(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)
खुल गई कलई
थाने पर जब उमेश से अशोक उर्फ दीपक की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि अशोक उस का दोस्त था, दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. उस ने अशोक की हत्या नहीं की.
उमेश ने बरगलाने का प्रयास किया तो पुलिस ने उस के साथ सख्ती की. इस से वह टूट गया. उस ने हत्या का अपराध कबूल कर लिया. उमेश के टूटते ही रिशु भी लाइन पर आ गई. उस ने पति की हत्या की बात मान ली.
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उमेश ने बताया कि रिशु से उस के नाजायज संबंध थे. अशोक इन संबंधों का विरोध करता था और बाधक बनने लगा था. उस ने रिशु को भी प्रताडि़त करना शुरू कर दिया था. इस पर हम दोनों ने अशोक को ठिकाने लगाने की योजना बनाई और उसे मौत के घाट उतार दिया.
चूंकि उमेश व रिशु ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी जगदीश कुशवाहा ने अज्ञात में दर्ज हत्या के केस में उमेश व रिशु को नामजद कर के उन पर भादंवि की धारा 302/120बी लगा दीं. दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में अवैध रिश्तों की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.
जौनपुर जिले के खुटहन थाना क्षेत्र में बड़ी जनसंख्या वाला गांव है- तिधरा. यहां सप्ताह में 2 दिन बाजार लगता है. अशोक कुमार उर्फ दीपक बरनवाल इसी तिधरा में रहता था. वैसे वह खेता सराय कस्बे का मूल निवासी था, लेकिन शादी के बाद ससुराल में रहने लगा था.
उस ने तिधरा बाजार में एक मकान खरीद लिया था और उसी में परिवार सहित रहता था. उस के परिवार में पत्नी रिशु के अलावा 2 बच्चे थे, बेटा राहुल तथा बेटी आरती.
अशोक कुमार किराना व्यवसाई था. मकान के भूतल पर उस की किराने की दुकान थी. अशोक के कुशल व्यवहार से दुकान पर ग्राहकों की भीड़ जुटी रहती थी. बाजार वाले दिन भीड़ कुछ ज्यादा होती थी, सो उस की पत्नी रिशु को भी दुकान पर बैठना पड़ता था. वह रुपयों का लेनदेन करती थी.
दुकान की कमाई से अशोक ने एक बोलेरो कार खरीद ली थी. इसे वह बुकिंग पर स्वयं चलाता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी. कुल मिला कर उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.
अशोक की पत्नी रिशु पढ़ीलिखी, सुंदर और चंचल स्वभाव की महिला थी. उस ने ब्यूटीशियन का कोर्स कर घर में ही ब्यूटीपार्लर खोल लिया था.
शुरू में तो उस का यह काम फीका रहा, लेकिन बाद में ठीकठाक चलने लगा था, इस के मद्देनजर उस ने एक युवती को भी नौकरी पर रख लिया. वह बुकिंग पर भी जाने लगी थी.
पतिपत्नी की कमाई से घर की आर्थिक स्थिति तो मजबूत हुई थी, लेकिन दोनों के बीच दूरियां आ गई थीं. एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों पतिपत्नी का रिश्ता नहीं निभा पा रहे थे. अशोक दिन भर किराने की दुकान चलाता था. शाम तक वह इतना थक जाता था कि खाना खाते ही पलंग पर पसर जाता और खर्राटे भरने लगता. पति के खर्राटे रिशु को शूल की तरह चुभते थे.
रिशु 2 बच्चों की मां जरूर थी, पर उस की कामेच्छाएं प्रबल थीं. वह हर रात पति का साथ चाहती थी, जो उसे नहीं मिल पा रहा था. एक रोज अशोक की बोलेरो कार की बुकिंग किसी बारात में थी, पर उस की तबियत खराब थी. वह परेशान था कि बारात की बुकिंग कैसे निपटाए.
तभी उसे उमेश की याद आई. उमेश तिधरा में ही रहता था और कुशल ड्राइवर था. दोनों में दोस्ती थी. कभी किसी बारात या कहीं और मिलते तो शराब पार्टी कर लेते थे. उमेश भी शादी समारोहों वगैरह में गाड़ी ले कर जाता था.
खुद घर बुलाई मौत
अशोक ने मोबाइल पर उमेश से बात की तो वह खाली था. अशोक ने उमेश को बुला कर बात की और बोलेरो उसे सौंप कर बुकिंग पर भेज दिया. दूसरे रोज सुबह 10 बजे उमेश अशोक के घर पहुंचा और कार खड़ी कर चाबी तथा रुपयों का हिसाब अशोक को सौंप दिया. अशोक ने मेहनताने के रूप में 300 रुपए उमेश को दे दिए.
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हिसाब हो गया तो अशोक ने पत्नी को आवाज दी, ‘‘सुनती हो, तुम्हारा देवर आया है, पानी तो ले आओ.’’
रिशु पानी ले कर बैठक में पहुंची, तो उस के होठों पर मुसकान थी. उमेश ने एकदो बार दूर से रिशु को देखा था, आमनासामना पहली बार हो रहा था.
रिशु ने पानी उस की तरफ बढ़ाया, उमेश ने पानी पीने के लिए हाथ बढ़ाया, तो अनायास ही उस का हाथ रिशु के हाथ को छू गया.
वह सकपकाया, तभी दोनो की नजरें मिलीं. रिशु के होंठों पर मुसकराहट थी, जबकि आंखों में कामुक शरारत नाच रही थी. उमेश भी हड़बड़ाहट में मुसकरा दिया और उस के मुंह से निकला, ‘‘शुक्रिया भाभी.’’
पहली ही नजर में उमेश और रिशु एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. उमेश जहां गबरू जवान था, वहीं रिशु भी खूबसूरती में कम नहीं थी. दोनों ने एकदूसरे को दिल में बसा लिया. 3-4 दिन तक उमेश कशमकश में पड़ा रहा कि वह रिशु से मिलने जाए या न जाए. क्योंकि अशोक उस का दोस्त था और रिशु उस की पत्नी.
लेकिन रिशु का आमंत्रण उस के जेहन को मथ रहा था. आखिर एक दिन दोपहर में वह अशोक के घर पहुंच ही गया. संयोग से उस रोज अशोक किसी काम से जौनपुर गया हुआ था. चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. ऐसे में उमेश को देखने वाला भी कोई नहीं था.
उस ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी, तो दरवाजा रिशु ने ही खोला. फिर चहक कर बोली, ‘‘देवरजी आप! बड़ी देर कर दी मेहरबां आतेआते. जानते हो, मैं हर रोज तुम्हारी राह देखती थी.’’
‘‘ऐसी कौन सी बात थी, जो आप को मेरा इंतजार था?’’ उमेश ने उस के मन की थाह ली.
‘‘पहले अंदर तो आओ.’’ रिशु ने बेहिचक उस का हाथ थामा और अंदर खींच लिया. फिर उसे पलंग पर बिठा कर पूछा, ‘‘पानी लाऊं?’’
‘‘नहीं, प्यास नहीं है.’’ उमेश बोला.
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रिशु ने नैन मटकाए, ‘‘देवरजी, झूठ मत बोलो. प्यास नहीं होती, तो सुनसान दोपहर में भाभी के पास क्यों आते?’’ कहने के साथ उस ने नैनों की कटार चला दी.