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पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ओडिशा के झारसुगड़ा स्थित होटल मेघदूत में अपनी प्रेमिका कल्पना दास के साथ ठहरा था. कल्पना के साथ उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती दास भी थी. कल्पना और अनूप कुमार के बीच एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी.

कमरे में बैठे अनूप कुमार साय ने पास बैठी कल्पना दास की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कल्पना, हम छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ चलते हैं. वहीं पर हमीरपुर में एक साईं मंदिर है. उसी मंदिर में हम शादी कर लेंगे, वहां मेरे कुछ रिश्तेदार भी हैं. कुछ दिनों वहीं रह लेंगे. यह बताओ कि अब तो तुम खुश हो न?’’

कल्पना दास ने उचटतीउचटती निगाह अनूप कुमार साय पर डाली और बोली, ‘‘देखो, अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. कितने साल बीत गए, तुम तो बस हम मांबेटी का खून पीते रहे हो. पता नहीं वह दिन कब आएगा, जब मुझे शांति मिलेगी.’’

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कल्पना के रूखे स्वर से अनूप कुमार साय के तनबदन में आग लग गई. वह अपने ड्राइवर बर्मन टोप्पो की ओर देख कर बोला, ‘‘बर्मन, चलना है रायगढ़.’’

मालिक का आदेश सुन कर बर्मन टोप्पो मुस्तैद खड़ा हो गया. वह अनूप कुमार साय का सालों से ड्राइवर था. यानी एक तरह से उस का विश्वासपात्र मुलाजिम था. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘साहब, मैं नीचे इंतजार करता हूं.’’

इतना कह कर वह वहां से चला गया.

माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो अनूप साय ने बड़े प्यार से कल्पना को समझाया, ‘‘देखो कल्पना, मैं वादा करता हूं कि बस यह आखिरी मौका है. इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दूंगा.’’

अनूप साय की बात पर कल्पना शांत हो गई और बेटी के साथ जाने के लिए उस की बोलेरो में बैठ गई. झारसुगुडा से रायगढ़ लगभग 85 किलोमीटर दूर है. बोलेरो रायगढ़ की तरफ रवाना हो गई. यह 6 मई, 2016 की बात है.

3 बार विधायक रहा अनूप कुमार साय वर्तमान में ओडिशा के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन था. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खासमखास लोगों में से एक. मुख्यमंत्री से अनूप कुमार के नजदीकी संबंधों की ही एक नजीर यह थी कि मई 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उसे मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त था. राजनीतिक रसूख के कारण ही उसे कारपोरेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया था.

यह कथा है पूर्व विधायक अनूप कुमार साय की जो सन 1999, 2004 एवं 2009 में ओडिशा के ब्रजराजनगर विधानसभा से विधायक चुना गया. अनूप कुमार साय ने कल्पना दास के साथ प्रेम की पींगे भरीं. फिर देखते ही देखते वह अपराध के दलदल में चला गया.

राजनीति की उजलीकाली रोशनी में कोई राजनेता जब स्वयं को स्वयंभू समझने लगता है तो उस का पतन उस का समूल अस्तित्व नष्ट कर जेल के सींखचों में पहुंचा देता है. यही सब अनूप कुमार साय के साथ भी हुआ.

6 मई, 2016 की सुबह के समय अनूप कुमार साय अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी को अपनी बोलेरो कार में बिठा कर रायगढ़ की तरफ रवाना हो गया. करीब 2 घंटे बाद वह छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. इस बीच दोनों आपस में बातें करते रहे.

बातोंबातों में एक बार फिर से उन के स्वर तल्ख होते जा रहे थे. कल्पना ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे साथ मेरा जीवन तो बरबाद हो ही गया, अब मैं प्रवती की जिंदगी कतई बरबाद नहीं होने दूंगी.’’

अनूप कुमार साय का स्वर तल्खीभरा हो चला था, ‘‘अच्छा, मेरी वजह से तुम्हारा जीवन बरबाद हो गया? तुम ने कभी यह सोचा कि पहले क्या थीं, क्या बन गई हो और कहां से कहां पहुंच गई हो. अहसानफरामोशी इसी को कहते हैं. तुम अपने दिल से पूछो कि क्या नहीं किया है मैं ने तुम्हारे और प्रवती के लिए. तुम लोगों की खातिर मैं ने अपना राजनीतिक जीवन तक दांव पर लगा दिया. बदनाम हो गया, मेरी विधायकी चली गई. यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नी, बच्चों तक से संबंध तोड़ बैठा हूं.’’

