामा पुरी में रहती थी. चंचल को जब प्रिया के तलाक और माता पिता से विवाद के बाद घर छोड़ने की बात पता चली तो उस ने प्रिया से कहा कि वह मोदीनगर आ जाए और उस के घर में रहे.
साल 2013 के अंत में प्रिया अपनी बेटी कशिश को ले कर मोदी नगर के सुदामा पुरी चली गई और वहां चंचल के मकान में किराए पर रहने लगी. चूंकि प्रिया ब्यूटीपार्लर का काम जानती थी, इसलिए उस ने किराए की एक दुकान ले कर वहां बेटी के नाम से एक ब्यूटीपार्लर भी खोल लिया. संयोग से पार्लर का काम ठीक से चल निकला और धीरेधीरे उस की जिंदगी ढर्रे पर आने लगी.
प्रिया को आज की पीढ़ी के लोगों की तरह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की लत थी. वह फेसबुक पर एक्टिव रहती थी. सन 2014 में उसे फेसबुक पर अमित गुर्जर नाम के एक आकर्षक नौजवान की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली तो उस ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.
बाद में फेसबुक मैसेंजर के जरिए अमित गुर्जर से उस की चैट होने लगी. चैट पर बातचीत होतेहोते प्रिया ने अमित गुर्जर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपने मातापिता की एकलौती संतान है और उस के मातापिता की मौत हो चुकी है.
अमित ने बताया कि वह मेरठ के भूड़बराल में रहता है और मेरठ के ही बुक प्रकाशकों के यहां ठेके पर उन की किताबों की बुक बाइंडिंग का काम करता है. उस के पास पैसा, रोजगार सब कुछ है लेकिन जीवन में साथ देने वाला कोई हमसफर नहीं है.
अमित गुर्जर मैसेज में ऐसी इमोनशल और प्यारी बातें करता था कि कुछ समय बाद प्रिया भी उस से बेतकल्लुफ हो कर बातचीत करने लगी. कुछ महीने की फेसबुक दोस्ती में ही प्रिया अमित के साथ इतनी घुलमिल गई मानों उन की सालों पुरानी जानपहचान हो.
उस ने अपने दिल की किताब का हर पन्ना अमित के सामने खोल दिया. दोनों की फेसबुक दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी. जल्दी ही दोनों ने प्यार का इजहार भी कर लिया और साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. प्रिया को अमित में ऐसे जीवन साथी का अक्स दिखाई दे रहा था, जैसा उस ने सोचा था. फेसबुक पर दोनों एकदूसरे को अपनी फोटो और वीडियो भी सेंड करते थे.
प्रिया ने अमित से अपनी दोस्ती के बारे में अपनी सहेली चंचल को भी बताया था. परिवार के नाम पर उस के पास चंचल ही थी जिस से वह अपने हर सुखदुख की बात शेयर करती थी. चंचल को भी लगा कि अगर अमित के कारण प्रिया की जिंदगी को एक नया ठौर मिल जाए तो उस की बिखरी जिंदगी संवर सकती है.
2014 के मध्य में प्रिया और अमित का प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि दोनों ने एक साथ रहने और शादी करने का फैसला कर लिया. लिहाजा इस के लिए वह पहले अमित से मिली. दोनों की रूबरू यह पहली मुलाकात थी.
इस मुलाकात में प्रिया ने अमित को वैसा ही पाया, जैसा उस ने खुद के बारे में बताया था. दोनों के बीच भविष्य को ले कर बहुत सी बातें हुईं और फिर एक दिन प्रिया अपनी बेटी कशिश के साथ चंचल का मकान छोड़ कर अपने सामान सहित अमित के पास मेरठ चली गई.
अमित गुर्जर ने मेरठ के परतापुर इलाके में स्थित कांशीराम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया और प्रिया व उस की बेटी के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगा. इस दौरान प्रिया ने अपना ब्यू्टी पार्लर भी बंद कर दिया था. वक्त इसी तरह तेजी से गुजरने लगा.
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प्रिया अपनी नई जिंदगी में बेहद खुश थी. लेकिन वो अपने हर सुख के बारे में अपनी सहेली चंचल को फोन पर सब कुछ बता देती थी. सप्ताह में एकदो बार दोनों के बीच फोन पर बातचीत जरूर होती थी. कभी प्रिया चंचल को फोन करती तो कभी चंचल प्रिया को फोन करती थी. प्रिया चंचल से मिलने के लिए मोदीनगर भी चली जाती थी.