कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

इश्कइश्क की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.
पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.

भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.

वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.

योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’

‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.

पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.

अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.

राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी. की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.

पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.

बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.

विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.
योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’

‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’
‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’

‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.

वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.
अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.
राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...