‘‘झूठ…बिलकुल झूठ.’’ कल्पना दास का स्वर स्पष्ट रूप से कठोर था, ‘‘जब तक तुम मुझे मेरा अधिकार नहीं दोगे, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘देखो, मैं भी तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं कि जिद छोड़ दो, सब कुछ तो तुम्हारा ही है. सिर्फ लिख कर दे दूंगा तो क्या होगा? अरे पगली, मन जीतना सीखो. अगर मेरा मन तुम्हारे साथ है तो मैं जो भी लिखूंगा, नहीं लिखूंगा सब तुम्हारा है.’’ अनूप ने समझाया.

‘‘मुझे बातों में मत उलझाओ. 12 साल हो गए देखते हुए. मैं अब सब्र नहीं कर सकती. अब तो तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी और तुम्हारी संपत्ति में भी मुझे हिस्सा चाहिए.’’ कल्पना ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’ अनूप कुमार बिफर पड़ा.

‘‘हां, यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कल्पना दास के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘तो ठीक है, फिर…’’ कहते हुए अनूप कुमार साय ने ड्राइवर टोप्पो से गाड़ी रोकने का इशारा किया. ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी.

अनूप कुमार साय ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ बाहर आओ.’’

उस के स्वर में बेहद रोष था.

कल्पना दास जब तक बाहर आती, अनूप कुमार साय जल्दी से गाड़ी के पीछे गया और पीछे रखी लोहे की एक मोटी रौड ले कर सामने खड़ा हो गया. कल्पना बाहर निकली तो उस ने रौड से कल्पना दास पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लोहे की रौड जब कल्पना के सिर पर पड़ी तो वह चीख कर वहीं गिर पड़ी.

मां के चीखने की आवाज सुनते ही बेटी प्रवती घबरा गई. मां को घायल देख घबरा कर वह बाहर आई तो अनूप कुमार ने उस के सिर पर भी उसी रौड से प्रहार कर दिया. उस का भी सिर फट गया और खून की धार फूट निकली. वह भी वहीं धराशाई हो कर गिर पड़ी.

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मांबेटी घायल पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. दोनों को घायलावस्था में देख अनूप कुमार उन्हें गालियां देते हुए चिल्ला रहा था, ‘‘मुझ से शादी करोगी, मेरी संपत्ति पर नजर लगा रखी है, मार डालूंगा.’’

कहते हुए उस ने रौड से उन पर कई वार किए, जिस से कुछ ही देर में उन दोनों की मौत हो गई. उन्हें मौत के घाट उतार कर उस ने लहूलुहान लोहे की रौड बोलेरो में रख ली. इस के बाद उस ने ड्राइवर बर्मन टोप्पो से कहा, ‘‘इन दोनों का हश्र ऐसा करो कि कोई पहचान भी न पाए. गाड़ी से दोनों का सिर कुचल डालो.’’

बर्मन टोप्पो ने मालिक के कहने पर बोलेरो स्टार्ट कर के कल्पना और उस की बेटी पर कई बार चढ़ाई. वह पहिया चढ़ा कर उन के चेहरे बिगाड़ने लगा ताकि कोई पहचान न पाए. अनूप ने यह वारदात छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में मां शाकुंभरी फैक्ट्री के सुनसान रास्ते पर की थी. घटनास्थल थाना चक्रधर नगर के अंतर्गत आता था.

अनूप कुमार साय अपनी बरसों से प्रेयसी रही कल्पना दास और उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती की नृशंस हत्या कर उसी बोलेरो में बैठ कर बृजराजनगर, ओडिशा की ओर चला गया. यह बात 6 मई, 2016 की है.

आइए जानें कि कल्पना दास कौन थी और वह पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के चक्कर में कैसे फंसी?

कल्पना दास ब्रजराज नगर के रहने वाले रुद्राक्ष दास की बेटी थी. रुद्राक्ष दास की बेटी के अलावा 2 बेटे भी थे. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाई. पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को कालेज में ही अपने साथ पढ़ने वाले सुनील श्रीवास्तव से प्यार हो गया था. सुनील भी ब्रजराज नगर में रहता था. उन का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया था कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया था.

कल्पना ने जब अपने प्यार के बारे में घर वालों को बताया तो उन्होंने उसे सुनील के साथ शादी करने की अनुमति नहीं दी. लेकिन कल्पना ने अपने घर वालों की बात नहीं मानी. लिहाजा एक दिन सुनील श्रीवास्तव और कल्पना दास ने घर वालों को बिना बताए एक मंदिर में शादी कर ली. यह सन 2000 की बात है.

सुनील से शादी करने के बाद कल्पना ने अपने पिता का घर छोड़ दिया. इस के बाद सुनील ने भी इलैक्ट्रौनिक की एक दुकान खोल ली, जिस से गुजारे लायक आमदनी होने लगी. शादी के बाद भी कल्पना ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान सन 2002 में उस ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम प्रवती रखा. इसी बीच कल्पना ने अपनी वकालत की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी.

कल्पना सुनील के साथ खुश थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही जब उस के सिर से प्यार का नशा उतरा तो उसे पति में कई कमियां नजर आने लगीं. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि उसे खर्चे के लिए तंगी होती थी, क्योंकि सुनील की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी. कम आय में कल्पना की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.

कल्पना जब कभी किसी पर्यटक स्थल पर घूमने को कहती तो सुनील पैसों का रोना रोने लगता था. न ही वह कल्पना को रेस्टोरेंट वगैरह में खाना खिलाने ले जाता था. एक बार कल्पना ने उस से गोवा घूमने की जिद की तो सुनील ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे भई, ये सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. हम साधारण लोग क्या गोवा घूमने जाएंगे.’’

सुनील कल्पना को समझाता मगर कल्पना की काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी. वह जीवन में उल्लास और ऐश्वर्य चाहती थी. वह सुनील के साथ घुट कर जीने से आजिज आ चुकी थी.

एक दिन कल्पना ने पति से कहा, ‘‘मैं ने वकालत की डिग्री हासिल की है. क्यों न वकालत कर के पैसे और नाम दोनों ही अर्जित करूं. इस से हमारे सपने भी पूरे होंगे और मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

सुनील को कल्पना की यह सलाह पसंद आई. कल्पना ने बृजराज नगर में वकालत करनी शुरू कर दी. इसी दौरान कल्पना ने अपने मांबाप से बातचीत करना शुरू कर दिया था. वह मायके भी आनेजाने लगी थी. कल्पना ने वकालत जरूर शुरू कर दी थी लेकिन पेशे के पेंच समझे बिना कैसे पैसा कमाती.

फिर भी किसी तरह धीरेधीरे गाड़ी चल निकली. कल्पना के अपने मायके वालों से संबंध सामान्य हो चुके थे. पिता रुद्राक्ष दास ने भी सुनील और कल्पना को माफ कर दिया था. एक दिन कल्पना ने पिता रुद्राक्ष दास से जब अपने वकालत के पेशे में आ रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की तो वे बोले, ‘‘वकालत का पेशा गहराई मांगता है. यह संबंधों का खेल है.’’

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‘‘क्या मतलब?’’ कल्पना ने भोलेपन से पूछा.

‘‘बेटी, जिन के संबंध जितने गहरे यानी दूर तक फैले होते हैं, वकालत में उसे ही ज्यादा काम मिलता है. मैं तुम्हें यहां के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अनूप कुमार साय से मिला दूंगा. वह मेरे अच्छे परिचित हैं. वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे. रोजाना उन से सैकड़ों लोग मिलने आते हैं. देखना, उन के सहयोग से तुम्हारी वकालत को कैसे रवानगी मिलती है.’’

‘‘पापा, वह तो क्षेत्र के विधायक हैं न?’’ कल्पना ने आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हांहां, हमारे एमएलए हैं अनूप कुमार साय.’’ रुद्राक्ष दास ने बेटी की बात की पुष्टि करते हुए कहा.

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